भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का इतिहास बहुत ही भव्य और ऐतिहासिक रहा है। उत्तर प्रदेश ही वह राज्य है जहाँ भगवान शिव और भगवान विष्णु के अवतारों ने जन्म लिया है। वह चाहे बनारस का “काशी विश्वनाथ मंदिर” रहा हो या फिर अयोध्या या फिर मथुरा। ऐसा ही एक स्थान उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में पड़ता है, जहाँ भगवान शिव की आत्म लिंग स्थापित है और जो “छोटी काशी” के नाम से भी जाना जाता है।
हम बात कर रहे हैं “गोला गोकर्णनाथ मंदिर” की, जो भगवान शिव और लंका पति रावण से सम्बन्ध रखता है और जिसका उल्लेख हिन्दू धर्म की कई धार्मिक ग्रंथो में मिलता है। इस ब्लॉग में इसी खूबसूरत और ऐतिहासिक मंदिर की यात्रा से सम्बंधित सभी जानकारी आपके साथ साझा करेंगे। इस ब्लॉग के माध्यम से आप, गोला गोकर्णनाथ मंदिर कैसे पहुंचे? गोला गोकर्णनाथ मंदिर की टाइमिंग, गोला गोकर्णनाथ मंदिर की कहानी, गोला गोकर्णनाथ मंदिर कहाँ स्थित है? मंदिर का इतिहास आदि की जानकारी को जान सकते हैं। तो ब्लॉग को अंत तक ध्यान से पढ़े…
गोला गोकर्णनाथ मंदिर कहाँ स्थित है?
गोला गोकर्णनाथ मंदिर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में स्थित है। यह लखीमपुर खीरी शहर से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर गोला रेलवे स्टेशन के पास स्थित है। यह उत्तर प्रदेश का एक बहुत ऐतिहासिक और धार्मिक क्षेत्र है और इसका भगवान शिव और लंका पति रावण की कहानी से सम्बन्ध होने के कारण इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। गोला गोकर्णनाथ मंदिर को छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है और यहाँ पर शिव की आत्म लिंग स्थापित है।
गोला गोकर्णनाथ मंदिर की कहानी क्या है?
किसी भी जगह की यात्रा करने से पहले उस जगह का इतिहास और कहानी जानने के बाद हमारी इच्छा उस जगह को एक्स्प्लोर करने की और अधिक बढ़ जाती है। इसी वजह से मैं हर ब्लॉग में उस जगह के इतिहास और उस जगह की कोई ऐतिहासिक कहानी को आप तक जरूर शेयर करता हूँ।
यदि हम गोला गोकर्णनाथ मंदिर की कहानी के बारे में बात करें तो इसकी कहानी भी बहुत ही खूबसूरत, भक्ति-भाव, भगवान शिव के लीला और लंका पति रावण के हठ से जुड़ी हुयी है। इस प्यारे से मंदिर और भगवान शिव की शिवलिंग के सम्बन्ध में एक कहानी बताई जाती है।
स्थानीय मान्यता और हिन्दू धर्म की धार्मिक ग्रंथो के अनुसार ऐसा कहा जाता है की लंका पति रावण भगवान शिव का परम भक्त था और वह चाहता था की भगवान शिव कैलाश को छोड़कर लंका में निवास करें। इसी मंशा को लेकर रावण भगवान शिव की घोर तपस्या करता है जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव रावण को दर्शन देते हैं और उससे वरदान मांगने को कहते हैं। रावण भगवान शिव से कैलाश छोड़कर लंका में निवास करने को कहता है।
इस बात को सुनकर सभी देवता गण भयभीत हो जाते हैं क्यों कि भगवान शिव के कैलाश छोड़कर जाने पर सारी श्रेष्टि का संतुलन विगड़ सकता था। तब सभी देवता गण ब्रह्मा जी के पास जाकर उनसे विनती करते हैं और ब्रह्मा जी भगवान शिव को बताते हैं की रावण को वरदान बड़ी सोच समझकर दें।
तभी भगवान शिव रावण को वरदान देते हैं और कहते हैं मैं तुम्हारे साथ लंका चलने को राज़ी हूँ लेकिन मेरी एक शर्त है की तुम मुझे लंका तक ले जाते समय कहीं पर भी पृथ्वी पर स्पर्श नहीं करोगे और यदि तुमने ऐसा किया तो मैं वहीँ स्थापित हो जाऊंगा। रावण शर्त मान लेता है और भगवान शिव आत्मलिंग में परिवर्तित हो जाते हैं और रावण उन्हें लेकर लंका की और चलना शुरू कर देता है लेकिन बीच रास्ते में आकर रावण को लघुशंका लगती है जिससे वह शिवलिंग को एक चरवाहे को दे देता और कहता है कि मैं जब तक ना लौटू तब तक तुम इसे धरती पर मत रखना।
काफी समय होने के बाद चरवाहा तीन बार रावण को पुकारता है जब रावण के तरफ से कोई भी संकेत नहीं आता है तो चरवाहा आत्मलिंग को धरती पर रख देता है। जब रावण वापस लौटता है और देखता है कि शिवलिंग धरती पर रखी हुयी है चरवाहा वहां कहीं नहीं है तो वह शिवलिंग को धरती से उठाने का प्रयास करने लगता है लेकिन वह शिवलिंग को नहीं उठा पता है और शिवलिंग पर अपने अंघूठे से जोर से दबाब बनाता है और थक हारकर वापस लंका लौट जाता है।
कहते हैं गोला गोकर्णनाथ मंदिर ही वह स्थान है जहाँ पर चरवाहे ने शिवलिंग को धरती पर रखा था और शिव लिंग पर आज भी रावण के अंघूठे के निशान देखने को मिलते हैं। गोकर्ण का मतलब ‘गाये का कान” है और शिवलिंग का स्वरूप गाय के कान जैसा है जिस वजह से इसे गोकर्णनाथ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा इसे छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है और ऐसा माना जाता है कि यदि आप बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन नहीं कर पाएं तो आप गोला में गोकर्णनाथ के दर्शन कर सकते हैं।
गोला गोकर्णनाथ मंदिर की टाइमिंग
किसी भी मंदिर की यात्रा करने से पहले हमे उस मंदिर की टाइमिंग के बारे में जरूर पता होना चाहिए। गोला गोकर्णनाथ मंदिर सुबह 4 बजे मंगला आरती के शुरआत से भक्तो के लिए खोल दिया जाता है और रात 10 बजे तक मंदिर खुला रहता है। शिवलिंग लगभग 2 से 3 फ़ीट गहरे गड्ढे में है जिस वजह से उस पर जाल लगा हुआ है। यदि आप शिवलिंग को स्पर्श करना चाहते हैं तो आप दोपहर 2 बजे और रात 8 बजे मंदिर में जाएँ। इस समय आपको भगवान शिव के दर्शन और उन्हें स्पर्श करने का मौखा मिलेगा क्योंकि इस समय मंदिर की सफाई होती है।

- गोला गोकर्णनाथ मंदिर दर्शन टाइमिंग:- सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक
गोला गोकर्णनाथ मंदिर आने का सबसे अच्छा समय
गोला गोकर्णनाथ मंदिर की यात्रा का सबसे अच्छा समय मार्च से अक्टूबर के बीच का माना जाता है। इसके अलावा आप सावन में, महाशिवरात्रि और नागपंचमी के बाद पड़ने वाला पहले सोमवार और चैती मेला, जो अप्रैल में 4 से 19 के बीच में मनाया जाता है, उस समय यहाँ विजिट कर सकते हैं। अब उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गोला में गोकर्णनाथ कॉरिडोर बनवाया जा रहा है, जो इस धाम की खूबसूरती को और बढ़ा देगा। बाकि आप किसी भी सीजन में और किसी भी समय इस धाम में विजिट कर सकते हैं।
गोला किस लिए प्रसिद्ध है?
गोला भगवान शिव के मंदिर गोला गोकर्णनाथ के लिए प्रसिद्ध है। यह लखीमपुर खीरी जिले में सबसे अधिक विजिट किये जाने वाला मंदिर है। इसके अलावा सावन में गोला आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाती है और भक्त गंगा जी का जल लेकर गोला गोकर्णनाथ पर चढ़ाते हैं।
गोला में कहाँ रुके?
गोला में रुकने के लिए आपको बहुत से विकल्प मिल जायेंगे। यहाँ लक्ज़री से लेकर मिड रेंज और बजट ऑप्शन उपलब्ध हैं। जहाँ आप आपने बजट के अनुसार रुक सकते हैं। गोला में रुकने के लिए सबसे अच्छी जगह गोला रेलवे स्टेशन के पास में है। यहाँ पर बहुत से लक्ज़री से लेकर बजट होटल ऑप्शन उपलब्ध हैं। जहाँ आप 500 से लेकर 2500 रुपये तक में आसानी से रुक सकते हैं। इसके अलावा आप ऑनलाइन रूम भी बुक कर सकते हैं और यदि आप सावन, चैती मेला या फिर महाशिवरात्रि पर आ रहे हैं तो आपको रूम ऑनलाइन पहले से बुक कर लेने चाहिए।
गोला गोकर्णनाथ मंदिर त्यौहार और इवेंट्स
गोला गोकर्णनाथ मंदिर यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। यहाँ सबसे अधिक पर्यटक सावन, चैती मेला और महाशिवरात्रि के साथ नागपंचमी के बाद के सोमवार को लगने वाले मेले पर आते हैं। गोला में चैती मेला हर साल अप्रैल के महीने में लगभग 4 से 19 तारीख के बीच में लगता है जिसमें शामिल होने के लिए लाखो लोग दूर-दूर से आते हैं। इसके अलावा सावन में लाखो कावड़िए हर साल गंगा जी का जल लेकर गोकर्णनाथ पर चढ़ाने आते हैं।
गोला गोकर्णनाथ मंदिर कैसे पहुंचे?
गोला गोकर्णनाथ मंदिर लखीमपुर खीरी जिले में स्थित है और यहाँ तक पहुंचना काफी आसान है। यह मंदिर सड़कमार्ग और रेलमार्ग द्वारा अच्छे से जुड़ा हुआ है। नीचे हम विस्तार से गोला गोकर्णनाथ मंदिर तक पहुंचने के बारे में बता रहे हैं। जिसे आप ध्यान से पढ़े…
सड़कमार्ग द्वारा गोला गोकर्णनाथ मंदिर कैसे पहुंचे?
गोला गोकर्णनाथ मंदिर पहुंचने के सबसे अच्छा साधन सड़कमार्ग है। गोला राष्टीय राजमार्ग 730 और प्रदेश राजमार्ग 93 द्वारा अच्छे से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा आपको लखनऊ, बरेली, पीलीभीत और शाहजहांपुर से आसानी से सरकारी और प्राइवेट बसे मिल जाएँगी। जिनके द्वारा आप आसानी से गोला गोकर्णनाथ मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
रेलमार्ग द्वारा गोला गोकर्णनाथ मंदिर कैसे पहुंचे?
भारत में सफर करने का सबसे सस्ता और अच्छा तरीका रेलमार्ग है। गोला गोकर्णनाथ मंदिर के सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन गोला रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गोला के लिए ट्रेन लगभग सभी बड़े रेलवे स्टेशन से मिल जाएँगी। यदि आपको सीधे गोला रेलवे स्टेशन के लिए ट्रेन नहीं मिलती है तो आप सबसे पहले लखीमपुर खीरी आ सकते हैं और फिर वहां से गोला गोकर्णनाथ मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
हवाईमार्ग द्वारा गोला गोकर्णनाथ मंदिर कैसे पहुंचे?
गोला में कोई भी रेलवे स्टेशन नहीं है। गोला गोकर्णनाथ मंदिर के सबसे नजदीकी एयरपोर्ट बरेली एयरपोर्ट है, लेकिन ये अभी हाल ही में बना है जिस कारण यहाँ के लिए ज्यादा शहरों से फ्लाइट उपलब्ध नहीं है इसलिए आप पहले लखनऊ एयरपोर्ट आ सकते हैं और फिर वहां से आप सीधे गोला पहुंच सकते हैं। बरेली और लखनऊ से गोला गोकर्णनाथ मंदिर की दूरी क्रमशा 120 और 186 किलोमीटर है।
FAQ
- Q.1 लखनऊ से गोला गोकर्णनाथ मंदिर की दूरी कितनी है?
- Ans. लखनऊ से गोला गोकर्णनाथ मंदिर 164 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- Q.2 गोला गोकर्णनाथ मंदिर के आसपास के आकर्षक स्थल कौन से हैं?
- Ans. गोला गोकर्णनाथ मंदिर में दर्शन करने के बाद आप श्री साई मंदिर, राम जानकी मंदिर, कंजा देवी मंदिर, और मंगला देवी मंदिर के दर्शन करने जा सकते हैं।
- Q.3 फर्रुखाबाद से गोला गोकर्णनाथ मंदिर की दूरी कितनी है?
- Ans. फर्रुखाबाद से गोला गोकर्णनाथ की दूरी 139 किलोमीटर की है।