हिन्दू धर्म में बहुत से पवित्र ग्रन्थ हैं, जो आज से लाखो साल पहले हुयी घटनाओ का वर्णन करते हैं। उन घटनाओ के साक्ष्य हमें आज के आधुनिक युग में भी देखने को मिलते हैं। महाभारत, जिसे हर वह व्यक्ति जानता है जो हिन्दू धर्म में विश्वास करता है और उसे मानता है। धार्मिक ग्रन्थ के आधार पर माना जाता है की महाभारत द्वापर युग में हुयी थी, जिसके निशान हमे आज भी देखने को मिलते हैं, चाहे वह करुक्षेत्र का मैदान हो या फिर समुद्र में डूबी हुयी द्वारका।
महाभारत ग्रन्थ में एक बहुत ही सुन्दर और भक्ति-भाव की कथा प्रचलित है, जो महाभारत युद्ध के समाप्त होने के बाद की है। जिसमें भगवान शिव द्वारा रचित एक सुन्दर लीला और पांडवो द्वारा अपने पापों से मुक्ति पाने का एक खूबसूरत वर्णन मिलता है। जिसके साक्ष्य आज भी उत्तराखंड के पंच केदार मंदिर (केदारनाथ, मध्यमहेश्वर, रुद्रनाथ, तुंगनाथ, कल्पेश्वर) के रूप में देखने को मिलते हैं।
इस ब्लॉग में हम जिस मंदिर की यात्रा से सम्बंधित जानकारी आपके साथ साझा करने वाले हैं, वह मध्यमहेश्वर मंदिर है। जहाँ भगवान शिव ने पांडवो को अपने मध्य भाग के दर्शन दिए थे। इस ब्लॉग के माध्यम से आप मध्यमहेश्वर मंदिर से सम्बंधित सभी जानकारियों जैसे- मध्यमहेश्वर मंदिर कहाँ है? मध्यमहेश्वर मंदिर की यात्रा कैसे करें? मंदिर के आस-पास कहाँ रुके? यात्रा रूट, यात्रा करने का सबसे अच्छा समय, यात्रा के दौरान नेटवर्क कहाँ हैं? आदि को जान सकते हैं। तो ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़े…
शार्ट जानकारी
यात्रा | मध्यमहेश्वर मंदिर |
स्थान | मध्यमहेश्वर, रांसी गांव, उखीमठ उत्तराखंड |
ट्रेक डिस्टेंस | 16 किलोमीटर |
ट्रेक शुरुआती बिंदु | रांसी/आगतौली गांव |
बेस्ट टाइम | मई से जून और सितम्बर से नवंबर |
निकटतम रेलवे स्टेशन | हरिद्वार और ऋषिकेश रेलवे स्टेशन |
निकटतम एयरपोर्ट | जॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून |
मध्यमहेश्वर मंदिर कहाँ पर है?
मध्यमहेश्वर मंदिर, भगवान शिव के पंच केदार मंदिरो में से एक है। यह मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के गढ़वाल क्षेत्र में रांसी गांव से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर 3497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहाँ तक पहुंचने के लिए आपको 16 किलोमीटर की पैदल दूरी तय करनी होगी।
मध्यमहेश्वर मंदिर ओपनिंग और क्लोसिंग डेट 2025
मध्यमहेश्वर बाकि चार धाम और पंच केदार मंदिरो की तरह ही साल में सिर्फ 6 महीनो के लिए खुलता है बाकि 6 महीनो के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। 2025 में मंदिर के कपाट 22 मई को खोले गए थे, जो अब नवंबर में 20 तारीख को बंद कर दिए जायेंगे। इसके बाद अगली साल 2026 में मई के महीने में पुनः मंदिर के कपाट खोल दिए जायेंगे।
मध्यमहेश्वर मंदिर की कहानी
मध्यमहेश्वर मंदिर भगवान शिव के पंच केदार मंदिरो में चतुर्थ केदार है। इस मंदिर के निर्माण के पीछे एक बहुत ही सुन्दर कहानी छिपी है, जो महाभारत काल की बताई जाती है। ऐसा माना जाता है की महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव अपने गुरुजनो, भाइयो और मित्रगणों के हत्या के दोषी बन गए थे, जिससे वे मुक्ति पाना चाहते थे। पांचो पांडव द्रौपदी सहित ब्रह्मा जी के पास अपने पापों से मुक्ति पाने के उपाए के बारे में पूछने जाते हैं। ब्रह्मा जी कहते हैं की तुम सभी को महादेव की आराधना करनी चाहिए और उनसे मिलकर अपने पापों के प्राश्चित के लिए क्षमा मांगनी चाहिए।
ये सुनकर सभी पांडव कैलाश की और भगवान शिव से मिलने के लिए निकल जाते हैं लेकिन भगवान शिव सभी पांडवो से बहुत नाराज थे क्योंकि पांडव लड़े सही के लिए थे लेकिन उन्होंने अपने गुरुजनो और प्रियजनों का वध किया था। जिससे भगवान शिव एक बैल का रूप लेकर उत्तराखंड के गुप्तकाशी जगह पर छिप जाते हैं। जब पांडव कैलाश पहुंचते हैं तो उन्हें भगवान शिव के दर्शन नहीं होते हैं जिसके बाद वे दुखी मन से भगवान शिव की खोज में हिमालय की ओर निकल पड़ते हैं।
जब भगवान शिव को पता चलता है कि सभी पांडव उसी ओर उन्हें ढूढ़ते हुए आ रहे हैं तब भगवान शिव वहां से अंतर्ध्यान हो जाते हैं और केदारनाथ की ओर निकल जाते हैं। (जिस जगह पर भगवान शिव अंतर्ध्यान यानि गुप्त हुए थे आज वह जगह गुप्तकाशी के नाम से जानी जाती है।) सभी पांडव भी भगवान शिव को ढूढ़ते हुए केदारघाटी की ओर निकल जाते हैं। भगवान शिव एक लीला रचते हैं और एक बैलो के झुण्ड में मिल जाते हैं लेकिन जब पांडव उन बैलो के झुण्ड को देखते हैं तो वो समझ जाते हैं कि हो न हो भगवान शिव इन्हे बैलो में छिपे हुए हैं।
पांडवो में से भीम अपने कद को ऊँचा करके दो पहाड़ो की चोटी पर रख लेते हैं और बाकि पांचो पांडव भाई उन बैलो को भीम के पैरो के बीच से निकालने लगते हैं। तभी एक बैल थोड़ा उग्र व्यवहार करने लगता है और भीम के पैरो के बीच से नहीं निकलता है। सभी पांडव समझ जाते हैं की यही भगवान शिव हैं, जिसके बाद भीम बैल की पूँछ को पकड़ लेता है लेकिन बैल धरती में समा जाता है।
सभी पांडवो की दृण संकल्प शक्ति और भक्ति भाव को देखकर भगवान शिव खुश हो जाते हैं और उन्हें पंच केदार के रूप में दर्शन देते हैं। जिसमें बैल की पीठ केदारनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, भुजा तुंगनाथ में, नाभि मध्यमहेश्वर में और जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट होती हैं। इस तरह पांडव इन सभी जगहों पर भगवान शिव के मंदिरो का निर्माण कराते हैं और उनकी पूजा करते हैं। जिससे वे अपने पापों से मुक्ति पाते हैं।
मध्यमहेश्वर मंदिर की टाइमिंग
आपको यात्रा के दौरान मध्यमहेश्वर मंदिर की टाइमिंग के बारे में जरूर पता होना चाहिए। जिससे आप सही समय पर पहुंचकर मंदिर में भगवान शिव के दर्शन कर सकें और आरती में भी शामिल हो सकें। मध्यमहेश्वर मंदिर सुबह 6 बजे खुल जाता है और आरती होने के बाद लगभग 12 बजे तक खुला रहता है। इसके बाद मंदिर के कपाट कुछ समय के लिए बंद कर दिए जाते हैं, जो पुनः शाम को 4 बजे खोले जाते हैं। मंदिर में शाम की आरती लगभग 7 बजे होती है और पूजा होने के बाद 8 बजे तक मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
- मंदिर की टाइमिंग:- सुबह 6 से दोपहर 12 बजे तक और पुनः शाम 4 बजे से रात 8 बजे तक
- आरती टाइमिंग:- सुबह 6 बजे और शाम 7 बजे
मध्यमहेश्वर मंदिर ट्रेक
मध्यमहेश्वर मंदिर तक पहुंचने के लिए 16 किलोमीटर का ट्रेक करना होता है। यह खूबसूरत ट्रेक रांसी गांव से शुरू होता है, जो इस ट्रेक का बेस कैंप है। इस ट्रेक के दौरान आप पहाड़ी समतल रास्तो, खूबसूरत रिमोट गांव, घने देवदार के जंगलो और हरे घास के बुग्याल से होकर जाते हो। ट्रेक के दौरान आपका साथ देती है “मधु गंगा”, जिसके साथ-साथ ही आप इस पूरे ट्रेक को कम्पलीट करते हैं।
वैसे इस ट्रेक को आसान से मध्यम श्रेणी में रखा गया है और आप आसानी से अपनी चाल के अनुसार इस ट्रेक को कर सकते हैं। इस ट्रेक को आप दो हिस्सों में पूरा करें पहले दिन आप कुछ दूरी तय करें और फिर अगले दिन कुछ दूरी तय करें, जिससे आप पूरे ट्रेक को एन्जॉय करते हुए इस ट्रेक को कम्पलीट कर सकते हैं।
घोड़ा/खच्चर का शुल्क
यदि आप चलने में असमर्थ हैं या फिर आप अपने माँ या पिता जी के साथ आ रहे हैं तो आप इस पैदल दूरी को घोड़ो और खच्चरों की सहायता से पूरा कर सकते हैं। सरकार द्वारा घोड़ो/खच्चरों का शुल्क सिमित किया गया है, जिसके बारे में हम नीचे बता रहे हैं…
आगतौली धार से मध्यमहेश्वर 1 दिन (आना-जाना) | 6000 रुपये (80 किलो के व्यक्ति तक) |
आगतौली धार से मध्यमहेश्वर मंदिर सिर्फ जाना | 3000 रुपये |
आगतौली धार से मध्यमहेश्वर मंदिर 1 दिन (आना-जाना) | 6000 + 2000 रुपये (80 किलो से अधिक व्यक्ति का) |
मध्यमहेश्वर मंदिर का यात्रा परमिट
यदि आप केदारनाथ मंदिर की यात्रा करते हैं तो आपको पहले से यात्रा का रजिस्ट्रेशन कराना होता है लेकिन मध्यमहेश्वर मंदिर की यात्रा करने के लिए आपको किसी भी तरह का कोई रजिस्ट्रेशन नहीं करना होता है। आप इस यात्रा को सीधे शुरू कर सकते हैं, बस आपको रांसी गांव से ट्रेक शुरू करने के बाद बीच में गौंडार नाम का गांव आता है जहाँ एक चौकी बनी हुयी है, जहाँ आपको अपनी एंट्री करानी होगी।
मध्यमहेश्वर मंदिर की यात्रा के दौरान कहाँ रुके?
मध्यमहेश्वर मंदिर की यात्रा रांसी गांव से शुरू होती है और यही इस यात्रा का बेस गांव है। यदि आप हरिद्वार से सुबह 7 या 8 बजे अपनी यात्रा शुरू करते हैं तो आप शाम को लगभग 3 से 4 बजे तक रांसी गांव पहुंच जायेंगे। मध्यमहेश्वर यात्रा के दौरान रुकने के लिए आपको सबसे अच्छे होम स्टे और गेस्ट हाउस रांसी गांव में ही मिलेंगे। यहाँ आपको 1000 रुपये में 3 से 4 लोगो के लिए रूम मिल जायेंगे।
इसके अलावा ट्रेक के दौरान बीच-बीच में पड़ने वाले गांव में भी बहुत से रुकने के ऑप्शन मिल जायेंगे। ट्रेक के दौरान आपको आगतौली, गौंडार, मुंडार, के साथ मंदिर के पास बने कुछ धर्मशालाओं में रुकने की व्यवस्था मिल जाएगी। इसके अलावा मंदिर के पास बनी धर्मशालाओं में रूम आपको 1500 से 2500 रुपये में 5 से 6 लोगो के लिए मिल जायेगा। इसके साथ ही मंदिर के पास एक डारमेट्री भी बनी हुयी है, जिसका किराया 350 रुपये प्रति व्यक्ति है। तो आप अपने समय और लोगो के अनुसार रुक सकते हैं।
मध्यमहेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे?
मध्यमहेश्वर मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यहाँ तक पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले हरिद्वार, ऋषिकेश या देहरादून पहुंचना होगा और फिर इन सभी जगहों से आप बस, प्राइवेट टैक्सी या फिर बाइक रेंट पर लेकर मध्यमहेश्वर मंदिर तक पहुंच सकते हैं। नीचे हम विस्तार से सड़कमार्ग, रेलमार्ग और हवाईमार्ग द्वारा आप मध्यमहेश्वर मंदिर तक कैसे पहुंच सकते हैं उसके बारे में बता रहे हैं। तो जानकारी को ध्यान से पढ़े…
हवाईमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?
यदि आप उत्तराखंड के अलावा किसी और राज्य से मध्यमहेश्वर मंदिर की यात्रा पर आ रहे हैं और आप फ्लाइट द्वारा यात्रा की दूरी तय करना चाहते हैं तो आप सिर्फ देहरादून तक ही फ्लाइट द्वारा आ सकते हैं। मध्यमहेश्वर मंदिर के सबसे निकटतम एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो देहरादून में स्थित है। देहरादून से बाकि की यात्रा आपको बस या फिर प्राइवेट टैक्सी द्वारा पूरी करनी होगी। यदि आपको देहरादून से सीधे रांसी गांव के लिए बस या टैक्सी नहीं मिलती है तो आप हरिद्वार या ऋषिकेश पहुंच सकते हैं और फिर वहां से टैक्सी लेकर रांसी गांव, जो मध्यमहेश्वर मंदिर का बेस गांव है।
रेलमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?
मध्यमहेश्वर मंदिर के सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार और ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है। हरिद्वार और ऋषिकेश के लिए ट्रेनें आपको भारत के हर हिस्से से मिल जाएँगी। ट्रेन द्वारा हरिद्वार पहुंचने के बाद आप मंदिर तक की बाकि की दूरी बस या फिर प्राइवेट टैक्सी बुक करके या फिर शेयरिंग टैक्सी द्वारा पूरा कर सकते हैं।
सड़कमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?
उत्तराखंड में यात्रा करने का सबसे अच्छा साधन है की आप अपनी यात्रा सड़कमार्ग द्वारा पूरा करें। मध्यमहेश्वर मंदिर की यात्रा करने के लिए आपको सबसे पहले हरिद्वार या ऋषिकेश पहुंचना होगा और फिर वहां से आप बस या टैक्सी द्वारा मंदिर के बेस गांव रांसी पहुंच सकते हैं। हरिद्वार से आपको सीधे उखीमठ के लिए प्राइवेट और सरकारी दोनों तरह की बसे मिल जाएँगी, जो हरिद्वार से सुबह 4 बजे से चलना शुरू कर देती हैं। हरिद्वार से उखीमठ तक का किराया 345 रुपये प्रति व्यक्ति है। यदि आप हरिद्वार से रांसी गांव तक के लिए शेयरिंग टैक्सी बुक करते हैं तो ये आपको 10 से 12 हज़ार रुपये में मिल जाएगी।
उखीमठ से आप प्राइवेट शेयरिंग टैक्सी द्वारा रांसी गांव तक पहुंच सकते हैं, जिसका शेयरिंग किराया 200 रुपये प्रति होता है। इसके अलावा यदि आप 5 से 6 लोग हो तो आप उखीमठ से टैक्सी बुक कर सकते हैं, जिसका किराया 2000 रुपये 2500 रुपये तक होता है।
यदि आपको उखीमठ के लिए सीधे बस नहीं मिलती है तो आप सोनप्रयाग जाने वाली बस भी ले सकते हैं, जो आपको कुंड नाम की जगह पर छोड़ देगी और आप वहां से शेयरिंग टैक्सी द्वारा रांसी गांव तक पहुंच सकते हैं। कुंड से रांसी गांव तक का शेयरिंग किराया 200 रुपये प्रति व्यक्ति होता है और यदि आप गाड़ी बुक करके ले जाना चाहते हैं तो ये आपको लगभग 2000 रुपये में मिल जाएगी।
हरिद्वार से मध्यमहेश्वर मंदिर तक का रूट
- रूट:-1 हरिद्वार – उखीमठ – रांसी गांव – आगतौली – खद्दर – मध्यमहेश्वर मंदिर
- रूट:-2 हरिद्वार- कुंड – रांसी गांव – आगतौली – खद्दर – मध्यमहेश्वर मंदिर
बाइक रेंट द्वारा
यदि आप फ्रेंड्स के साथ इस यात्रा को करने आ रहे हैं और आपको पहाड़ो पर बाइक चलाने का अच्छा अनुभव है तो आप हरिद्वार या ऋषिकेश से बाइक या स्कूटी रेंट पर ले सकते हैं। हरिद्वार में बहुत सी लोकेशन पर बाइक और स्कूटी रेंट पर मिलती हैं। इनका किराया सीजन पर निर्भर करता है।
यदि आप मंदिर के कपाट खुलने के समय पर आ रहे हैं तो बाइक आपको 1000 रुपये से 1500 रुपये तक के बीच में मिल जाएँगी जबकि स्कूटी 600 से 1000 रुपये के बीच में मिल जाएँगी। बाकि सीजन हल्का होने पर इनके चार्ज कम हो जाते हैं। बाइक रेंट पर लेने के लिए आपके पास ड्राइविंग लाइसेंस और आधार कार्ड जरूर होना चाहिए। यदि आपने पहले कभी पहाड़ो पर ड्राइव नहीं किया है तो आप इस ऑप्शन को यूज़ न करें।
FAQ
- Q.1 मध्यमहेश्वर मंदिर ट्रेक कितने किलोमीटर का है?
- Ans. मध्यमहेश्वर मंदिर ट्रेक 16 किलोमीटर लम्बा है।
- Q.2 मध्यमहेश्वर ट्रेक का स्टार्टिंग पॉइंट क्या है?
- Ans. मध्यमहेश्वर ट्रेक का स्टार्टिंग पॉइंट रांसी गांव है।
- Q.3 मध्यमहेश्वर मंदिर ट्रेक के दौरान नेटवर्क हैं?
- Ans. मध्यमहेश्वर मंदिर ट्रेक के दौरान आपको रांसी और आगतौली गांव तक अच्छे जिओ और एयरटेल के नेटवर्क देखने को मिलेंगे। इसके बाद ट्रेक के बीच-बीच में ही आपको नेटवर्क देखने को मिलेंगे।
- Q.4 मध्यमहेश्वर मंदिर की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय कौन-सा है?
- Ans. मध्यमहेश्वर मंदिर की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय मंदिर के कपाट खुलने से लेकर जून तक और फिर सितम्बर मिड से अक्टूबर तक का है। जुलाई से अगस्त के बीच में इस यात्रा को करने से बचना चाहिए क्योंकि जुलाई से अगस्त मानसून सीजन होता है और ऐसे में अधिक बारिश होने पर लैंड स्लाइड का खतरा काफी रहता है।