अगर आप छुट्टियों में कहीं यात्रा करने कि सोच रहे हैं और वो समय अप्रैल से नवंबर का है तो मेरा विचार है आपको पंचकेदार, 12 ज्योतिर्लिंगों और चार धाम में से एक “केदारनाथ मंदिर” की यात्रा करनी चाहिए। जो कि हिमालय की गोद में पहाड़ो के बीच स्थित है। केदारनाथ मंदिर साल में सिर्फ 6 महीने खुलता है और 6 महीने बंद रहता है। अब 2024 में केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने की तारीख का ऐलान हो गया है। तो आप अब इस साल कब केदारनाथ मंदिर की यात्रा कर सकते हैं इसी से सम्बंधित जानकारियों को आपसे साझा करेंगे।
इस ब्लॉग में हम केदारनाथ यात्रा से सम्बंधित सभी जानकारियों को आपसे साझा करेंगे। जिससे आप जब भी केदारनाथ की यात्रा पर जाए तो आपको यात्रा की प्लानिंग करने में सहायता मिले। तो आईये जानते हैं केदारनाथ यात्रा से जुड़ी जानकारियों को…
विषय सूची
शार्ट जानकारी
जगह | केदारनाथ मंदिर |
पता | उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में |
प्रसिद्ध होने का कारण | चार धाम और पंचकेदार मंदिर में से एक होने के कारण और खूबसूरत से ट्रेक की वजह से |
मंदिर के कपाट खुलने का समय | 10 मई 2024 से |
ट्रेक की दूरी | 16 से 18 किलोमीटर |
केदारनाथ आने का बेस्ट समय | मंदिर के कपाट खुलने से जून तक और फिर सितम्बर से नवंबर कपाट बंद होने तक |
निकट रेलवे स्टेशन | हरिद्वार रेलवे स्टेशन & ऋषिकेश रेलवे स्टेशन |
निकट एयरपोर्ट | जॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून |
केदारनाथ मंदिर कहाँ स्थित है?
केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के गढ़वाल क्षेत्र में 3584 मीटर की ऊंचाई पर मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित है। केदारनाथ हरिद्वार से 240 किलोमीटर और ऋषिकेश से 214 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। केदारनाथ को स्वर्ग भी कहा जाता है, क्यूंकि यह मंदिर हिमालय की गोद में तीन ओर से जिसमे 22000 फिट ऊँची केदारनाथ पहाड़ी दूसरी तरफ 21600 फिट ऊँचा कराचकुण्ड और तीसरी तरफ 22700 फिट ऊँचा भरतकुंड पहाड़ो से घिरा हुआ हैं। जिसकी सुंदरता एक स्वर्ग की तरह सुशोभित है।
केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने कराया?
केदारनाथ मंदिर का सम्बन्ध महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है की इस मंदिर का निर्माण पांडवो के वंशज द्वारा किया गया है या शायद खुद पांडवो ने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था। पांडव और केदारनाथ मंदिर से जुड़ी हुयी एक कहानी है जिसे हम आगे पढ़ेंगे। केदारनाथ मंदिर के निर्माण का श्रेय महान दार्शनिक एवं धर्म प्रवर्तक आदि शंकराचार्य को भी दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है की उत्तराखंड के बहुत से प्राचीन मंदिरो का निर्माण आदि शंकराचार्य ने ही कराया था।
केदारनाथ मंदिर से जुड़ी कहानी?
केदारनाथ मंदिर पंच केदार में से एक मंदिर है। इस मंदिर का सीधा सम्बन्ध महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। तो आईये जानते हैं की क्या है इस मंदिर की कहानी और कैसे हुयी पंच केदार मंदिरो की स्थापना।
ऐसा कहा जाता है कि द्वापर युग में पांडवो और उनके भाइयो कौरवो के मध्य महाभारत का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में पांडवो ने अपने गुरु जनो, भाइयो, ब्राह्मणो का वध कर दिया जिस कारण से पांडव गोत्र हत्या और ब्राह्मण हत्या के दोषी बन गए थे। पांडव अपने इन दोषो से मुक्त होना चाहते थे, जिसके लिए वे सभी नारद मुनि के पास जाते हैं और अपने पापो से मुक्ति पाने के लिए उनसे उपाए पूछते हैं। नारद मुनि पांडवो को महर्षि व्यास जी के पास भेजते हैं।
सभी पांडव भाई व्यास जी के पास पहुंचते है और उनसे अपने पापो से मुक्त होने का उपाए पूछते हैं। महर्षि व्यास पांडवो से कहते हैं की आप सभी भगवान शिव की आराधना करे क्यूंकि भगवान शिव की आराधना करने और उनसे मिलकर ही तुम तुम्हारे पापों से मुक्त हो सकते हो।
सभी पांडव भाई मिलकर काशी की ओर भगवान शिव से मिलने के लिए निकल पड़ते हैं लेकिन भगवान शिव पांडवो से मिलना नहीं चाहते थे क्यूंकि भगवान शिव पांडवो द्वारा किये गए इस कार्य से नाराज़ थे। पांडव लड़े तो सत्य और धर्म की तरफ से थे लेकिन एक सत्य ये भी था की उन्होंने अपने परिजनों और गुरुजनो का वध भी किया था। जिस कारण से भगवान शिव पांडवो से नहीं मिलना चाहते थे।
भगवान शिव काशी से निकलकर उत्तराखंड में कही जाकर छिप जाते हैं। जब पांडव भगवान शिव से मिलने काशी पहुँचते हैं तो उन्हें भगवान शिव के दर्शन नहीं होते हैं जिससे वे सभी भगवान शिव के दर्शन करने के लिए उनकी खोज में निकल पड़ते हैं। पांडव भगवान शिव को खोजते-खोजते उत्तराखंड जा पहुंचते हैं जब भगवान शिव को यह पता लगता है की पांडव उन्हें खोजते हुए इसी जगह आ रहे हैं तो भगवान शिव उस जगह से बैल का रूप धारण करके अन्तर्ध्यान हो जाते हैं यानी गुप्त हो जाते हैं।
भगवान शिव के अंतर्ध्यान यानि गुप्त होने की वजह से आज उस शहर को “गुप्तकाशी” के नाम से जाना जाता है। गुप्तकाशी में एक बहुत ही पौराणिक और महाभारत काल से जुड़ा हुआ मंदिर है जिसे “काशीविश्वनाथ मंदिर” के नाम से जाना जाता है।
सभी पांडव भगवान शिव को खोजते हुए एक ऐसी जगह पहुंचते है जहाँ उन्हें बहुत से बैल दिखाई देते हैं। भगवान शिव बैल का रूप धारण करके उन बैलो के झुण्ड में छिप जाते हैं। जब पांडवो को यह शक होता है तो पांडवो में से एक भीम अपने रूप को बड़ा करके दोनों पैरो को दो पहाड़ की चोटियों पर रख देता है और अपने भाइयो से उन बैलो को अपने दोनों पैरो के बीच से निकालने के लिए कहता है।
बाकि पांडव भाई मिलकर बैलो को भीम के पैरो के बीच से निकालना शुरू कर देते हैं लेकिन उन बैलो में से एक बैल उग्र व्यव्हार करने लगता है और पैरो के बीच से निकलने से मना कर देता है।
जब सभी पांडव उस बैल की ओर बढ़ते हैं तो बैल धरती में समाने लगता है। भीम बैल की पूँछ पकड़कर बाहर की ओर खींचने लगता है लेकिन बैल धरती में समा जाता है। भगवान शिव जब पांडवो की दृढ़संकल्प शक्ति और उनकी भक्ति को देखते हैं तो वो उन्हें पंच केदार रूप में दर्शन देते हैं, जिसमे बैल की पीठ केदारनाथ में, मुख रुद्रनाथ में,भुजाये तुंगनाथ में, नाभि मधेश्वरनाथ में और जटा कल्पेश्वरनाथ में प्रकट हुयी। कहते हैं इन सभी जगह पांडवो ने मंदिरो का निर्माण कराया और भगवान शिव की आराधना की जिससे सभी पांडवो ने अपने पापो से मुक्ति पायी।
केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने की डेट (Date)
केदारनाथ मंदिर साल में सिर्फ 6 महीने ही खुलता है 6 महीने यह मंदिर बंद रहता है। अधिकतर यह मंदिर साल के शुरू में यानी अप्रैल या मई में खोल दिया जाता है और नवंबर में दिवाली से दूसरे दिन भाई दूज वाले दिन बंद कर दिए जाते हैं। इस साल 2024 में केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने का ऐलान कर दिया गया है। मंदिर के कपाट 10 मई 2024 को सुबह 7:00 बजे बड़े धूम धाम से विधि विधान से खोल दिए जायेंगे। केदारनाथ के साथ बाकि चार धाम मंदिर के कपाट खुलने का ऐलान भी कर दिया गया है। जिसे आप निचे तालिका में देख सकते हैं…
मंदिर | मंदिर खुलने की डेट |
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केदारनाथ मंदिर | 10 मई 2024 |
बद्रीनाथ मंदिर | 12 मई 2024 |
गंगोत्री मंदिर | 10 मई 2024 |
यमुनोत्री मंदिर | 10 मई 2024 |
केदारनाथ जाने का बेस्ट टाइम?
केदारनाथ मंदिर साल में 6 महीने खुलता है और 6 महीने बंद रहता है। यह मंदिर अप्रैल से मई के बीच में खुलता है और नवंबर के महीने में बंद हो जाता है। केदारनाथ जाने का जो सबसे अच्छा समय है वो अप्रैल मई से जून के तक का है। इस बीच में आपको यहां पर मौसम साफ और अच्छा मिलेगा।
जून के बाद पुरे भारत में मानसून दस्तक देने लगता है जिससे इस यात्रा को करना थोड़ा मुश्किल भरा हो सकता है। अक्टूबर से नवंबर के बीच में यहां मौसम बहुत ठंडा हो जाता है और बर्फवारी होने लगती है। जिन यात्रियों को बर्फवारी पसंद हो वो इस मौसम में भी भगवान शिव के दर्शन के लिए आ सकते हैं।
केदारनाथ में कहाँ रुके?
केदारनाथ की यात्रा के दौरान सबसे मुख्य बात रुकने की होती है कि आप कहाँ रुक सकते हैं। तो यदि आप केदारनाथ कि यात्रा सीजनल समय में कर रहें हैं तो गौरी कुंड में आपको रूम मिलना मुश्किल होगा और यदि रूम उपलब्ध भी होंगे तो काफी महंगे भी होंगे। गौरी कुंड और केदारनाथ में सीजनल समय में डीलक्स रूम 2500 से 3500 रुपये प्रति रात के हिसाब से आपको मिलेंगे। केदारनाथ में आपको टेंट की सुविधा मिल जाएगी जिसका प्राइस ऑन सीजन 800 से 1000 रुपये होगा तो वहीं ऑफ सीजन 400 रुपये हो सकता है।
गौरी कुंड में आपको हॉल रूम की सुविधा मिल जाएगी जिसका किराया भी 200 से 300 रुपये हो सकता है। हाल रूम में आपको लॉकर रूम की सुविधा भी मिलती है जहाँ आप मंदिर तक का ट्रेक करने से पहले अपना सामान जमा कर सकते हैं। गौरी कुंड और केदारनाथ के अलावा आप सोनप्रयाग में भी रुक सकते हैं। यहाँ पर गौरी कुंड और केदारनाथ की तुलना में कम रुपये में आपको एक अच्छा रूम मिल जायेगा। वैसे केदारनाथ में अधिकतर श्रद्धालु मई से जून के बीच में आते हैं उसके बाद श्रद्धालुओं की संख्या घटने लगती है। तो आप अपने हिसाब से देखकर आये की आपका यहाँ आना कब सही रहेगा।
केदारनाथ में भोजन
गौरीकुंड से केदारनाथ तक के ट्रेक के दौरान आपको जगह-जगह पर होटल और छोटी-छोटी खाने पीने की दुकाने मिल जाएँगी। आपको यहाँ पर सबसे ज्यादा खाने में मैग्गी और पराठा मिलेगी जो की खाने में काफी स्वादिस्ट होता है। ट्रेक के दौरान आप जितना ऊंचाई पर और मंदिर के पास पहुंचते जायेंगे उतना ही खाना महंगा होता जायेगा। तो आप इस चीज का भी खास ख्याल रखे।
केदारनाथ में इंटरनेट सुविधा
आपको यहां पर जगह जगह फ्री वाईफाई मिल जाएगा, लेकिन इसकी स्पीड बहुत ही ना के बराबर है तो इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। आपको गौरीकुंड तक ठीक तरह से नेटवर्क सुविधा मिल जाएगी लेकिन जैसे जैसे आप ऊपर चढ़ते जाते हैं वहां नेटवर्क मिलना मुश्किल होता जाता है। यहाँ आपको एयरटेल और जिओ के सिग्नल मिल जायेंगे परन्तु बाकि के मिलना थोड़ा मुश्किल हैं।
केदारनाथ का मौसम?
केदारनाथ का मौसम कभी भी चेंज हो जाता है। यहाँ एक पल में तेज़ धुप तो दूसरे पल में बारिश होने लगती है। यहाँ के मौसम का अंदाजा लगा पाना बहुत ही कठिन है। केदारनाथ के मौसम के अनुसार आपका यहाँ आने का सबसे अच्छा टाइम मई से जून और अक्टूबर से नवंबर के बीच का है। जुलाई से सितम्बर के बीच में मानसून आने की वजह से यहाँ यात्रा करने से बचना चाहिए। आप जब भी यहाँ की यात्रा करे तो अपने साथ रेन कोट जरूर रखे।
केदारनाथ मंदिर तक कैसे पहुंचे?
केदारनाथ मंदिर का रूट आप पर निर्भर करता है की यहाँ आप किस तरह से यहाँ जाना चाहते हैं। दिल्ली से गौरीकुंड तक की दूरी 434 किलोमीटर की है। जिसे आप बस, ट्रेन और फ्लाइट द्वारा पूरा कर सकते हैं। फ्लाइट द्वारा आप सिर्फ देहरादून तक ही आ सकते हैं क्यूंकि केदारनाथ के सबसे निकट एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट (देहरादून) है और ट्रेन से आप ऋषिकेश और देहरादून तक ही आ सकते हैं।
ऋषिकेश और हरिद्वार से पैकेज भी बुक कर सकते हैं और ऑनलाइन चार धाम यात्रा का पैकेज भी बुक कर सकते हैं। तो आइए जानते हैं की आप किस तरह से केदारनाथ तक पहुंच सकते हैं…
खुद के वाहन द्वारा कैसे पहुंचे?
यदि आप अपनी वाहन द्वारा यहाँ आना चाहते हैं तो आप जिस भी जगह से हैं वहां से सबसे पहले हरिद्वार या ऋषिकेश पहुंचे। उसके बाद आप निम्न रूट को फॉलो कर सकते हैं:-
- हरिद्वार – ऋषिकेश – पीपलकोटी – देवप्रयाग – श्रीनगर – रुद्रप्रयाग – अगस्तमुनि – गुप्तकाशी – फाटा – सोनप्रयाग – गौरीकुंड
आप अपने पर्सनल वाहन से सिर्फ सोनप्रयाग तक जा सकते हैं। सोनप्रयाग से आगे का रास्ता काफी कठिन है तो इससे आगे आपको नहीं जाने दिया जायेगा। सोनप्रयाग से गौरी कुंड की दूरी 5 किलोमीटर है जिसे आप पैदल या फिर वहां की शेयरिंग जीप द्वारा पूरा कर सकते हैं जिसका किराया 50 से 60 रुपये होता है।
बस द्वारा कैसे पहुंचे?
यदि आप केदारनाथ की यात्रा बस द्वार करना चाहते हैं तो आप इस यात्रा को बस द्वारा भी कर सकते हो लेकिन इसमें थोड़ा रिस्क रहता है बस की टाइमिंग की वजह से। अगर आप उत्तराखंड से बाहर के हैं तो आप सबसे पहले ऋषिकेश या हरिद्वार पहुंचे। हरिद्वार या ऋषिकेश के लिए अगर आपके यहाँ से बस नहीं मिलती है तो आप दिल्ली पहुंच कर वहां से इन जगहों के लिए बस ले सकते हैं। दिल्ली से ऋषिकेश की दूरी 262 किलोमीटर है और हरिद्वार तक की दूरी 246 किलोमीटर की है।
हरिद्वार और ऋषिकेश में सुबह में कुछ निश्चित समय पर बस सोनप्रयाग के लिए जाती हैं। तो आप इन बस द्वारा सोनप्रयाग तक पहुंच सकते हैं। ऋषिकेश से सोनप्रयाग तक की दूरी 208 किलोमीटर की है और हरिद्वार से सोनप्रयाग तक की दूरी 234 किलोमीटर की है। जिसे आप 7 से 8 घंटे में पूरा कर लेंगे।
ट्रेन द्वारा कैसे पहुंचे?
यदि आप ट्रेन द्वारा यहाँ आना चाहते हैं तो सोनप्रयाग के सबसे निकट रेलवे स्टेशन हरिद्वार रेलवे स्टेशन, ऋषिकेश रेलवे स्टेशन और देहरादून रेलवे स्टेशन है। ऋषिकेश और हरिद्वार से केदारनाथ और चार धाम के लिए प्राइवेट गाड़ी किराये पर मिलती हैं। इनका किराया गाड़ी के ऊपर निर्भर करता है की आप कितने सीटों वाली गाड़ी को चुन रहे हैं। ऋषिकेश और हरिद्वार से सरकारी बसे भी मिलती हैं सोनप्रयाग के लिए लेकिन उनका सुबह में टाइम निश्चित होता है तो समय पर पहुंच कर आप बस द्वारा भी सोनप्रयाग तक पहुंच सकते हैं।
फ्लाइट द्वारा कैसे पहुंचे?
आप इस यात्रा के को फ्लाइट से करना चाहते हो तो केदारनाथ के सबसे निकट एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट (देहरादून) है। देहरादून के लिए फ्लाइट आपको दिल्ली चंडीगढ़ और देश के कई बड़े एयरपोर्ट से मिल जाएगी। देहरादून से बाकि का सफर आपको प्राइवेट गाड़ी या सरकारी बसों द्वारा कम्पलीट करना होगा।
हेलीकाप्टर द्वारा केदारनाथ मंदिर तक कैसे पहुंचे?
केदारनाथ मंदिर तक आप हेलीकाप्टर द्वारा भी जा सकते हैं। हेलीकाप्टर की बुकिंग आप हरिद्वार और ऋषिकेश से कर सकते हैं। केदारनाथ के लिए हेलीकाप्टर मुख्यता फाटा से मिलते हैं। जिसका किराया एक राउंड ट्रिप का लगभग 4000 से 5500 तक हो सकता है। अगर आप उसी दिन वापसी करते हैं तो आपको दर्शन करने के लिए दो घंटो का समय दिया जाता है।
आपको प्रति व्यक्ति 2 किलो सामान ले जाने की अनुमति होती हैं। मानसून के समय हेलीकाप्टर से मंदिर तक का सफर तय करना मुश्किलों से भरा हो सकता है क्यूंकि मौसम ख़राब होते ही हेलीकाप्टर सेवा बंद कर दी जाती है।
गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक का ट्रेक?
गौरी कुंड से शुरू होने वाले इस ट्रेक की लम्बाई लगभग 16 से 18 किलोमीटर की है। पैदल मार्ग के शुरुआती गेट से आधा किलोमीटर की दूरी पर घोड़ो खच्चरों और पालकी के लिए बुकिंग कार्यालय है जहाँ से अगर आप इस पैदल मार्ग में चलने में असमर्थ हैं तो इन्हे बुक कर सकते हैं और लगभग एक किलोमीटर के बाद हॉर्स पॉइंट है जहाँ से आप इनपर चढ़ सकते हैं। घोड़ी और पालकी के किराये का विवरण नीचे तालिका में दिया गया है…
केदारनाथ पैदल मार्ग के लिए घोड़ो और खच्चरों की दरें | केदारनाथ पैदल मार्ग के लिए कण्डी की दरें |
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गौरीकुंड से गौरीकुंड (उसी दिन वापसी) : 5500 रुपये | गौरीकुंड से गौरीकुंड (उसी दिन वापसी) : 4100 रुपये (25 किलोग्राम तक) |
गौरीकुंड से केदारनाथ (एक तरफ का ) : 2950 रुपये | गौरीकुंड से गौरीकुंड (एक रात्रि विश्राम सहित) : 7000 रुपये (25 किलोग्राम तक) |
गौरीकुंड से लिंचोली 11 किलोमीटर (एक तरफ का) : 2150 रुपये | गौरीकुंड से केदारनाथ (एक तरफ का) : 3700 रुपये (25 किलोग्राम तक) |
गौरीकुंड से भीमबली 6 किलोमीटर (एक तरफ का) : 1100 रुपये | गौरीकुंड से गौरीकुंड (उसी दिन वापसी) : 8800 रुपये (50 किलोग्राम तक) |
गौरीकुंड से गौरीकुंड (एक रात्रि विश्राम सहित) : 10700 रुपये (50 किलोग्राम तक) | |
गौरीकुंड से केदारनाथ (एक तरफ का) : 4700 रुपये (50 किलोग्राम तक) |
ट्रेक के इस मार्ग में आपको शुरुआत में पहले कुछ हल्की हल्की चढ़ाई का सामना करना होगा। आप हल्के हल्के ट्रेक करके भीमबली तक पहुंचेंगे जहाँ से मार्ग दो रास्तो में विभाजित हुआ है एक रास्ता पैदल मार्ग वालो के लिए है और दूसरा मार्ग घोड़ो और खच्चरों के लिए है। यह रास्ता रामबाड़ा में जाकर एक हो जाता है।
रामबाड़ा केदारनाथ की सबसे बड़ी बस्ती थी लेकिन 2013 में आयी बाढ़ ने इसे पूरी तरह से मिटा दिया। केदारनाथ का पुराना मार्ग मन्दाकिनी नदी के बायीं ओर से था लेकिन इस त्राशदी के बाद अब ये दाहिनी ओर से बनाया गया है।
इस ट्रेक के मार्ग में आपको कहीं-कहीं पर एक दम से खड़ी चढ़ाई का सामना करना होता है तो कही पर एक दम से समतल रास्ता आ जाता है। इस मार्ग में पड़ने वाले शार्ट कट से हमेशा बचे जो की जोखिम भरे और थकान से भरे हो सकते हैं। केदारनाथ मंदिर से एक किलोमीटर पहले एक कैंप बना हुआ है जो की मंदिर कमिटी के हैं। उसी के पास में एक GMBN कॉटेज है, जहाँ आप रुक सकते हैं।
गौरी कुंड से मंदिर तक रास्ते में आपको अनगिनत छोटी बड़ी दुकाने मिल जाएँगी। जहाँ पर आप चाय नास्ता कर सकते हैं और बैठ कर आराम भी कर सकते हैं। रास्ते के मार्ग में जगह-जगह पर आपको मार्ग के किनारे पर बैठने के लिए कुर्सियां मिल जाएँगी। यहां मार्ग में जगह जगह टीन के बने हुए विश्रामस्थल भी हैं जहाँ आप कुछ देर रुक सकते हैं।
इसी तरह के मार्ग को देखते हुए आप पहुंच जाओगे बाबा केदारनाथ धाम के पास, जो किसी स्वर्ग से भी सुन्दर दिखाई पड़ता है।
मंदिर के अंदर का व्यू
मंदिर में प्रवेश करते ही आप पांचो पांडवो के और द्रोपदी जी की दर्शन कर सकते हो। मुख्य हॉल के अंदर एक शंकाकार आकर का पत्थर है जिसे उस बैल का कूबड़ माना जाता है जो भगवान शिव ने रूप धारण किया था। मुख्य हॉल के अंदर भगवान शिव के अलावा और कुछ अन्य देवी देवताओ की मुर्तिया भी हैं। मंदिर के बाहर, मंदिर की ओर मुख किये हुए नंदी बैल की एक मूर्ति हैं। मंदिर के बाहर मंदिर के बायीं और अमृत जल कुंड है जहाँ भगवान शिव पर चढ़ाया गया जल एकत्रित होता है। उस जल को आप अपने साथ ले जा सकते हैं।
मंदिर के ठीक पीछे एक विशाल चट्टान हैं, जिसे श्री दिव्य भीम शिला के नाम से जाना जाता है। इसी शिला ने 2013 के बाढ़ के पानी से मंदिर की रक्षा की थी।
केदारनाथ के आस पास की जगह
जब आप केदारनाथ मंदिर में दर्शन कर ले उसके बाद आप यहाँ स्थित कुछ और दार्शनिक स्थलों पर भी जरूर जाए। तो आइये जानते हैं केदारनाथ के पास स्थित कुछ दार्शनिक स्थलों के बारे में…
भैरोनाथ मंदिर
केदारनाथ मंदिर में दर्शन के बाद आपको भैरोनाथ मंदिर जाना चाहिए। भैरोनाथ मंदिर केदारनाथ मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर है। भैरोनाथ मंदिर में दर्शन के बाद ही इस यात्रा को पूरा माना जाता है।
आदि शंकराचार्य
आप मंदिर के पास में आदि शंकराचार्य की समाधी को देख सकते हैं। जिसका अनावरण प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 5 नवंबर 2021 को किया था।
वासुकी ताल
यह ट्रकर्स के लिए बहुत ही अच्छी जगह है जहाँ पर आप गाइड द्वारा ही जा सकते हैं। इसका रास्ता काफी कठिन है। यहाँ से हिमालय की पर्वत श्रंखला बहुत ही सुन्दर और दिलचस्प दिखाई पड़ती है।
ध्यान रखने योग्य बातें
- केदारनाथ जाने के लिए बेस्ट मौसम मई से जून और अक्टूबर से नवंबर के बीच का होता है। जुलाई से सितम्बर के बीच में मानसून की वजह से यहाँ जाना थोड़ा खतरों से भरा हो सकता है।
- केदारनाथ जाते वक़्त आप अपना रेनकोट जरूर साथ रखे वहां मौसम कभी भी बिगड़ जाता है।
- आप पैदल मार्ग में कम से कम सामान लेकर चले।
- वहां के शॉर्टकट लेने से बचे, वो थोड़ा मुश्किल और खतरनाक हो सकता है।
Nice knowledge
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❤️ Provided good knowledge about Kedarnath 🙂
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