main logo
WhatsApp Group Join Now

Gopinath Mandir Gopeshwar Uttrakhand | भगवान रुद्रनाथ की शीतकालीन गद्दी गोपीनाथ मंदिर

SOCIAL SHARE

उत्तराखंड में स्थित भगवान शिव के पंच केदार मंदिरो के बारे में अधिकतर श्रद्धालु जानते होंगे जो केदारनाथ, तुंगनाथ, मधेश्वरनाथ, रुद्रनाथ, और कल्पेश्वरनाथ हैं। इन मंदिरो के बारे में हिन्दू धर्म को मानने वाले सभी लोग जानते हैं, लेकिन इन मंदिरो से जुड़े हुए कुछ और भी मंदिर हैं जिनके बारे में लोग बहुत कम ही जानते हैं।

नवंबर में अधिक ठण्ड और बर्फवारी पड़ने पर जब केदारनाथ, मधेश्वरनाथ के कपाट बंद कर दिए जाते हैं तो भगवान की डोली को सजा कर उखीमठ के ओम्कारेश्वर मंदिर में 6 महीनो के लिए लाया जाता है। वहीं भगवान तुंगनाथ को मक्कूमठ के मंदिर में 6 महीनो के लिए लाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।

हम इस ब्लॉग में जिस मंदिर की बात करने जा रहे हैं वह “गोपेश्वर” में स्थित जिसे “गोपीनाथ मंदिर” के नाम से जाना जाता है। गोपीनाथ मंदिर भगवान रुद्रनाथ की शीतकालीन गद्दी है। हम इस ब्लॉग में गोपीनाथ मंदिर से सम्बंधित सभी जानकारियों को आपसे साझा करेंगे। तो आईये जानते हैं मंदिर से जुड़ी जानकारियों को…

Interactive Index

शार्ट जानकारी (Short Information)

जगह (Place)गोपीनाथ मंदिर (Gopinath Mandir)
पता (Address)गोपेश्वर चमोली (Gopeshwar Chamoli)
प्रसिद्ध (Famous)भगवान रुद्रनाथ शीतकालीन गद्दी (Rudranath winter seat)
निकट रेलवे स्टेशन (Nearest Railway Station)ऋषिकेश रेलवे स्टेशन (Rishikesh Railway Station)
निकट एयरपोर्ट (Nearest Airport)जॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून (Jolly Grant Airport Dehradun)

गोपीनाथ मंदिर कहाँ है? (Where is Gopinath Temple?)

गोपीनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले के गोपेश्वर में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे “गोपेश्वरनाथ मंदिर” (Gopeshwarnath Mandir) के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर उत्तराखंड के मुख्य शहर हरिद्वार से 233 किलोमीटर, ऋषिकेश से 207 किलोमीटर और देहरादून से 244 किलोमीटर दूर स्थित है।

भगवान शिव का पुरानी नागर शैली द्वारा बना हुआ गोपीनाथ मंदिर।

इस मंदिर को भगवान रुद्रनाथ के शीतकालीन गद्दी के रूप में भी जाना जाता है, क्यूंकि ठंडो में जब अधिक बर्फवारी पड़ने पर रुद्रनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं तो भगवान रुद्रनाथ को डोली में सजा कर इसी मंदिर में लाया जाता है और भगवान रुद्रनाथ की स्थापना की जाती है। ठंडो के 6 महीनो तक भगवान रुद्रनाथ के दर्शन इसी मंदिर में किये जाते हैं और फिर पुनः गर्मियों में भगवान रुद्रनाथ को रुद्रनाथ मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है।

  • इस मंदिर का गर्भ गृह 30 फिट बड़ा है और इस मंदिर के गर्भ गृह तक जाने के 24 द्वार हैं।
  • मंदिर के प्रागण में लगे त्रिशूल को “आकाश भैरव” कहा जाता है। इस त्रिशूल को पुरातत्व विभाग के लोग पहले के राजाओ का विजय स्तम्भ मानते हैं और मंदिर में आस्था रखने वाले लोग इसे शिव का बताते हैं जो सदियों पुराना है।
  • मंदिर के प्रागण में बहुत से टूटे हुए मंदिर हैं जो इस बात की ओर इशारा करते हैं की यहाँ पहले और भी बहुत से मंदिर रहे होंगे जो वक़्त के साथ टूट चुके हैं।
  • इस मंदिर को भगवान रुद्रनाथ की शीतकालीन गद्दी के रूप में माना जाता है।
  • मंदिर में भगवान शिव “पशिश्वर रूप” में माता पार्वती के साथ विराजमान हैं।
  • इस मंदिर का उल्लेख स्कंदपुराण के केदारखंड में भी मिलता है।

गोपीनाथ मंदिर का इतिहास (Gopinath Temple History)

भगवान शिव के पंच केदार मंदिरो की तरह ही इस मंदिर का इतिहास भी सदियों पुराना है। मंदिर में आस्था रखने वाले लोगो का मानना है की यह मंदिर महाभारत काल का है, जिसे भगवान कृष्णा के वंशज द्वारा बनवाया गया था, लेकिन आधुनिक युग के लोगो और पुरातत्व विभाग के लोगो का मानना है की इस मंदिर का निर्माण 9 वीं या 12 वीं शताब्दी में कत्यूरी शासको द्वारा किया गया।

गोपीनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में कुछ जानकारी देता हुआ शिलालेख

मंदिर के प्रागण में एक अष्ट धातु से बना हुआ 5 मीटर ऊँचा एक त्रिशूल लगा हुआ है जिसे सदियों पुराना माना जाता है। त्रिशूल के बारे में पुरातत्व विभाग के लोगो का कहना है की यह पहले के राजाओ का विजय स्तम्भ है तो मंदिर में आस्था रखने वाले और हमारे पुराणों के अनुसार यह त्रिशूल भगवान शिव का है। त्रिशूल के पास लगे चार अभिलेखों में से एक पर 12 वीं शताब्दी के नेपाल के राजा अनेकमल्ल के बारे में गुणगान मिलता है, वहीं अभी तीन अभिलेखों पर देवनागरी में लिखे शब्दों का पड़ना बाकि है।

मंदिर के प्रागण में बहुत से टूटे हुए मंदिर और मूर्तियां इस बात की ओर इशारा करते हैं की यहाँ और भी बहुत से मंदिर रहे होंगे जो की अब खंडित हो चुके हैं। टूटे हुए मंदिरो के बारे में कहा जाता है की 1802 में आये भूकंप की वजह से यहाँ बने मंदिरो को छति पहुंची।

गोपीनाथ मंदिर की कहानी (Gopinath Temple Story)

इस मंदिर से जुड़ी हुयी बहुत सी कहानिया हैं, जो भगवान् शिव से जुड़ी हुयी हैं। गोपीनाथ मंदिर के पुजारी द्वारा बताया जाता है की जब माता सती ने यज्ञ कुंड में कूद कर अपनी जान दी तब भगवान शिव माता सती के शव को उठाकर क्रोध में घूमने लगे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा माता के शव को कई भागो में विभाजित कर दिया। माता के शरीर और उनके आभूषण पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ गिरे वहां शक्तिपीठ का निर्माण हुआ। जब माता का कोई भी भाग शिव के पास नहीं बचा तब भगवान शिव को गोपेश्वर में आकर शांति मिली और वह यहाँ पर ध्यान करने बैठ गए।

मंदिर के प्रागण में एक वृक्ष है, जिसे कामदेव का स्वरुप माना जाता है। मंदिर के पुजारी द्वारा बताया जाता है की इस वृक्ष पर हर ऋतू में समान फूल आते हैं और इस पर कभी भी पतझड़ नहीं लगता है। वृक्ष के बारे में बताया जाता है की जब भगवान शिव माता सती के वियोग में ध्यान में विलीन थे तब कामदेव ने उनका ध्यान भंग कर दिया जिससे क्रोध में आकर भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया।

भगवान शिव का अष्ट धातु का बना हुआ त्रिशूल जिसे पुरातत्व विभाग के लोग विजय स्तम्भ मानते हैं और श्रद्धालुओं और पुजारी द्वारा इसे भगवान शिव का बताया जाता है। जिससे भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था।

मंदिर के पास में लगा सदियों पुराना त्रिशूल इस कहानी को और महत्व देता है क्यूंकि यह त्रिशूल अष्ट धातु का बना हुआ है और इसपर किसी भी ऋतू का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है। त्रिशूल के बारे में कहा जाता है की इस त्रिशूल को कोई भी साधारण व्यक्ति हिला नहीं सकता है और एक सच्चे शिव भक्त के हाथ लगते ही इस त्रिशूल में कम्पन होने लगती है।

मंदिर का नाम गोपीनाथ कैसे पड़ा? (How did the temple get the name Gopinath?)

इस मंदिर के नाम के पीछे भी एक बहुत सुन्दर कहानी बताई जाती है। ऐसा कहा जाता है की जब भगवान शिव इस जगह ध्यान में लीन थे तब भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण रूप में अवतार लिया। श्री कृष्ण वृन्दावन में गोपियों के साथ रासलीला रचाया करते थे। भगवान शिव श्री कृष्ण से मिलना चाहते थे की तभी भगवान शिव गोपियों का वेश धारण करके वृन्दावन चले जाते हैं।

जब श्री कृष्ण भगवान शिव को गोपी रूप में देखते हैं तब वे भगवान शिव को पहचान जाते हैं। श्री कृष्ण भगवान शिव से कहते हैं की प्रभु आप तो “गोपियों के नाथ” यानि “गोपीनाथ” हैं। इसी वजह से इस मंदिर का नाम गोपीनाथ पड़ा।

गोपीनाथ मंदिर कुंड (Gopinath Mandir Kund)

मंदिर से कुछ दूरी पर ही एक कुंड है, जिसके जल द्वारा ही हर रोज शिव जी का जल अभिषेक किया जाता है। कुंड को “वैतरणी कुंड” के नाम से जाना जाता है। कुंड के बारे में मान्यता है की इस कुंड में स्नान करने मात्र से व्यक्ति को सभी पापो से मुक्ति मिल जाती है और व्यक्ति को शिवलोक की प्राप्ति होती है।

मंदिर के पास स्थित वैतरणी कुंड जिसे माता रति के लिए जाना जाता है। इसी कुंड के जल से गोपीनाथ मंदिर में शिव जी का जल अभिषेक किया जाता है।

कुंड के बारे में पंडितजी द्वारा बताया जाता है की जब भगवान शिव ने कामदेव का वध कर दिया तब उनकी पत्नी रति ने इस कुंड के पास भगवान शिव की घोर तपस्या की इसी वजह से यहाँ भगवान शिव को “रातिश्वर” के नाम से भी जाना जाता है। माता रति की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया की कामदेव भगवान कृष्ण के वंश में प्रद्युमन के रूप में जन्म लेंगे और उसी समय तुम्हारी मुलाक़ात उनसे होगी।

गोपीनाथ मंदिर की संरचना (Structure of Gopinath Temple)

इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की इस मंदिर का निर्माण 9 वीं या 12 वीं शताब्दी में कत्यूरी या नेपाली शासको द्वारा किया गया। जिसके सम्बन्ध में मंदिर में लगे अभिलेखों से पता चलता है। मंदिर को नागर शैली में बनवाया गया है। यह मंदिर भगवान शिव के पंच केदार मंदिर की तरह ही है लेकिन यह मंदिर उन सभी मंदिरो से बड़ा है।

मंदिर का शीर्ष गुंब्बद और इसका 30 फुट बड़ा गर्भ गृह इस मंदिर की मुख्य विशेषता है। मंदिर के गर्भ गृह तक आप 24 द्वार द्वारा पहुंच सकते हैं। मंदिर के बाहर की ओर बहुत से टूटे हुए मंदिर और मुर्तिया भी हैं।

भगवान रुद्रनाथ की शीतकालीन गद्दी (Winter seat of Lord Rudranath)

इस मंदिर को भगवान रुद्रनाथ की शीतकालीन गद्दी के रूप में भी जाना जाता है। भगवान रुद्रनाथ भगवान शिव के पंच केदार का एक रूप हैं। रुद्रनाथ मंदिर साल में सिर्फ 6 महीनो के लिए खुलता है और साल के 6 महीने बंद रहता है। जब नवंबर के बाद अधिक ठण्ड और बर्फवारी पड़ने पर रुद्रनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं

मंदिर का वह भाग जहाँ 6 महीनो के लिए भगवान रुद्रनाथ को विराजमान किया जाता है।

तब भगवान रुद्रनाथ की मूर्ति को डोली में सजा कर गोपेश्वर लाया जाता है और गोपीनाथ मंदिर में बनी धर्मशाला की पहली मंज़िल पर उनकी स्थापना कर दी जाती है। नवंबर से अप्रैल के बीच में आने वाले श्रद्धालु भगवान रुद्रनाथ के दर्शन इसी मंदिर में करते हैं।

गोपीनाथ मंदिर का खुलने का समय (Gopinath Temple Timing)

यह मंदिर सालभर खुला रहता है और आप कभी भी इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन कर सकते हैं। मंदिर में आप दर्शन सुबह 6 बजे से शाम 8 बजे तक कर सकते हैं। मंदिर में सुबह में 6 बजे आरती होती है और शाम की आरती 7 बजे होती है। तो आप इस समय में आरती में शामिल हो सकते हैं।

गोपेश्वर में कहाँ रुके? (Where to stay in Gopeshwar?)

गोपीनाथ मंदिर गोपेश्वर में स्थित है। यह एक अच्छा और विकसित क्षेत्र है। यहाँ रुकने के लिए आपको धर्मशालाए छोटे और बड़े सभी तरह के होटल मिल जायेंगे। यहाँ आप अपने बजट के अनुसार अपना रूम ले सकते हैं।

गोपीनाथ मंदिर में बनी हुयी धर्मशाला जहाँ मंदिर के पुजारी रहते हैं।

यहाँ खाने से सम्बंधित भी बहुत से होटल और ढाबा हैं जहाँ आप खाना खा सकते हैं। यहाँ आपको 500 रुपये से लेकर 1000 रुपये की बीच में अच्छा रूम मिल जायेगा।

गोपीनाथ मंदिर आने का सबसे अच्छा समय (Best time to visit in Gopinath Temple)

गोपीनाथ मंदिर में दर्शन करने के लिए आप कभी आ सकते हैं, लेकिन इस मंदिर का महत्व नवंबर से अप्रैल में अत्यधिक बढ़ जाता है क्यूंकि इस समय में भगवान रुद्रनाथ को इस मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। इस समय में लोग यहाँ आना ज्यादा पसंद करते हैं। यह मंदिर रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा के बीच में ही पड़ता है तो आप इस मंदिर में दर्शन करने के बाद रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा को शुरू कर सकते हैं।

गोपीनाथ मंदिर कैसे पहुंचे? (How to reach Gopinath Temple?)

गोपीनाथ मंदिर चमोली जिले में पड़ता है और यह शहर उत्तराखंड में सड़कमार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर तक आप सड़कमार्ग, रेलमार्ग और हवाईमार्ग द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं। तो आईये जानते हैं की आप कैसे इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं…

सड़कमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे? (How to reach by road?)

इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आप हरिद्वार और ऋषिकेश से सरकारी बस ले सकते हैं, जो की मिलना थोड़ा मुश्किल रहता है। इस मंदिर तक पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका है की आप हरिद्वार या ऋषिकेश से किसी गाड़ी को बुक कर ले, ये थोड़ा महँगा हो सकता है लेकिन सबसे सुविधाजनक होता है।

आप अपने वाहन द्वारा हरिद्वार, ऋषिकेश,श्रीनगर, देवप्रयाग होते हुए गोपेश्वर पहुंच सकते हैं। हरिद्वार और ऋषिकेश आप बस या ट्रेन द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं। इन दोनों जगहों के लिए ट्रेन आपको दिल्ली और उत्तरा प्रदेश के बड़े रेलवे स्टेशनो से आसानी से मिल जाएँगी।

रेलमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे? (How to reach by rail?)

यदि आप ट्रेन द्वारा इस मंदिर तक आना चाहते हैं तो गोपेश्वर में कोई भी रेलवे स्टेशन नहीं है। गोपेश्वर के सबसे निकट रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है। जो गोपेश्वर से 207 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश तक पहुंचने का सबसे आसान तरीका रेलमार्ग द्वारा ही है। ऋषिकेश से बाकि की दूरी को आप आसानी से सड़कमार्ग द्वारा पूरा कर सकते हैं।

हवाईमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे? (How to reach by air?)

यदि आप गोपेश्वर फ्लाइट द्वारा पहुंचना चाहते हैं तो यहाँ कोई भी एयरपोर्ट नहीं है। गोपेश्वर के सबसे निकट एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो देहरादून में स्थित है। देहरादून तक आप फ्लाइट द्वारा आ सकते हैं उसके बाद आप गोपेश्वर तक की बाकि की दूरी को आप सड़कमार्ग द्वारा पूरा कर सकते हैं।


SOCIAL SHARE

Leave a comment