भारत देश हमेशा से ही सनातन धर्म और सनातन संस्कृति से जुड़ा हुआ रहा है, न जाने सनातन धर्म से जुड़ी हुयी कितनी ही अनसुलझी कहानी हैं जिनके बारें में हम लोग आज तक नहीं जान पाए हैं। भारत देश की सनातन संस्कृति को हमेशा से ही “शक्ति” से जाना गया है। कहते हैं की इस सृष्टि का निर्माण या विस्तार में “शक्ति” का बहुत बड़ा योगदान रहा है, या ये भी कह सकते हैं की सृष्टि का विस्तार “शक्ति” द्वारा ही हुआ है।
![दीबा माता मंदिर पौड़ी गढ़वाल, कैसे पहुंचे? कहाँ रुके? यात्रा से सम्बंधित पूरी जानकारी (Deeba Mata Temple Pauri Garhwal, How to reach? Where to stay? Complete information related to Journey) - deeba mata mandir](https://aboutinhindi.com/wp-content/uploads/2023/11/IMG_20231110_195923-edited.jpg)
शक्ति यानी “माता”। कहते हैं भगवान जी के कहने पर ही शक्ति ने ब्रह्मा जी की सृष्टि की रचना करने में सहायता की थी। शक्ति को बहुत से रूपों में पूजा जाता है। जब भी भगवान किसी अधर्मी और राक्षस का वध करने में असमर्थ हो जाते हैं, तब शक्ति द्वारा ही उसका वध किया जाता है। आज हम ऐसे ही एक शक्ति के मंदिर के बारें में जानेंगे जिन्हे “दीबा माता” के नाम से और मंदिर को “दीबा माता मंदिर” के नाम से जाना जाता है।
Interactive Index
दीबा माता मंदिर कहाँ स्थित है?
यह मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के पट्टी खाटली में गवाणी गांव से 6 किलोमीटर की दुरी पर झलपाड़ी गांव के पास एक पहाड़ी पर स्थित है। झलपाड़ी गांव, जो इस मंदिर का बेस कैंप है, उससे लगी एक पहाड़ी पर 2520 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको लगभग 7 से 8 किलोमीटर का ट्रेक करना होगा। दीबा माता मंदिर उस एरिया की सबसे ऊँची पहाड़ी पर स्थित मंदिर है।
![दीबा माता मंदिर पौड़ी गढ़वाल, कैसे पहुंचे? कहाँ रुके? यात्रा से सम्बंधित पूरी जानकारी (Deeba Mata Temple Pauri Garhwal, How to reach? Where to stay? Complete information related to Journey) - दीबा माता मंदिर](https://aboutinhindi.com/wp-content/uploads/2023/11/IMG_20231110_200103-edited.jpg)
क्या है दीबा माता मंदिर का इतिहास?
कई वर्षो पूर्व उत्तराखंड गोरखाओ के आधीन हुआ करता था गोरखाओ ने पुरे उत्तराखंड में अपना वर्चस्प स्थापित कर दिया था। ऐसे कहा जाता है पौड़ी गढ़वाल के पट्टी खाटली में तो गोरखाओ की सेना वहां के लोगो को काट दिया करती थी और उन्हें लूट लिया करती थी। गोरखाओ से वहां के लोगो की रक्षा करने के लिए उसी गांव के एक पुजारी के सपने में माता दर्शन देती हैं और अपने स्थान का पता बताती हैं। जिस स्थान का माता पता बताती हैं वो गांव से दूर एक पहाड़ी पर होता है, जिसका रास्ता एक गुफा से होकर उस पहाड़ी तक पहुँचता है।
![दीबा माता मंदिर पौड़ी गढ़वाल, कैसे पहुंचे? कहाँ रुके? यात्रा से सम्बंधित पूरी जानकारी (Deeba Mata Temple Pauri Garhwal, How to reach? Where to stay? Complete information related to Journey) - mountain](https://aboutinhindi.com/wp-content/uploads/2023/11/IMG_20231110_194937.jpg)
कहते हैं की गोरखाओ की सेना के आने की खबर माता यहाँ से ही वहां के लोगो को दिया करती थी और उनकी रक्षा किया करती थी। इसी वजह से इस स्थान का नाम वहां की भाषा में धवड़या (आवाज़ लगाना) है। माता ने गोरखाओ का वध किया और वहां के लोगो की रक्षा की। गांव वालो ने पहाड़ी पर एक मंदिर का निर्माण कराया और माता के स्वरुप की स्थापना की। तब से लेकर आज तक मंदिर में दीबा माता के स्वरुप की पूजा की जाती है।
क्या है दीबा माता मंदिर की पौराणिक कहानी?
यहाँ के लोकल लोगो द्वारा जो बात बताई जाती वह एक पौराणिक कहानी को जन्म देती है। कहते हैं जब पौड़ी गढ़वाल में गोरखाओ का राज हुआ करता था तब वे लोग यहाँ के लोगो पर बहुत ज्यादा अत्याचार किया करते थे। वे लोग यहाँ के लोगो को लूट लिया करते थे और तलवार द्वारा उन्हें काट दिया करते थे।
गोरखाओ के बढ़ते अत्याचार को देखते हुए एक रात वहां के गांव के पुजारी के सपने में माता दीबा दर्शन देती हैं और अपना स्थान बताती हैं, पुजारी अगले ही दिन उस जगह के लिए निकल पड़ता है जिस जगह पर माता ने उसे अपने होने की बात बताई थी। वह जगह एक पहाड़ी के ऊपर थी, जिसका रास्ता बहुत ही कठिन था, जो के गुफा से होकर जाता था।
![दीबा माता मंदिर पौड़ी गढ़वाल, कैसे पहुंचे? कहाँ रुके? यात्रा से सम्बंधित पूरी जानकारी (Deeba Mata Temple Pauri Garhwal, How to reach? Where to stay? Complete information related to Journey) - mandir](http://aboutinhindi.com/wp-content/uploads/2023/11/IMG_20231110_200133.jpg)
जब वह पुजारी वहां पंहुचा तो उसे माता दीबा के दर्शन होते हैं। उसके बाद जब भी गोरखा गांव में आक्रमण करने के लिए आते तो माता गांव वालो को पहले ही बता देती और गांव वाले आघा हो जाते। इस तरह से माता सभी गांव वालो की रक्षा करती और एक समय के बाद सभी गोरखाओ को यहाँ से निकालकर गांव वालो की रक्षा की। जिस दुर्गम रास्ते से गुफाओ में से होकर पुजारी जी मंदिर तक पहुंचे थे, वह गुफा आज भी मंदिर में मौजूद है। लेकिन वक़्त के साथ यह गुफा पत्थरो के गिरने से बंद हो चुकी है।
कहते हैं इस मंदिर की चढ़ाई कोई भी अछूता इंसान (जिसके घर में किसी की मृत्यु हुयी हो या किसी का जन्म हुआ हो) नहीं कर पता है। इस बारे में वहां के लोगो के द्वारा बताया जाता है। अब इस बात में कितनी सच्चाई है या इस कहानी में कितनी सच्चाई है इस बारे में हम पूरी तरह से नहीं कह सकते हैं।
![दीबा माता मंदिर पौड़ी गढ़वाल, कैसे पहुंचे? कहाँ रुके? यात्रा से सम्बंधित पूरी जानकारी (Deeba Mata Temple Pauri Garhwal, How to reach? Where to stay? Complete information related to Journey) - mountain view](https://aboutinhindi.com/wp-content/uploads/2023/11/IMG_20231110_200625.jpg)
मंदिर के चारो और कुछ पेड़ हैं जिनके बारे में कहा जाता है की उन्हें अगर कोई आम इंसान काटता है तो उनसे खून जैसा तरल पदार्थ निकलता है। इन पेड़ो को सिर्फ भंडारी जाति के लोग ही काट सकते हैं। यहाँ के पेड़ो का आकर कुछ अलग है और ये पेड़ बाकी पेड़ो की तुलना में कुछ अजीब से दिखाई देते हैं। इन पेड़ो के बारे में कहा जाता है की ये सभी पहले इंसान थे, किसी श्राप की वजह से ये सभी पेड़ों के रूप में बदल गए। इस बात में कितनी सच्चाई है, इस बारे में हम कुछ भी पुष्टी नहीं कर सकते हैं।
सबसे अच्छा समय दीबा माता मंदिर जाने के लिए?
वैसे तो आप कभी भी इस मंदिर में माता के दर्शन के लिए जा सकते हैं। लेकिन जो सबसे अच्छा समय माना जाता है वो मार्च के बाद का है। ये यहाँ का सीजनल टाइम होता है टूरिज्म का। पुरे उत्तराखंड या जो भी हिल स्टेशन है उनके लिए मार्च से लेकर जून का जो समय होता है वो सबसे बेस्ट माना जाता है, क्यूंकि इस समय में पहाड़ी इलाको की तुलना में मैदानी इलाको में काफी तेज़ गर्मी पड़ती है इसलिए ये समय माता के दर्शन के लिए अच्छा माना जाता है।
![दीबा माता मंदिर पौड़ी गढ़वाल, कैसे पहुंचे? कहाँ रुके? यात्रा से सम्बंधित पूरी जानकारी (Deeba Mata Temple Pauri Garhwal, How to reach? Where to stay? Complete information related to Journey) - mountain view](https://aboutinhindi.com/wp-content/uploads/2023/11/IMG_20231110_195233.jpg)
इस मंदिर में लोग नवरात्री में भी आना काफी ज्यादा पसंद करते हैं। जो की बहुत ही अच्छा माना जाता है, लोगो का नवरात्री के 9 दिनों में एक तरह से मेला लगा रहता है। यहां के लोकल लोग नवरात्री में आना काफी ज्यादा पसंद करते हैं। इस समय में होने वाले सूर्यास्त और सूर्योदय को देखना भी काफी दिलचस्प होता है।
यहाँ रुकने की व्यवस्था कैसी है?
ये देवी माँ की एक ऐसी यात्रा है जो यहाँ के लोकल या उत्तराखंड के लोगो के अलावा बहुत ही कम लोग जानते हैं। यहाँ अभी भी इतना टूरिज्म न होने के कारण आपको यहाँ पर इस मंदिर के ट्रेकिंग के बेस कैंप गांव झलपाड़ी में होटल या कोई भी छोटी धर्मशाला नहीं मिलेगी। जब भी आप इस जगह माता के दर्शन करने के लिए आये, तो आप अपना टेंट से रिलेटेड सभी सामान लेकर आये, जो की आपके लिए अच्छा होगा। बाकी झलपाड़ी से 6 किलोमीटर पहले एक गवानी गांव पड़ता है। जिसकी बाजार में एक छोटा सा होटल है। आप वहां भी रुक सकते हैं।
![दीबा माता मंदिर पौड़ी गढ़वाल, कैसे पहुंचे? कहाँ रुके? यात्रा से सम्बंधित पूरी जानकारी (Deeba Mata Temple Pauri Garhwal, How to reach? Where to stay? Complete information related to Journey) - jhalpadi gaon](https://aboutinhindi.com/wp-content/uploads/2023/11/IMG_20231110_194954.jpg)
यहाँ मंदिर के आसपास या नीचे गांव में रुकने के लिए कोई भी होटल या धर्मशाला नहीं है, लेकिन आप यहाँ पर या तो मंदिर के अंदर रुक सकते हैं या फिर आप अपना मंदिर के बाहर और पहाड़ी के नीचे सामने मैदान में कैंप लगा सकते हैं। अगर आप मंदिर के बेस कैंप गांव जो झलपाड़ी है, अगर वहां पर दिन में ही पहुंच जातें हैं। तो आप वहां से मंदिर के लिए चढाई शुरू कर सकते हैं, और मंदिर के बाहर एक छोटा सा मैदान है, जहाँ आप रुकने के लिए कैंप लगा सकते हैं। मंदिर में पुजारी और मंदिर की देख रेख करने वाले लोगो से आप रात के लिए बिस्तर भी ले सकते हैं।
![दीबा माता मंदिर पौड़ी गढ़वाल, कैसे पहुंचे? कहाँ रुके? यात्रा से सम्बंधित पूरी जानकारी (Deeba Mata Temple Pauri Garhwal, How to reach? Where to stay? Complete information related to Journey) -](https://aboutinhindi.com/wp-content/uploads/2023/11/IMG_20231110_195128.jpg)
अगर आप मंदिर के ट्रेक को दो भागो में पूरा करना चाहते हैं तो आप ट्रेक के दौरान शुरू में लगभग 2 किलोमीटर पर एक छावनी जैसी बनी हुयी है। यहाँ एक सोलर पैनल लगा हुआ है और कुछ बैठने के लिए कुर्सियां भी हैं, तो आप इस जगह अपना कैंप लगा सकते हैं, जो की कैंप लगाने के लिए अच्छा स्थान होगा। यहाँ रात में रुक कर फिर अगले दिन से मंदिर के ट्रेक को पूरा कर सकते हैं।
क्या यहाँ खाने के लिए होटल और ढाबा हैं?
जैसे की मैंने ऊपर बताया की यह जगह टूरिज्म के लिए इतनी फेमस नहीं है इसलिए यहाँ खाने के भी होटल्स नहीं हैं। यहाँ नीचे गांव की मार्केट में कुछ छोटी सी दुकाने हैं, जहाँ से आपको समोसा और थोड़ा बहुत नाश्ते का सामान मिल जायेगा, इससे ज्यादा नहीं। आप जब भी यहाँ आते हैं तो एक छोटा सा गैस फायर और खाने का कुछ सामान साथ लेकर आये। यहाँ के लिए सबसे अच्छा यही होगा क्यूंकि इसके अलावा कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है।
![दीबा माता मंदिर पौड़ी गढ़वाल, कैसे पहुंचे? कहाँ रुके? यात्रा से सम्बंधित पूरी जानकारी (Deeba Mata Temple Pauri Garhwal, How to reach? Where to stay? Complete information related to Journey) - night camping](https://aboutinhindi.com/wp-content/uploads/2023/11/IMG_20231110_200237.jpg)
और पढें:- कालकाजी मंदिर
दीबा माता मंदिर तक का ट्रेक कैसा है?
दीबा माता मंदिर जाने के लिए ट्रेक नीचे झलपाड़ी गांव से शुरू होता है। इस ट्रेक की लम्बाई कितनी है, पूरी तरह से किसी को भी नहीं पता है लेकिन एक अंदाज़े से यह ट्रेक लगभग 7 से 8 किलोमीटर का है। इस ट्रेक के शुरू के 1 से 1.5 किलोमीटर तक हल्के हल्के चढ़ाई शुरू होती है उसके कुछ किलोमीटर के बाद एक दम से खड़ी चढ़ाई शुरू हो जाती है। बीच में यह ट्रेक थोड़ा आसान हो जाता है और ऊपर के 1 से 2 किलोमीटर की चढ़ाई कुछ ज्यादा ही कठिन है।
![दीबा माता मंदिर पौड़ी गढ़वाल, कैसे पहुंचे? कहाँ रुके? यात्रा से सम्बंधित पूरी जानकारी (Deeba Mata Temple Pauri Garhwal, How to reach? Where to stay? Complete information related to Journey) - trek route](https://aboutinhindi.com/wp-content/uploads/2023/11/IMG_20231110_195206.jpg)
नीचे से मंदिर तक का रास्ता जंगल से होकर जाता है। रास्ते के चारो ओर अल्पाइन के पेड़ हैं, जो इस रास्ते की खूबसूरती को बढ़ाते हैं। मंदिर की शुरू की चढ़ाई के लगभग 2 किलोमीटर पर एक छावनी जैसा बना हुआ है, जहाँ सीजनल समय में यहाँ कुछ नास्ते की छोटी दुकाने लगती हैं और एक सोलर पैनल भी लगा हुआ है, जिसकी सहायता से आप अपने मोबाइल चार्ज कर सकते हैं । इस जगह रूककर आप कुछ देर आराम कर सकते हैं। इस ट्रेक को करने में आपको लगभग औसतन 5 से 6 घंटे लगेंगे।
ट्रेक के दौरान पानी के स्रोत?
आप जब इस ट्रेक को शुरू करे तो इस ट्रेक में पानी का बहुत ही ज्यादा ख्याल रखे। इस ट्रेक के दौरान आपको पानी या तो ट्रेक के बिलकुल शुरू में मिलेगा या पानी आपको 2 किलोमीटर के बाद एक छावनी बनी हुयी है उसके पास मिलेगा। इसके बाद आपको इस ट्रेक में ऊपर की ओर कोई भी पानी का स्रोत नहीं मिलेगा, इसलिए आप अपने लिए खाना बनाने के लिए नीचे से ही पानी को लेकर चले।
दीबा माता मंदिर के बाहर और अंदर का व्यू
जब आप ट्रेक करके मंदिर के पास पहुंचेंगे तो आप देखेंगे की पहाड़ी के ठीक चोटी पर एक सफ़ेद कलर से पुता हुआ एक मंदिर है, जिसके सामने के ओर एक छोटा सा मैदान है। मंदिर से थोड़े नीचे लगभग 200 से 400 मीटर की दुरी पर “भैरव नाथ जी” का मंदिर है। जहाँ लोग माता के दर्शन करने के पश्चात भैरव नाथ जी के मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं। मंदिर से कुछ दूरी पर इसके रास्ते में बांज के पेड़ हैं, जो इस मंदिर के चारो ओर की सुंदरता को बढ़ाते हैं।
![दीबा माता मंदिर पौड़ी गढ़वाल, कैसे पहुंचे? कहाँ रुके? यात्रा से सम्बंधित पूरी जानकारी (Deeba Mata Temple Pauri Garhwal, How to reach? Where to stay? Complete information related to Journey) - mandir view](https://aboutinhindi.com/wp-content/uploads/2023/11/IMG_20231110_195731.jpg)
मंदिर के अंदर माता की प्रतिमा स्थापित है, जिसकी लोग पूजा और दर्शन करने के लिए आते हैं। मंदिर के अंदर एक गुफा बनी हुयी है। कहते हैं ये वही गुफा है जिसके द्वारा पुजारी पहली बार इस मंदिर की चोटी तक पंहुचा था, जो आज बड़े बड़े पत्थरो द्वारा बंद हो चुकी है।
मंदिर से चारो ओर देखने पर आपको वहां से हिमालय के पहाड़ो की चोटियां और कुछ ग्लेशियर दिखाई देते हैं। जिस स्थान पर ये मंदिर बना हुआ है उस जगह से आप आसपास के सभी गांव को देख सकते हैं लेकिन नीचे से देखने पर ये मंदिर जल्दी दिखाई नहीं देता है। मंदिर इतनी ऊंचाई पर स्थित है की यहां से चारो ओर दूर दूर तक के सभी पहाड़ यहाँ तक की चौखम्बा पहाड़ तक दिखाई देते हैं।
आप मंदिर तक कैसे पहुंच सकते हैं?
जब आप उत्तराखंड के किसी ऐसे मंदिर की यात्रा करते हैं जिसके बारें में लोग कम जानते हैं या टूरिज्म के हिसाब से काफी कम लोकप्रिय है तो ऐसी जगह जाने के लिए आप अपने खुद के वाहन का प्रयोग करे, जो सबसे अच्छा तरीका है। ऐसी जगह के लिए वाहन मिलना थोड़ा मुश्किल रहता है।
![दीबा माता मंदिर पौड़ी गढ़वाल, कैसे पहुंचे? कहाँ रुके? यात्रा से सम्बंधित पूरी जानकारी (Deeba Mata Temple Pauri Garhwal, How to reach? Where to stay? Complete information related to Journey) - mandir ka raasta](https://aboutinhindi.com/wp-content/uploads/2023/11/IMG_20231110_195056.jpg)
ऐसी जगह में आपको टुकड़ो में जाना पड़ता है, वहां के लोकल गाड़ी द्वारा जो की काफी मुश्किल रहता है। तो आइए जानते हैं की किस प्रकार से आप यहाँ तक आसानी से पहुंच सकते हैं……
बस द्वारा मंदिर तक कैसे पहुंचे?
अगर आप इस जगह पहली बार आ रहे हैं और आप बस द्वारा आना चहाते हैं। तो इस जगह के लिए बस ऋषिकेश और देहरादून से मिल जाएगी। ऋषिकेश से पट्टी खाटली तक की दुरी 337 किलोमीटर की है जो आपको NH 7 द्वारा कम्पलीट करनी होती है। बस द्वारा यहाँ तक की दुरी तय करने में आपको लगभग 7 से 8 घंटे लगेंगे। पट्टी खाटली से लोकल गाड़ी द्वारा आप झलपाड़ी गांव तक आ सकते हैं।.
बस द्वारा ये सफर जितना खूबसूरत और अच्छा होगा उतना ही थकान भरा भी हो सकता है। अगर आप उत्तराखंड से बाहर के हैं तो आप ऋषिकेश तक का सफर बस और ट्रेन द्वारा तय कर सकते हैं और अगर आप देहरादून से जाना चाहते हैं तो आप देहरादून तक के सफर को फ्लाइट, ट्रेन और बस द्वारा कर सकते हैं।
ट्रेन द्वारा मंदिर तक कैसे पहुंचे?
अगर आप इस सफर को ट्रेन द्वारा करना चाहते हैं तो पट्टी खाटली से सबसे निकट रेलवे स्टेशन रामनगर रेलवे स्टेशन है।रामनगर से पट्टी खाटली की दुरी 117 किलोमीटर की जो की आपको सड़कमार्ग द्वारा ही करनी होगी। रामनगर के लिए ट्रेन आपके लिए देहरादून रेलवे स्टेशन और ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से आराम से मिल जाएँगी। ऋषिकेश और देहरादून तक के सफर के रूट के बारें में हम ऊपर बता चुके हैं।
फ्लाइट द्वारा मंदिर तक कैसे पहुंचे?
अगर आप इस सफर को फ्लाइट द्वारा तय करना चाहते हैं तो मैं आपको बता दूँ की यहाँ से सबसे पास एयरपोर्ट जॉली ग्रांट (देहरादून) है। जहाँ से बाकि की दुरी को आपको सड़कमार्ग या देहरादून से रामनगर तक के सफर को ट्रेन द्वारा और फिर वहां से सड़कमार्ग द्वारा बाकि की दुरी पूरी कर सकते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण बातें
- आप जब भी दीबा माता मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं तो कोशिश यही करे की आप अपनी गाड़ी द्वारा ही आये।
- जब आप मंदिर तक के ट्रेक को शुरू करेंगे तो नीचे से ही अपने लिए पानी भर ले क्यूंकि ट्रेक में 2 किलोमीटर के बाद कोई भी पानी का स्रोत नहीं है।
- यहाँ के लोकल लोग आपको इस ट्रेक को रात में करने के लिए कहेंगे क्यूंकि अधिकतर यहाँ के लोकल्स रात में ही इस मंदिर तक के ट्रेक को करते हैं। रात में इस ट्रेक को करने की वजह यह है की इस मंदिर से सूर्यादय बहुत ही खूबसूरत लगता है। इसलिए लोग इस मंदिर के ट्रेक को रात में करने के लिए कहते हैं जिससे लोग सुबह का सूर्यादय देख सके।
- यहाँ रहने की व्यवस्था नहीं है तो आप अपना टेंट और कैंपिंग का सभी सामान साथ लेकर जाये।
- अगर आप इस मंदिर में ऑफ सीजन में जातें हैं तो नीचे गांव से ही मंदिर में चढ़ाने के लिए प्रसाद लेले।
- यहाँ से जितना सूर्यादय को देखना दिलचस्प है उतना ही सूर्यास्त को तो मेरा यही मानना होगा की आप सुबह से ही इस मंदिर का ट्रेक शुरू कर दे फिर आप शाम में मस्त सूर्यास्त को देखे रात में वही कैंपिंग करे और फिर सुबह में माता के दर्शन करके अच्छे से सूर्यादय को देखे, जो की इतनी ऊंचाई से देखने पर बहुत ही ज्यादा सुन्दर दिखता है।