जगन्नाथ मंदिर पूरी | मंदिर टाइमिंग, जगन्नाथ मंदिर का इतिहास, पूरी टूरिस्ट प्लेसेस आदि की जानकारी

हिन्दू धर्म में विश्वास रखने वाला हर व्यक्ति कभी न कभी बड़े चार धाम द्वारका, पूरी, रामेश्वरम, बद्रीनाथ की यात्रा जरूर करना चाहता है। ये चार धाम मंदिर भारत के चार कोनो पर स्थित हैं, बद्रीनाथ उत्तर दिशा में, जगन्नाथ पूरी पूरब दिशा में, द्वारका पश्चिम दिशा में और रामेश्वरम दक्षिण दिशा में स्थित है।

इस ब्लॉग में हम जिस धाम की जानकारी आपसे साझा करेंगे वो है- पूरब दिशा में स्थित ओड़िशा का “जगन्नाथ मंदिर पूरी। इस ब्लॉग के माध्यम से आप जगन्नाथ मंदिर की सभी छोटी-बड़ी जानकारियों को जान सकते हैं जैसे- मंदिर खुलने की टाइमिंग, जगन्नाथ मंदिर का इतिहास, जगन्नाथ रथ यात्रा, जगन्नाथ पूरी के आस-पास के दार्शनिक स्थल, जगन्नाथ मंदिर पूरी कैसे पहुंचे? जगन्नाथ पूरी में कहाँ रुके? आदि। तो ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़े और अन्य जानकारियों के लिए फॉलो करें हमारे whatsaap ग्रुप को…

जगन्नाथ मंदिर कहाँ स्थित है?

बड़े चार धामों में से एक जगन्नाथ मंदिर पूरब दिशा में ओड़िशा के पूरी में स्थित है। यह ओड़िशा की राजधानी भुबनेश्वर से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जगन्नाथ मंदिर के सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन पूरी और सबसे निकटतम एयरपोर्ट भुबनेश्वर एयरपोर्ट है।

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और ऐसा माना जाता है की यह मंदिर सतयुग काल का है। जगन्नाथ मंदिर का उल्लेख हिन्दू धर्म के कई धार्मिक ग्रंथो मिलता है, जिस कारण इस मंदिर के प्रति लोगो की आस्था और गहरी होती जाती है। हाल ही के समय में मिले गंग वंश साम्राज्य के शिलालेखों से मालूम पड़ता है की इस मंदिर का निर्माण कलिंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोड़गंग देव ने कराया था। इसके अलावा वर्तमान मंदिर का श्रेय ओड़िआ राजा अनंग भीम देव को दिया जाता है, जिन्होंने सन 1197 में इस मंदिर को बनवाया।

जगन्नाथ मंदिर पूरी की कहानी

जगन्नाथ पूरी मंदिर से सम्बंधित बहुत सी कहानियां प्रसिद्ध हैं, जिनमें लोगो का बहुत अधिक गहरा विश्वास है। जगन्नाथ मंदिर से सम्बंधित एक कहानी जो सबसे अधिक प्रसिद्ध है वह मालवा राजा इन्द्रद्युम्र और भगवान श्री कृष्ण से सम्बंधित है। इस कहानी के अनुसार ऐसा कहा जाता है की नीलांचल पर्वत पर निवास करने वाले सबर कबीले के लोग नीलमाधव जी की पूजा किया करते थे, जो भगवान श्री कृष्ण का ही एक रूप है। मालवा के राजा इन्द्रद्युम्र भी श्री कृष्ण के परम भक्त थे। एक रात भगवान श्री कृष्ण नीलमाधव रूप में राजा के सपने में आते हैं और उन्हें नीलांचल पर्वत में अपनी एक मूर्ति के बारे में बताते हैं और एक भव्य मंदिर बनाने का आदेश देते हैं।

राजा इन्द्रद्युम्र अपनी सेना को नीलांचल पर्वत और भगवान नीलमाधव की मूर्ति के खोज में भेजता है। राजा इन्द्रद्युम्र की सेना में एक सेनापति विद्यापति था, जो जानता था की सबर कबीले के लोग भगवान नीलमाधव को पूजते हैं और उन्होंने ही भगवान नीलमाधव को नीलांचल पर्वत की किसी गुफा में छिपा दिया है। सेनापति विद्यापति काफी चतुर था। उसने सबर कबीले के मुखिया विश्वासु की पुत्री से विवाह कर लिए और अपनी पत्नी की सहायता से किसी तरह गुफा में पहुंच गया। विद्यापति गुफा से नीलमाधव जी की मूर्ति को चुरा लेता है और राजा इन्द्रद्युम्र को लेकर दे देता है।

जब विश्वासु को मूर्ति चोरी के बारे में पता लगता है तो वो बहुत दुखी होते हैं और भगवान से वापस आने के लिए प्रार्थना करने लगते हैं। जब भगवान नीलमाधव अपने परम भक्त विश्वासु को दुखी देखते हैं तो वो वापस नीलांचल पर्वत की ओर जाने लगते हैं और राजा इन्द्रद्युम्र से वादा करते हैं की एक दिन मैं जरूर तुम्हारे पास वापस लौट आऊंगा। राजा इन्द्रद्युम्र भगवान के लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण कराते हैं और भगवान नीलमाधव से मंदिर में विराजमान होने के लिए प्रार्थना करते हैं।

एक रात राजा के सपने में भगवान नीलमाधव दर्शन देते हैं और कहते हैं की द्वारिका से एक लकड़ी का गट्ठा पूरी की ओर तैर कर आ रहा है तुम उससे मेरी प्रतिमा बनवाओ और उसे मंदिर में स्थापित करो। राजा अपनी सेना को समुद्र में लकड़ी ढूढ़ने के लिए भेजता है। सेना उस लड़की को ढूंढ लेती है लेकिन वह इतनी भरी होती है की कोई भी उसे उठा नहीं पाता है, जिससे राजा समझ जाता है की इस लकड़ी को कोई भगवान का परम भक्त ही उठा सकता है। उसके बाद राजा सबर कबीले के मुखिया विश्वासु से अनुरोध करते हैं। जिसके बाद विश्वासु उस भरी लकड़ी को महल तक लाते हैं।

अब बारी आती है लकड़ी से मूर्ति बनाने की लेकिन कोई भी व्यक्ति उस लकड़ी से मूर्ति नहीं बना पता है, जिसके बाद भगवान विश्वकर्मा एक बूढ़े व्यक्ति का रूप लेकर आते हैं और राजा से कहते हैं की मैं इस लकड़ी से 21 दिन में मूर्ति बनाऊंगा लेकिन मेरी एक शर्त है की मैं मूर्तियों को एक बंद कमरे में बनाऊंगा और कोई भी उस समय कमरे में आकर मूर्तियों को देख नहीं सकता है। राजा विश्वकर्मा जी की शर्त मान लेता है। जिसके बाद कमरे में मूर्ति बनाने का काम शुरू होता है। शुरुआत में कमरे से छैनी-हथोड़े की आवाज सुनाई देती है लेकिन जब 21 दिन पूरे होने में कुछ समय ही बचा होता है तब कमरे से आवाज आनी बंद हो जाती है।

जिस वजह से रानी गुंडिचा काफी घबरा जाती हैं और राजा को कमरे से आवाज न आने की सुचना देती हैं। जिसके बाद राजा कमरे का दरवाजा खोल देता है और पाता है की वह बूढ़ा व्यक्ति गायब और भगवान की अधूरी मूर्ति रखी हुयी हैं। राजा तीनो मूर्तियों को अधूरा देखकर काफी दुखी होता है जिसके बाद नारदमुनि उन्हें दर्शन देते हैं और भगवान की लीला के बारे में बताते हैं और उन्हें इन अधूरी मूर्तियों को मंदिर में स्थापित करने का आदेश देते हैं। जिसके बाद राजा इन मूर्तियों को मंदिर में स्थापित कर देता है।

जगन्नाथ मंदिर पूरी दर्शन टाइमिंग

जगन्नाथ मंदिर सुबह 6:30 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। इस बीच में मंदिर के कपाट समय-समय पर बंद किये जाते हैं, जिसमें मंदिर में साफ़-सफाई का काम चलता रहता है। इसके अलावा जगन्नाथ मंदिर में ध्वज बदलने का समय शाम 5:20 से 5:45 के बीच का होता है। जिसे आप मंदिर परिसर से देख सकते हैं।

  • जगन्नाथ मंदिर पूरी टाइमिंग:- सुबह 6:30 बजे से रात 10 बजे
  • ध्वज बदलने का समय:- शाम 5:20 से 5:45 के बीच

जगन्नाथ मंदिर आने का सबसे अच्छा समय

जगन्नाथ मंदिर ओड़िशा के पूरी में स्थित है, जो एक समुद्रतटीय क्षेत्र है। जिस वजह से जगन्नाथ मंदिर आने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी के बीच का होता है। इन महीनो में मौसम ठंडा होता है और आपको ज्यादा गर्मी का सामना नहीं करना पड़ता है। इसके अलावा आप जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ रथ यात्रा के समय विजिट कर सकते हैं, जो हर साल जून से जुलाई के महीने में आयोजित होती है। इस वर्ष 2025 में यह यात्रा 27 जून से शुरू हो रही है लेकिन इस समय यहाँ बहुत अधिक भीड़ देखने को मिलती है और गर्मी भी काफी होती है, जो इस यात्रा को काफी कठिन बना देती है।

जगन्नाथ पूरी में कहाँ रुके?

यदि आप स्पेशली जगन्नाथ मंदिर में दर्शन करने के उद्देश्य से आ रहे हैं तो आप जगन्नाथ मंदिर के आस-पास ही अपना रूम लें। मंदिर के आस-पास आपको बहुत सी धर्मशालाएं और होटल्स देखने को मिल जायेंगे। आप जगन्नाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित धर्मशालाओ में भी रुक सकते हैं, जिन्हे आप जगन्नाथ मंदिर के ऑफिसियल वेबसाइट से और वहां जाकर बुक कर सकते हैं। इसके अलावा आपको यहाँ पर 300 से 500 रुपये में अच्छी धर्मशालाओ में रूम मिल जायेगा। नीचे हम कुछ धर्मशालाओ और होटल्स के नाम बता रहे हैं…

  • नीलाचल भक्त निवास
  • नीलाद्रि भक्त निवास
  • श्री गुंडिचा भक्त निवास
  • पुरुषोत्तम भक्त निवास
  • गोवेर्धन मठ
  • इस्कॉन गेस्ट हाउस
  • इमामी जगन्नाथ धर्मशाला

जगन्नाथ मंदिर रथ यात्रा

हर साल पूरी में जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसमें भगवान श्री जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा जी को अलग-अलग रथों पर विराजमान करके नगर भ्रमण कराया जाता है। यह भव्य रथ यात्रा हर साल जून से जुलाई के महीने में होती है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा देवी (मौसी के घर) मंदिर तक जाती है।

गुंडिचा देवी भगवान जगन्नाथ की मौसी हैं और वे अपने भाई और बहन के साथ यहाँ 7 दिनों तक रहते हैं। यह भव्य आयोजन 10 दिनों तक चलता है जिसका समापन नीलाद्री विजया नाम के रिवाज से होता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ के साथ बलभद्र जी और शुभद्रा जी के रथ को खंडित किया जाता है।

2025 में जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जुलाई से शुरू होगी। इस यात्रा का धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है। इस यात्रा को इतना पवित्र और लाभकारी माना जाता है की इस यात्रा में शामिल होने से सभी पापों और दोषो से मुक्ति मिल जाती है। जिस कारण से इस यात्रा के दौरान लोग देश-विदेश से इस यात्रा में शामिल होने के लिए आते हैं।

जगन्नाथ मंदिर के आस-पास के दर्शनीय स्थल

जगन्नाथ मंदिर में दर्शन करने के बाद आप मंदिर के पास स्थित कुछ दर्शनीय स्थलों पर घूमने जा सकते हैं। साथ ही आप जगन्नाथ मंदिर के पास स्थित कुछ प्राचीन मंदिरो में दर्शन करने के लिए जा सकते हैं। नीचे हम पूरी टूरिस्ट प्लेसेस के बारे में बता रहे हैं…

विमला देवी मंदिर

जगन्नाथ मंदिर में दर्शन करने के बाद आप माता के 51 शक्तिपीठ में से एक विमला देवी मंदिर में दर्शन करने के लिए जा सकते हैं। इस मंदिर में माता के उत्कल भाग (नाभि) के दर्शन किये जाते हैं।

साक्षीगोपाल मंदिर

इसके बाद आप जगन्नाथ मंदिर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित “साक्षीगोपाल मंदिर” में दर्शन करने के लिए जा सकते हैं। यह एक ऐतिहासिक मंदिर है, जो भगवान कृष्ण के “गोपीनाथ” स्वरुप को समर्पित है। इस मंदिर की वास्तुकला कलिंग शैली में है, जो उड़ीशा की पारम्परिक स्थापत्य कला को दर्शाती है।

इस मंदिर को सखी गोपाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है और मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के साथ-साथ राधा जी की मूर्ति भी स्थापित है। इस मंदिर की एक बहुत ही सुन्दर कहानी है- जिसके अनुसार भगवान श्री कृष्ण अपने एक भक्त की प्रतिज्ञा को सत्य करने के लिए साक्षी रूप में प्रकट हुए थे।

ओम्कारेश्वर महादेव मंदिर

पूरी से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर, जो ओम्कारेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर शांत वातावरण और आध्यात्मिक शांति के लिए जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान शिव की 108 शिवलिंग स्थांपित है। इसके अलावा मंदिर परिसर में भगवान विष्णु, राधा-कृष्ण, पंचमुखी हनुमान जी आदि की प्रतिमाये स्थापित हैं। मंदिर के बाहर एक विशाल रथ का पहिया है, जिसे घूमने की परम्परा है।

गुप्त वृन्दावन (श्री गौर विहार आश्रम)

ओम्कारेश्वर मंदिर में दर्शन करने के बाद आप गुप्त वृन्दावन (जिसे श्री गौर विहार आश्रम) में विजिट कर सकते हैं। इस आश्रम में एंट्री करने के लिए आपको 10 रुपये का एंट्री टिकट लेना होगा। यह आश्रम लगभग 1.5 सौ वर्ष पुराना है और आप इस आश्रम में श्री कृष्ण की बहुत सी लीलाओं को देख सकते हैं, जिसे बहुत ही सुन्दर तरीके से दर्शाया गया है।

इस आश्रम में झील, बगीचा और एक मंदिर परिसर बना हुआ है, जिसमें श्री कृष्ण, शिव, लक्ष्मी जी और हनुमान जी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। पूरी आने वाले श्रद्धालुओं के बीच यह काफी आकर्षण का केंद्र रहता है। तो आप भी इस आश्रम में एक बार विजिट कर सकते हैं।

कोणार्क सूर्य मंदिर

भारत में बहुत से प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर स्थित हैं, जो अपनी आश्चर्यजनक और खूबसूरत वास्तुकला के लिए जाने जाते हैं। पूरी से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसा ही मंदिर स्थित है, जिसे कोणार्क सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में विजिट करने के लिए एंट्री टिकट की जरुरत होती है, जो भारतीयों के लिए 40 रुपये और विदेशी पर्यटकों के लिए 600 रुपये प्रति व्यक्ति होता है।

इसके अलावा यदि आप गाइड करना चाहते हैं तो आपको 20 रुपये प्रति व्यक्ति गाइड के देने होंगे। कोणार्क मंदिर में विजिट करने का समय सुबह 6 बजे से शाम 8 बजे तक का है। इसके अलावा यहाँ पर शाम के समय में लाइट एंड साउंड शो होता है, जिसमें आप विजिट कर सकते हैं और इसका चार्ज 50 रुपये प्रति व्यक्ति होता है।

चंद्रभागा बीच

पूरी में कुछ एडवेंचर ट्राई करने के लिए और रिलेक्स होने के लिए आप चंद्रभागा बीच पर विजिट कर सकते हैं। चंद्रभागा बीच अपनी सुंदरता और एडवेंचर एक्टिविटीज के लिए जाना जाता है। यहाँ पर एक प्राचीन सूर्य मंदिर भी स्थित है, जो सूर्य के तेज के स्वरुप को समर्पित है। इस मंदिर के पास में साल के शुरआत में एक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें शामिल होने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

गोल्डन बीच

चंद्रभागा बीच के अलावा भी पूरी में कुछ सुन्दर बीच स्थित हैं, जिनमें से एक है गोल्डन बीच। इस बीच को ब्लू फ्लैग की उपाधि दी गयी है, जो भारत के कुछ ही बीचो को दी गयी है। इस बीच में एंट्री करने के लिए टिकट लेना होता है, जिसका चार्ज 20 रुपये प्रति व्यक्ति होता है और यह सिर्फ 3 घंटो के लिए ही मान्य होता है। इस बीच में बच्चो के लिए अलग एक प्ले ग्राउंड बना हुआ है, जो बच्चो के लिए काफी आकर्षित करता है। तो आप भी अपनी फैमिली के साथ एक बार यहाँ विजिट कर सकते हैं।

जगन्नाथ मंदिर कैसे पहुंचे?

जगन्नाथ मंदिर पूरी में स्थित है। यहाँ तक पहुंचने के लिए आपको रेलमार्ग या सड़कमार्ग की सहायता लेनी होगी क्योंकि यहाँ पर कोई भी एयरपोर्ट मौजूद नहीं है। नीचे हम तीनो माध्यमों द्वारा जगन्नाथ मंदिर तक कैसे पहुंच सकते हैं, उसके बारे में विस्तार से बता रहे है, जिसे आप नीचे पढ़ सकते हैं…

हवाईमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?

जगन्नाथ पूरी में कोई भी एयरपोर्ट मौजूद नहीं है। पूरी के सबसे निकटतम एयरपोर्ट भुबनेश्वर एयरपोर्ट है, जो जगन्नाथ मंदिर से लगभग 61 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भुबनेश्वर के लिए फ्लाइट आपको देश के कई बड़े शहरों से आसानी से मिल जाएगी। भुबनेश्वर पहुंचने के बाद आप बस ट्रेन या फिर टैक्सी लेकर पूरी तक पहुंच सकते हैं। बस लेने के लिए आपको सबसे पहले भुबनेश्वर एयरपोर्ट से कल्पना चौक आना होगा, जहाँ से आपको जगन्नाथ पूरी मंदिर के लिए बस मिल जाएँगी।

रेलमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?

पूरी में अपना रेलवे स्टेशन, पूरी रेलवे स्टेशन स्थित है, जो जगन्नाथ मंदिर से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यदि आपके शहर से डायरेक्ट पूरी के लिए ट्रेन नहीं मिलती है तो आप सबसे पहले भुबनेश्वर आ सकते हैं और फिर वहां से ट्रेन द्वारा पूरी तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा आप भुबनेश्वर से सड़कमार्ग द्वारा भी पूरी तक आसानी से पहुंच सकते हैं।

सड़कमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?

यदि आप ओड़िशा या फिर इसके आस-पास के राज्यों के शहरों में रहते हैं तो आपको पूरी के लिए डायरेक्ट बस सेवा मिल जाएगी। जिसके द्वारा आप पूरी पहुंच सकते हैं। इसके अलावा यदि आपके शहर से पूरी के लिए डायरेक्ट बस नहीं मिलती है तो आप पहले भुवनेश्वर आ सकते हैं और फिर वहां से पूरी जा सकते हैं। भुबनेश्वर पहुंचने के लिए आप फ्लाइट, ट्रेन और बस की सहायता ले सकते हैं और फिर वहां से आप पूरी जगन्नाथ मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

ट्रेवल टिप्स

  • जगन्नाथ मंदिर में दर्शन करने के लिए आप मंदिर के आस-पास ही अपना होटल बुक करें, जिससे आपको मंदिर दर्शन करने में सहायता होगी।
  • जगन्नाथ मंदिर के अंदर मोबाइल, बैग, और जूते-चप्पल पहनकर जाना वर्जित है इसलिए आप मंदिर परिसर में बने फ्री क्लॉक रूम में अपना सभी सामान जमा कर सकते हैं लेकिन इन क्लॉक रूम्स में कैमरा जमा नहीं होता है तो आप सिंह द्वार पर बनी दुकानों पर अपना कैमरा जमा करा सकते हैं, जिसका वो कुछ चार्ज करते हैं।
  • जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करने की एक पारम्परिक विधि है, जिसके अनुसार आपको मंदिर में प्रवेश सिंह द्वारा से ही करना चाहिए।
  • जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करने पर आपको कुछ सीढ़ियों पर चढ़कर जाना होता है। उन्ही सीढ़ियों में से तीसरे नंबर की सीढ़ी को यम शिला कहा जाता है और ऐसी मान्यता है की दर्शन करके मंदिर से बहार निकलने पर यम शिला पर पैर नहीं रखना चाहिए। यदि आप उसपर पैर रखते हैं तो यह बहुत ही अशुभ माना जाता है।


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