भारत के इतिहास में कई वीर हस्तियों ने अपना नाम अमर कर के गया है। उन्हीं में से एक है मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति संभाजी महाराज जी। शिवाजी के पुत्र के रूप में विख्यात संभाजी महाराज का जीवन भी अपने पिता छत्रपति शिवाजी महाराज के समान ही देश और हिंदुत्व को समर्पित रहा है।
संभाजी जी ने अपने बाल्यकाल से ही राज्य की राजनीति समस्याओं का निवारण करते थे। और इन दोनों में मिले संघर्ष एवं शिक्षा दीक्षा के कारण ही बाल शंभू जी राजे कालांतर में वीर संभाजी राजे बन सके थे।
लेख को शुरू करने से पहले आइए, मराठा साम्राज्य के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त कर लेते हैं, जिसका उत्तराधिकारी थे छत्रपति संभाजी राजे।
Sambhaji Maharaj History in Hindi
एक भारतीय साम्राज्यवादी शक्ति थी जो 1674 से 1818 तक अस्तित्व में रहा ,मराठा साम्राज्य की स्थापना छत्रपति शिवाजी ने 1674 में डाली और तभी से इस साम्राज्य की शुरुआत हुई थी। उन्होंने कई वर्ष औरंगजेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। बाद में आए पेशावरओने ईसे उत्तर भारत तक बढ़ाया, यह साम्राज्य 1818 तक चला, और लगभग पूरे भारत में फैल गया।
इसी साम्राज्य के दूसरे छत्रपति का नाम संभाजी था जोकि शिवाजी के पुत्र थे। तो आइए आव जानते हैं छत्रपति संभाजी मराठा का जीवन परिचय के बारे में।
Chatrapati Sambhaji Maharaj
संभाजी महाराज का जन्म 14 मई, 1657 में पुरंदर किले पर हुआ था। 2 साल की उम्र में ही उनकी मां की देहांत हो गई थी। फिर उनकी देखभाल उनकी दादी यानी जीजा बाई ने किया था। संभाजी महाराज बहुत ही बुद्धिमान व्यक्ति थे। वे केवल 13 साल की उम्र में ही तेरा भाषाएं सीख गए थे। कहीं शास्त्र भी लिख डाले थे, घुड़सवारी, तीरंदाजी, तलवारबाजी, यह सब तो मानों जैसे इनके बाएं हाथ का खेल था। छत्रपति संभाजी 9 वर्ष की अवस्था में पुण्यश्लोक छत्रपति श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रसिद्ध आगरा यात्रा में भी वे साथ में गए थे।
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औरंगजेब के बंदी गृह से निकल कर, पुण्यश्लोक छत्रपति श्री छत्रपति शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र वापस लौटने पर मुगलों से समझौते के फलस्वरूप, संभाजी मुगल सम्राट द्वारा राजा के पद तथा पंच हजारी म`सब से विभूषित हुए। उनको यह नौकरी मान्य नहीं थी। किंतु हिंदूवादी स्वराज्य स्थापना की शुरू के दिन होने के कारण और पिता पुण्यश्लोक छत्रपति श्री शिवाजी महाराज के आदेश के पालन हेतु केवल 9 साल के उम्र में ही इतना जिम्मेदारी और अपमानजनक कार्य उन्होंने धीरज से किया था।
संभाजी महाराज द्वारा लिखी रचनाएं :
कलश के संपर्क और मार्गदर्शन से संभाजी की साहित्य के तरफ रूचि बढ़ने लगी। उन्होंने अपने केवल 14 साल के उम्र में ही बुधभूषणम, नक्शीखांत, नायिका भेद, सात शतक यह तीन संस्कृत ग्रंथ लिखे थे। संभाजी महाराज संस्कृत के महान ज्ञानी थे।
छत्रपति श्री शिवाजी महाराज एक राजतंत्र :
पराक्रमी होने के बावजूद भी उन्हें अनेक लड़ाईऔ से दूर रखा गया था। स्वभावत: संवेदनशील रहने वाले संभाजी राजे उनके पिता शिवाजी महाराज जी के आज्ञा अनुसार मुगलों को जा मिले, ताकि वे उन्हें गुमराह कर सकें। क्योंकि उसी समय मराठा सेना दक्षिण दिशा के दिग्विजय से लौटी थी, और उन्हें फिर से जोश में आने के लिए समय चाहिए था।
इसलिए मुगलों को गुमराह करने के लिए पुण्यश्लोक छत्रपति श्री शिवाजी महाराज जी ने ही उन्हें भेजा था एवं वह एक राजतंत्र था! बाद में छत्रपति श्री शिवाजी महाराज जी ने ही उन्हें मुगलों से मुक्त किया था।
संभाजी की कवि कलश से मित्रता :
बचपन में संभाजी जब मुगल शासक औरंगजेब की कैद से बच कर भागे थे, तब वह अज्ञातवास के दौरान शिवाजी के दूर के मंत्री रघुनाथ कोर्ट के दूर के रिश्तेदार के यहां कुछ समय के लिए रुके थे। वहां संभाजी लगभग 1 से डेढ़ वर्ष तक के लिए रुके थे, तब संभाजी ने कुछ समय के लिए ब्राह्मण बालक के रूप में जीवनयापन किया था। इसके लिए मथुरा में उनका उपनयन संस्कार भी किया गया और उन्हें संस्कृति भी सिखाई गई। इसी दौरान संभाजी का परिचय कवि कलश से हुआ। संभाजी का उग्र और विद्रोही स्वभाव को सिर्फ कभी कलश ही संभाल सकते थे।
Sambhaji Maharaj History in Hindi
राज्याभिषेक :
छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद, एक शोक पर्वत उन पर एवं स्वराज पर टूट पड़ा था। लेकिन इस स्थिति में संभाजी महाराज ने स्वराज्य की जिम्मेदारी संभाली। कुछ लोगों ने धर्म वीर छत्रपति श्री संभाजी महाराज के अनुज राजा राम को सिंहासन आसीन करने का प्रयत्न किया था। किंतु सेनापति हं वीर राव मोहिते के रहते यह कारस्थान नाकामयाब हुआ।
16 जनवरी 1681 को संभाजी महाराज का विधिवत राज्याभिषेक हुआ। उन्होंने अन्नाजी दत्तो और मोरोपंत पेशवा को उदार हृदय से क्षमा कर दिया एवं उन्हें अष्टप्रधान मंडल में रखा। हालांकि कुछ समय बाद, अन्नाजी दत्तो और मंत्रियों ने हीं फिर से संभाजी राजे के खिलाफ साजिश रची और राजा राम का राज्याभिषेक की योजना किया गया था। संभाजी राजे ने स्वराज्य द्रोही अन्नाजी दत्तो और उनके सहयोगी यों को हाथी के पांव के नीचे मार डाला।
संभाजी पर औरंगजेब का अत्याचार :
1689 तक स्थितियां बदल चुकी थी। मराठा राज्य संगमेश्वर मैं शत्रुओं के आगमन से अनभिज्ञ था। ऐसे में मुकर्रम खान के अचानक आक्रमण से मुगल सेना महल तक पहुंच गई, और संभाजी के साथ कवि कलश को भी बंदी बना लिया। एवं उन दोनों को कारागार में डाला गया, और उन्हें वेद विरुद्ध इस्लाम अपनाने को विवश किया गया।
औरंगजेब के शासनकाल के अधिकारिक इतिहासकार मसीर प्रथम अंबारी और कुछ मराठा शत्रुओं के अनुसार दोनों को चैन से जकड़ कर हाथी के होदे से बांधकर औरंगजेब के कैंप तक ले जाया जाता था जोकि अकलुज में था। उसके बाद वहां उन दोनों को तहखाने में भी डालने की आदेश दिया गया था। इतने यातना ओ के बाद भी हार ना मानने पर संभाजी और कलश को कैद से निकाल कर उन दोनों को घंटी वाली टोपी पहना दी गई एवं उनका काफी अपमान भी किया गया था।
औरंगजेब ने कहा कि अगर वह अपना धर्म परिवर्तन कर लेते हैं तो संभाजी और उनके मित्रों को माफी मिल जाएगी। संभाजी इस बातों से साफ इनकार कर दिया। फिर संभाजी ने अपने ईश्वर को याद किया और कहने लगे कि धर्म के भेद को समझने के बाद वह अपना जीवन बार बार और हर बार राष्ट्र को समर्पित करने को तत्पर है। अर्थात संभाजी औरंगजेब से बिल्कुल हार नहीं माने।
इन सब के उपरांत औरंगजेब ने क्रोधित होकर संभाजी के घाव पर नमक छिड़काया और उन पर बहुत अत्याचार भी किए। परंतु संभाजी ने बिल्कुल भी औरंगजेब के आगे सर नहीं झुकाया। संभाजी को रोज इसी प्रकार प्रताड़ित किया जाता था। 11 मार्च 1989 को उनका सर धड़ से अलग कर दिया गया था और इस प्रकार उनकी मृत्यु हुई थी।
छत्रपति संभाजी महाराज की कुछ सरल जानकारियां ( Sambhaji Maharaj History in Hindi )
नाम | संभाजी |
उपनाम | छबा और संभाजी राजे |
जन्मदिन | 14 मई 1657 |
जन्म स्थान | पुरंदर के किले में |
माता- पिता | सई बाई – छत्रपति शिवाजी |
दादा – दादी | शाहजी भोंसले – जीजाबाई |
भाई – बहन | सकू बाई, अंबिका बाई , रनु बाई, जाधव , दीपा बाई, कमलाबाई, पलकर , सिरके |
पत्नी | येसूबाई |
मित्र और सलाहकार | कवि कलश |
कौशल | संस्कृत में ज्ञाता, कला प्रेमी और वीर योद्धा |
युद्ध | 1669 में वाई का युद्ध |
शत्रु | औरंगजेब |
मृत्यु | 11 मार्च 1689 |
आराध्य देव | महादेव |
मृत्यु का कारण | औरंगजेब की दी गई यातना नहीं मानने के कारण |
विवाद : अपने परिवार में पिता जी शिवाजी से विवाद होने पर नजरबंद किया और वहां से भाग निकले और मुगलों में जाकर शामिल हो गए और इस्लाम अपना लिया लेकिन मुगलों के अत्याचार को देख कर पुण लौट आए। पारिवारिक राजनीति का शिकार हुए।
उपलब्धियां : औरंगजेब के सामने कभी घुटने नहीं टेके, अंतिम सांस तक योद्धा की भांति डटे रहे।
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