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हर की दून ट्रेक- ट्रेक से सम्बंधित पूरी जानकारी , कैसे पहुंचे?, क्यों ट्रेकिंग पैकेज लेना चाहिए? आदि (Har Ki Doon Trek- Complete information related to the Trek, How to Reach?, Why should one take Trekking Package? Etc.)

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यदि आप घूमने के शौकीन हैं और आपको ट्रेकिंग करना पसंद है, तो आगे की जानकारी और जगह आपके लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इस ब्लॉग में हम एक ऐसी दिलचस्प जगह के बारे में जानने जा रहे हैं जो की खूबसूरत पहाड़ो और खुली वादियों के बीच स्थित है जो ट्रेकर्स को बहुत ही ज्यादा पसंद आती है। अगर आप भी एक ट्रेकर हैं तो ये जगह आपके लिए है।

हम बात कर रहे हैं – “हर की दून ट्रेक” की। जिसकी खूबसूरती हर मौसम में खुद प्रकृति सुन्दर पेड़ पौधों, रंग बिरंगे फूल और सफ़ेद बर्फ की चादर द्वारा सजाती है। तो आइये जानते हैं इस पुरे ट्रेक के बारे में..

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हर की दून ट्रेक किस जगह है?

अधिकतर ट्रेक्स उत्तराखंड और हिमांचल प्रदेश में ही स्थित हैं। हर की दून उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में है। ये यमुना की सहायक नदी सुपिन व रूपिन के आस पास फ़तेह पर्वत के गोद में बसा हुआ है। हर की दून ट्रेक का बेस कैंप कोटगांव है, यहाँ से ही इस ट्रेक की ट्रैकिंग शुरू होती है। हर की दून को “देवताओ की घाटी” कहा जाता है।

हर की दून ट्रेक

हर की दून ट्रेक की कुछ बेसिक बाते

  • हर की दून ट्रेक की कठनाई आसान से मध्यम है, इसे करने में आपको ज्यादा कठनाई नहीं होगी और आप इसे अच्छे से गाइड की सहायता से पूरा कर सकते हैं।
  • इस ट्रेक की अवधि लगभग 7 दिनो की होती है। बाकी अगर आप इसे खुद ही पूरा कर रहे हैं तो ये आपके ऊपर है की आप यहाँ कितने दिनों तक रुकना चाहते हैं और अगर आप इसे किसी ट्रैकिंग साइट्स द्वारा कम्पलीट कर रहे है तो आपने कितने दिनों का पैकेज लिया है उस पर भी निर्भर करता है।
  • इस ट्रेक की सबसे अधिक ऊंचाई 11600 फीट की है। आपको इस ऊंचाई तक ही चढ़ाई करनी होगी। जो की बीच- बीच में समतल रास्ता भी आता है।
  • इस ट्रेक का बेस कैंप कोटगांव है जहाँ तक आप गाड़ी द्वारा पहुंच सकते हैं।

हर की दून ट्रेक कितना कठिन और कितना लम्बा है?

इस ट्रेक की डिफीकल्टी को आसान से मध्यम के बीच में रखा गया है। ये ट्रेक लगभग 52 किलोमीटर लम्बा है जो की लगभग 7 से 8 दिन का होता है। इस ट्रेक में आप बेस कैंप कोटगांव से 6455 फीट की ऊंचाई से हर की दून में 11600 फीट की ऊंचाई तक का सफर तय करते हैं। इस ट्रेक में आपको रोजाना औसतन 10 से 12 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी होती है, जो की इस ट्रेक को थोड़ा कठिन बनाता है। वैसे इस ट्रेक का मार्ग आसानी सामान्य से भरा हुआ है जो की पैदल यात्रा द्वारा कम्पलीट करनी होती है।

आप इस ट्रेक का प्लान कैसे करे?

अगर आप इस ट्रेक पर जाना चाहते हैं और सोच रहे हैं की किस प्रकार से इस ट्रेक का प्लान किया जाये तो मैं आपको बता दू की आप एक अच्छी सी ट्रैकिंग कंपनी जो ऐसे ट्रेक्स को मैनेज करती हो उनके द्वारा आपको अपनी इस ट्रिप को मैनेज कराना चाहिए। इनकी वेबसाइट पर जाकर आप इनसे कांटेक्ट कर सकते हैं। आप जब भी ट्रेकिंग कंपनी का कोई भी पैकेज ले तो उनकी सभी पॉलिसी और इनफार्मेशन को ध्यान से पढ़ ले। सभी कंपनी की कुछ न कुछ कैंसलेशन पॉलिसी होती है तो आप उसे जरूर पढ़े। आप जब पूरी तरह से संतुष्ट हो जाये तभी आप अपना पैकेज बुक करे।

यहाँ खाने के लिए ढाबा या रेस्ट्रोरेंट?

जब आप ऐसी किसी जगह घूमने जातें हैं जो पहाड़ी इलाका हो तो वहां ये ढाबा या रेस्ट्रोरेंट मिलना काफी मुश्किल होता है। तो ऐसे में आपके लिए सबसे अच्छा यही होगा की आप जब ऐसे ट्रेक पर जाए तो किसी ट्रेकिंग कंपनी द्वारा अपना पैकेज बुक करे जो सबसे अच्छा होता है।

अगर आप ट्रेक को खुद मैनेज कर रहे हैं और आप यहाँ कितने दिन रुकना चाहते हैं और आप ग्रुप में कितने लोग हैं, उस हिसाब से आपको अपना राशन खुद ही लाना होगा। इन सभी सामान को ले जाने के लिए आप यहाँ के बेस कैंप के गांव से किसी लोकल को साथ ले जा सकते हैं। इस ट्रेक के रास्ते में पड़ने वाले गांव में भी आप रुक सकते है, यहाँ गांव के लोग ट्रेकर्स के लिए अपने घर में रहने के लिए रूम रेंट पर देते हैं और आप उनके घर खाना भी खा सकते हैं।

यदि आप किसी ट्रेकिंग कंपनी द्वारा हर की दून ट्रेक को मैनेज कराते हैं तो आपको किसी भी चीज की चिन्ता करने की कोई भी जरुरत नहीं होती है क्यूंकि खाने से सम्बंधित सभी तरह के काम को वो खुद ही मैनेज करते हैं। कंपनी आपके साथ अपने लोगो को भेजती है जिसमे उन लोगो में से एक खाना बनाने वाला भी व्यक्ति होता है, जो अपने साथ लाये खाने को बनाता है।

हर की दून ट्रेक के दौरान शौचालय और पानी?

जब आप ऐसे किसी भी ट्रेक पर जातें है तो आपके मन में बहुत से सवाल होते है जिनमे से एक होता है की आप यहाँ शौचालय को कैसे मैनेज करना होगा तो ऐसे ट्रेक में आपको सार्वजनिक शौचालय नहीं मिलेंगे। अगर आप खुद इस ट्रिप को मैनेज कर रहे हो तो आप एक अस्थाई शौचालय बनाये उसे ही उसे करे। अगर आप वहां किसी ट्रेकिंग कंपनी द्वारा जा रहें है तो वो कुछ आस्थायी शौचालय की व्यवस्था करते हैं। जिसको आपको यूज़ करना होता है।

बाकि यहाँ पानी की कोई कमी नहीं है आपको पहाड़ो और नदियों से आने वाले पानी का ही यूज़ करना होता है। अपने ट्रेकिंग गाइड अनुसार ही वहां के पानी का यूज़ करे यही आपके लिए अच्छा होगा।

क्या हर की दून ट्रेक में एटीएम है?

आप जब भी ऐसे किसी ट्रेक पर जाए तो जितना संभव हो सके उतना कैश अपने साथ रखे क्यूंकि यह पहाड़ी इलाका होने के कारण यहाँ आपको एटीएम मिलना बहुत ही मुश्किल है। अगर आपके पास कैश नहीं है तो आप देहरादून से बेस कैंप की ओर जातें वक़्त ही शहर के मुख्य मार्केट के एटीएम या बैंक से कैश निकाल ले। मुख्य शहर में आपको एटीएम और बैंक आसानी से मिल जाएँगी। इस ट्रेक के सबसे निकट एटीएम, ट्रेक से 48 किलोमीटर पहले पुरोला में पड़ता है जो की लास्ट एटीएम है जो आपके लिए कैश निकालने का लास्ट ऑप्शन है।

हर की दून ट्रेक करने का सबसे बेस्ट टाइम?

ये ट्रेक साल में लगभग 7 महीनो तक खुला रहता है। यह साल में मार्च से लेकर जून तक उसके बाद मानसून की दस्तक से जुलाई अगस्त में गोविन्द पशु विहार अभ्यारण्य बंद कर दिया जाता है जिससे ये ट्रेक भी बंद कर दिया जाता है। इस ट्रेक को मानसून के बाद सितम्बर में दुबारा खोल दिया जाता है फिर इस ट्रेक नवंबर लास्ट तक ट्रेकर्स कर सकते हैं। इस ट्रेक में मौसम के हिसाब से आपको यहाँ की अलग अलग रंगत और खूबसूरत नज़ारे देखने को मिलते हैं।

मार्च से जून

हर की दून ट्रेक मार्च में शुरू होता है, जो की मेरे हिसाब से सबसे अच्छा टाइम होता है इस ट्रेक को करने का क्यूंकि यही वो समय होता है जब सर्दियों का पीक मौसम निकल कर हल्के सुहाने मौसम की ओर बढ़ता है।

march mausam

इस समय में अगर आपकी किस्मत अच्छी हो तो बर्फवारी भी देखने को मिल सकती है। वही दिसंबर से लेकर फरवरी तक हुई बर्फवारी के कारण यहाँ चारो ओर सफ़ेद बर्फ की चादर देखने को मिल जाएगी। ये वो टाइम होता है जिसमे मैदानी इलाको में काफी तेज़ गर्मी पड़ रही होती है जिससे राहत के लिए भी लोग इस ट्रेक को मार्च से जून के बीच में करना पसंद करते हैं।

जुलाई से अगस्त

जुलाई से हमारे पुरे देश में मानसून दस्तक देने लगता है और मैदानी इलाको की तुलना में इन पहाड़ी इलाको में मानसून जल्दी ही दस्तक देने लगता है। इस समय में उत्तराखंड सरकार द्वारा मानसून होने की वजह से गोविन्द पशु विहार अभ्यारण्य बंद कर दिया जाता हैं जिस कारण हर की दून ट्रेक को बंद कर दिया जाता है। भारी बारिश होने की वजह से इस ट्रेक तक पहुंचने के मार्ग भी ब्लॉक हो जाते हैं जिस कारण लोगो की सुरक्षा को देखते हुए इस ट्रेक को बंद कर दिया जाता है।

सितम्बर से नवंबर लास्ट

मानसून जाने के बाद लगभग सितम्बर के शुरू या मानसून को देखते हुए हर की दून ट्रेक को पुनः ट्रेकर्स के लिए खोल दिया जाता है। ये समय हल्के हल्के ठंडो के आने का होता है जिस बीच में आपको मैदानी इलाको की तुलना में इस जगह अच्छी खासी ठण्ड महसूस करने को मिलेगी। अगर आपको बर्फ देखने की चाहत है तो ये सबसे बेस्ट टाइम होता है ठण्ड और बर्फवारी को महसूस करने का। ये मौसम थोड़ा कठनाई से भरा हुआ होता है, क्यूंकि अधिक ठण्ड होने की वजह से आपको इस समय में ट्रेकिंग करने में काफी कठनाई रहती है।

दिसंबर से फरबरी

इस ट्रेक को बहुत ज्यादा ठण्ड और बर्फ पड़ने की वजह से नवंबर के बाद से बंद कर दिया जाता है और जब तक भारी बर्फवारी होती है तब तक इस ट्रेक को बंद ही रखा जाता है। ये ट्रेक दिसंबर के शुरू से फ़रवरी के लास्ट तक बंद ही रहता है और फिर मार्च में इसको दुबारा खोल दिया जाता है।

winter mausam

आप बेस कैंप तक कैसे पहुंच सकते हैं?

हर की दून ट्रेक को करने के लिए आपको यहाँ के बेस कैंप तक पहुंचना होगा। इसके लिए आपको सबसे पहले देहरादून आना होगा जहाँ से आप यहाँ के बेस कैंप कोटगांव तक पहुंच सकते हैं। आपको देहरादून के लिए सीधे बसे वैसे तो भारत के किसी भी कोने से मिल जाएँगी, लेकिन सबसे ज्यादा आसान दिल्ली से पहुंचना ही रहता है जहाँ से आपको सरकारी बसे और प्राइवेट वॉल्वो बसे दोनों ही मिल जाएँगी।

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दिल्ली से देहरादून की दुरी लगभग 250 किलोमीटर की है जिसे पूरा करने में लगभग 5 से 6 घंटे लगते हैं। देहरादून में आप मसूरी बस स्टैंड से संकारी के लिए सरकारी बस ले जो की एक ही दो चलती है बाकि आपको यहाँ से प्राइवेट बसे भी मिल जाएँगी, जिसका किराया 450 रुपये प्रति व्यक्ति होता है।

बस द्वारा कैसे पहुंचे?

किसी भी जर्नी को करने के लिए जो सबसे अच्छा साधन है, जो मुझे लगता है वो है बस। बस द्वारा जर्नी करने का जो मज़ा आता है वो किसी भी वाहन से करने में नहीं है। अगर आप बस द्वारा इसको कम्पलीट करना चाहते हैं तो आप सबसे पहले दिल्ली पहुंचे क्यूंकि दिल्ली से बस मिलना बहुत ही आसान हैं, यहाँ से आपको सरकारी बसे और प्राइवेट वॉल्वो बसे आसानी से मिल जाएँगी।

दिल्ली से देहरादून तक का सफर बस द्वारा तय करे और मसूरी बस स्टैंड से बेस कैंप तक की दुरी को भी बस द्वारा तय कर सकते हैं। मसूरी बस स्टैंड से प्राइवेट बसे तो आसानी से मिल जाएँगी लेकिन सरकारी बस कम ही मिलती है तो आप जितनी जल्दी सुबह में बस स्टैंड से बस ले ले वही अच्छा होगा।

यदि आप ट्रेकिंग कंपनी द्वारा हर की दून ट्रेक को कर रहे हैं तो आपको कंपनी के बताये गए पिकउप पॉइंट तक पहुंचना होता है। जहाँ से ट्रेकिंग कंपनी की गाड़ी आपको ट्रेक के बेस कैंप तक पहुंच देती है। अधिकतर कंपनी पिकउप पॉइंट से बेस कैंप तक का जो सफर होता है उसका अलग चार्ज करती हैं, जो की आपको बेस कैंप पहुंचकर गाड़ी के ड्राइवर को देना होता है। इसके बारे में भी पैकेज लेते समय जरूर जान ले।

ट्रेन द्वारा कैसे पहुंचे?

अगर आप ट्रेन द्वारा इस जर्नी को करना चाहते हैं तो बेस कैंप के सबसे नजदीक स्टेशन देहरादून रेलवे स्टेशन है। जो की भारत के कई शहरों के स्टेशनो से जुड़ा हुआ है। देहरादून के लिए ट्रेने आपको दिल्ली से आराम से मिल जाएँगी। देहरादून से बेस कैंप तक के सफर को आपको सड़कमार्ग द्वारा ही तय करना होगा। देहरादून से बेस कैंप तक की दुरी लगभग 198 किलोमीटर की है, जिसे तय करने में आपको लगभग 5 से 6 घंटे लगेंगे।

हवाईजहाज द्वारा कैसे पहुंचे?

अगर आप सोच रहे हैं की इस जर्नी को फ्लाइट द्वारा करना चाहिए तो मैं आपको बता दू की यहाँ इस ट्रेक के बेस कैंप के सबसे अधिक निकट एयरपोर्ट जॉली ग्रांट (देहरादून) है। जो की देश के बाकि एयरपोर्ट से जुड़ा हुआ है। आपको देहरादून एयरपोर्ट से बाकी की जर्नी को सड़कमार्ग द्वारा ही कम्पलीट करना होगा।

हर की दून ट्रेक कितने दिन का होता है और आप कहाँ-कहाँ ट्रेक करते हैं?

देखा जाये तो हर की दून ट्रेक 7-8 दिन का होता है। पहला दिन आपका पिकउप पॉइंट से काउंट होना शुरू हो जाता है, जहाँ से आपके ट्रिप के दिन शुरू हो जाते हैं। तो अब हम इन 7-8 दिनों में कौन कौन सी जगह ट्रेकिंग करते हैं, इसके बारे में जानेंगे-

दिन-01 (पिकउप पॉइंट से कोटगांव)

हर की दून ट्रेक का पहला दिन आपका पिकउप पॉइंट से शुरू होता है, जहां से आपको पिकउप करके गाड़ी द्वारा कोटगांव तक लाया जाता है। ज्यादातर कंपनी का पिकउप पॉइंट देहरादून होता है। यहाँ से आपको गाड़ी द्वारा 9 – 10 घंटे की बहुत ही प्यारी सी यात्रा करनी होती है, जिसकी दुरी लगभग 196 किलोमीटर की होती है। इस यात्रा के दौरान आप देहरादून से निकलकर धीरे धीरे मसूरी और हिमालय के पहाड़ो को करीब से देखते हैं जो इस जर्नी का एक खूबसूरत भाग होता है।

इस सफर के दौरान आप गढ़वाल हिमालय की चोटियां देखते हैं जो बहुत ही सुन्दर लगती है। यात्रा का यह भाग थोड़ा सा थकान भरा हो सकता है पर हल्की ठंडी चलती हुयी हवा और दूर दिखाई देते हुए दृश्य सफर की पूरी थकान को दूर कर देते हैं।

ट्रिप का यह पहला दिन बेस कैंप कोटगांव में आकर समाप्त होता है। जहाँ आपकी ट्रिप के बाकी मेंबर्स से मुलाक़ात होती है। आज की रात आपको कोटगांव में आपके पैकेज के अनुसार यहाँ के होटल में बितानी होती है, जहाँ आप रात का डिनर करते हैं और अगले दिन से शुरू होने वाले ट्रेक के लिए तैयार होते हैं।

दिन- 02 (कोटगांव से तालुका तक ड्राइव और तालुका से गंगाड तक)

आपकी सुबह कोटगांव में होती है जहाँ आप ट्रिप की पहली सुबह का पहाड़ी नास्ता करते हैं और इसके बाद आप गाड़ी से 1.5-2 घंटे का सफर तय करके तालुका तक पहुंचते हैं, जिसकी दुरी 12 किलोमीटर की है। यह रास्ता भूस्खलन से प्रभावित है तो कभी कभी यह रास्ता ब्लॉक होने की वजह से यह दुरी भी ट्रेक द्वारा ही करनी पड़ सकती है। तालुका पहुंचने के बाद से आपका ट्रेक शुरू होता है, जहाँ से आपको 9 किलोमीटर का ट्रेक करना होता है, जिसे पूरा करने में आपको 5 से 6 घंटे लगते हैं।

हर की दून ट्रेक में पहले 3 किलोमीटर समतल ढाल फिर इसके बाद हल्के हल्के चढ़ाई शुरू हो जाती है। आज के दिन आप 6455 फ़ीट से 7667 फ़ीट की ऊंचाई को कवर करते हैं। आज के ट्रेक के दौरान आप लकड़ी के पुल से लेकर सुन्दर पहाड़ो के बीच से होकर जाते हैं जिसमे आपका साथ नदियां देती हैं। हल्के हल्के ट्रेक करते हुए आप गंगाड तक पहुंचेंगे जो की आज रात का रुकने का ठिकाना होगा।

गंगाड एक बहुत ही प्यारा और एक प्राचीन बस्ती है जहाँ आप कुछ पक्के बने हुए घर देख सकते हैं। यहाँ एक बहुत ही प्राचीन मंदिर भी बना हुआ है, जिसे “सोमेश्वर महाराज” का मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर निश्चित मौसम में ही खुलता है तो आप यहाँ भी दर्शन कर सकते हैं और यहाँ की पारम्परिक वास्तुकला को देख सकते हैं।

दिन- 03 (गंगाड से कलकतियाधार तक)

तीसरे दिन की सुबह आपकी गंगाड में होगी जहाँ आप सुबह का नास्ता करेंगे। नास्ता करने के बाद शुरू होती है आज की ट्रेकिंग जो की लगभग 8 किलोमीटर की होती है, जिसे पूरा करने में आपको लगभग 6-7 घंटे लगते है। जो सुबह में गंगाड से शुरू होती है और कलकतियाधार में जाकर खत्म होती है।

आज का ट्रेक कल के मुक़ाबले थोड़ा कठिन होगा क्यूंकि पहले कुछ जगह आपको समतल मार्ग ही मिलता है फिर कुछ भाग में आपको एक दम खड़ी चढाई का सामना करना पड़ता है उसके बाद फिर आपको समतल मार्ग का सामना करना पड़ता है और ऐसे ही जाके आज का ट्रेक आपका कलकतियाधार में जाकर रुकता है।

आज का पूरा ट्रेक जितना कठिन है उससे कही ज्यादा सुन्दर है। जो की आपको अपने मनमोहन से दर्शय में मोह लेता है। आज के शुरू का ट्रेक कुछ टेढ़े मेढ़े मोड़ो से होकर जाता है, फिर कुछ टाइम बाद आपको एक लकड़ी से बने पुल से होकर गुजरना पड़ता है जिसके नीचे सुन्दर नदी बह रही होती है।

कुछ दुरी पर चलकर एक छोटा सा ढाबा बना हुआ है जहाँ आप कुछ समय रूककर चाय नास्ता कर सकते हैं। ऐसे ही प्यारे से रास्ते से होकर और सुन्दर दर्शय को देखते हुए आप आज के दिन को अलविदा कहते हैं। आज की रात आपकी कलकतियाधार में व्यतीत होती है और यहाँ आप अपना कैंप लगाकर आज के पुरे दिन को याद करके और रात में कैंप फायर करके गुड नाईट कहते हैं।

दिन- 04 (कलकतियाधार से हर की दून फिर बोस्लो तक)

आज का दिन पूरी ट्रिप का सबसे अच्छा और रोमांचिक दिन होगा क्यूंकि आज आपको वो अनुभव करने को मिलेगा जो आप करना चाहते हैं या जिसके बारे में आपने सोचा भी नहीं होगा। आज की सुबह आपकी कलकतियाधार में होती है और यहाँ से शुरू होती है आपकी आज के दिन की शुरुआत जो 10032 फ़ीट से शुरू होकर 11600 फ़ीट पर जाकर रूकती है। आज के दिन आपको लगभग 9 किलोमीटर का ट्रेक करना होता है जिसे पूरा करने में आपको 5 से 6 घंटे लगेंगे। ये 9 किलोमीटर का ट्रेक पुरे ट्रिप का सबसे सुन्दर ट्रेक होगा आपके लिए।

आज के दिन का ट्रेक शुरुआत में हल्की चढ़ाई के साथ शुरू होता है। जैसे जैसे आप आगे बढ़ते जाते हैं सुन्दर बर्फ से ढके पहाड़ और रास्ते के दोनों ओर भोजपत्र के पेड़ जो ट्रेक की सुंदरता को बड़ा रहे होते हैं। ट्रेक के आगे के भाग में एक बहुत ही सुन्दर झरना आपका स्वागत कर रहा होता है जिसके पास में ही लकड़ी का बना पुल और उसके नीचे से बह रही नदी उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा रही होती है । ट्रेक करते हुए आप हर की दून पहुंचते हैं।

हर की दून- ” हर का मतलब होता है- “देवता” ‘ और दून का मतलब होता है – “घाटी” यानी “देवताओ की घाटी”। इस जगह का दर्शय पुरे ट्रेक के सबसे सुन्दर दर्शय में सबसे ऊपर आता है।

यहाँ एक तरफ प्रकृति अपनी सुंदरता का वर्णन करती है वहीं दूसरी ओर प्राचीन सभ्यता और इसका इतिहास अपना एक अलग ही व्याख्यान करता है। इन प्यारे और सुन्दर दर्शय को देखकर और अपने मोबाइल में क़ैद करके आप ट्रेक करके बोसला की ओर निकल पड़ते हैं। बोसला में ही आज के दिन को आप अलविदा कहते हैं। आज की रात आपकी बोसला में ही व्यतीत होती है।

दिन- 05 (बोस्लो से देवसु थाच)

आज के दिन की सुबह पुरे ट्रेक की सबसे अच्छी सुबह में से एक होगी। मेरा मानना ये है की आप जब भी इस ट्रेक को करते हैं तो आप बोसला में सूर्योदय को देखना बिल्कुल भी मिस ना करे, जो पूरी ट्रिप का सबसे सुन्दर सूर्योदय होता है। जहाँ सूर्य से आती हुयी किरणे जब बर्फ से ढके पहाड़ो पर पड़ती हैं तो उन पहाड़ो को सुनेहरा और सोने जैसा बना देती हैं। जो की देखने में बहुत ही ज्यादा सुन्दर लगता है।

बोसला से शुरू होने वाला आज का ट्रेक ज्यादा लम्बा तो नहीं है पर सुन्दर काफी है। आज के दिन का ट्रेक सिर्फ 5 से 6 किलोमीटर का होगा जिसे पूरा करने में आपको लगभग 5 घंटे लगेंगे। ट्रेकिंग शुरू होने के कुछ किलोमीटर के बाद आप एक जंगल से होकर जाते हैं। जहाँ आप सुन्दर हरियाली और पंछियो की आवाज़ और हल्की हवा को महसूस कर सकते हैं। जंगल से निकल कर आप कुछ बर्फ से ढकी हुयी चोटियों को देख सकते हैं। इस ट्रेक के दौरान आप स्वर्गारोहिणी पर्वत की छोटी भी देख सकते हैं। जिसके बारें में कहा जाता है की आज तक इस पर्वत पर कोई भी नहीं चढ़ पाया है।

आज के ट्रेक को आप हल्के हल्के पूरा करते हैं और लगभग 5 घंटे के इस ट्रेक को देवसु थाच में जाकर खत्म करते हैं। जो आज रात की आपकी मंजिल है। आज की रात आपकी यहाँ अपने कैंप में व्यतीत होती है। जो आपने आने वाले दिन की प्रतीक्षा में गुजरती है।

दिन- 06 (देवसु थाच से धाटमेर तक)

आज आपका अपने बेस कैंप की ओर वापसी का दिन होगा। देवसु थाच से आप गंगाड होते हुए धाटमेर तक पहुंचेंगे। जो आज के रात के रुकने का केंद्र होगा। आज के दिन आपको सबसे ज्यादा लगभग 14 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी होगी। जो थोड़ा आपको थका सकती है। जिसे आप लगभग 6 से 7 घंटे में पूरा करेंगे। देवसु थाच से गंगाड की ओर वापसी में आपको समतल मार्ग फिर इसके बाद आपको गंगाड से धाटमेर तक कुछ चढ़ाई करनी होगी। आज का दिन आपका थोड़ा थकावट से भरा हो सकता है जिसे आपको पूरा करना होगा।

दिन- 07 (धाटमेर से कोटगांव फिर देहरादून तक)

धाटमेर में आपके हर की दून ट्रेक की लास्ट सुबह होगी। यहाँ से सुबह का नास्ता करने के बाद आपको गाड़ी द्वारा कोटगांव तक लाया जाया जायेगा और फिर यहाँ से वापस देहरादून या जिस जगह से आपको पिकउप किया गया है वही आपको छोड़ दिया जाता है। आज की सुबह का अच्छे से स्वागत करे और जाने से पहले अपने सभी ट्रिप के मेंबर्स का आभार व्यक्त करे और इस पूरी ट्रिप और इसके दौरान बिताये गए अच्छे या रोमांचिक पल को याद करके इस ट्रिप को और इस जगह को अलविदा कहे।

कुछ महत्वपूर्ण बातें

  • आप हर की दून ट्रेक के दौरान सभी चीजों को ख़ास ख्याल रखे और अपने गाइड द्वारा बताई गयी बातों का ही पालन करे।
  • आप यहाँ के सुबह के सूर्योदय को बिलकुल भी मिस न करे जो आपको एक अलग सा और अद्धभुत एहसास देता है। बोसला में होने वाले सूर्योदय को तो बिलकुल भी मिस न करे।
  • अपने साथ ले जाई गयी जो भी दवाई हो अगर वो उपयोग न हुयी हो तो उन्हें या तो गांव वालो को दे दे या फिर अपने गाइड को जिससे वो किसी और के काम आ सकती है।
  • आप जब भी ऐसे ट्रिप पर जातें है तो अपना ख़ास ख्याल रखे और बीच बीच में हाइड्रेट होते रहे।
  • आप हर की दून ट्रेक करने से पहले इस जगह के बारे में जान ले और उस हिसाब से अपने सामान की एक लिस्ट तैयार कर ले। उसी हिसाब से अपनी पैकिंग करे।
  • इस तरह के ट्रेक पर आपका फ़ीट होना बहुत ज्यादा आवश्यक है तो इस ट्रेक पर जाने से एक दो हफ्ता पहले से ही अपनी तैयारी शुरू कर दे और सुबह में रनिंग और कुछ एक्सरसाइज करे।

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