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सुरकंडा देवी मंदिर धनौल्टी, कैसे पहुंचे? कहाँ रुकें? | Surkanda Devi temple Dhanaulti, how to reach? Where to stay?

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भारत अपनी सनातन संस्कृति के लिए जाना जाता है। हिन्दू धर्म में जितना महत्व पुरुष को दिया गया है उससे कहीं अधिक महत्व स्त्री यानि “शक्ति” को दिया गया है। हमारे पौराणिक ग्रंथो में लिखा हुआ की ब्रह्माण्ड की रचना में शक्ति का बहुत बड़ा योगदान है। शक्ति यानि माता सती जिन्हे उनके अगले जन्म में पार्वती जी के नाम से भी जाना गया। हम इस ब्लॉग में भारत में स्थित एक ऐसे शक्ति पीठ की बात करने जा रहे हैं, जो उत्तराखंड के पहाड़ो में स्थित है। जिसे “सुरकंडा देवी मंदिर” (Surkanda Devi Mandir) के नाम से जाना जाता है।

सुरकंडा देवी मंदिर में के प्रागण में घूमते हुए श्रद्धालु

शक्ति पीठ मतलब माता सती के पिंड से उत्पन हुयी जगह या मंदिर को ही “शक्ति पीठ” कहा जाता है। माता के शक्ति पीठो के बनाने की एक कहानी है, जिसे हम इस ब्लॉग के माध्यम से जानेगे। माता के शक्ति पीठ की बात की जाए तो कुल 51 शक्ति पीठ हैं। जिनमे से कुछ भारत में स्थित हैं तो कुछ भारत के पास स्थित देशो में स्थित हैं। हम माता के एक शक्ति पीठ जो मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित है जिसे मैहर माता के नाम से जाना जाता है। उस शक्ति पीठ के बारे में जान चुके हैं तो उसे भी एक बार जरूर पढ़े।

इस ब्लॉग में हम जिस शक्ति पीठ की बात करने जा रहे हैं उसे “सुरकंडा देवी” के नाम से जाना जाता है और मंदिर को “सुरकंडा देवी मंदिर” के नाम से जाना जाता है। तो आईये जानते हैं माता के इस शक्ति पीठ से सम्बंधित सभी जानकारियों को…

सुरकंडा देवी मंदिर कहाँ है?

यह मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले में सुरकुट पर्वत पर स्थित माता के 51 शक्ति पीठो में से एक है। यह मंदिर कणातल गांव में 2756 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर कद्दूखाल जहाँ से मंदिर का ट्रेक शुरू होता है या रोपवे मिलती हैं वहां से 3 किलोमीटर, धनौल्टी से 8 किलोमीटर, चंबा से 22 किलोमीटर और देहरादून से 63 किलोमीटर दूर स्थित है।

यदि आपको ट्रेकिंग करना पसंद है तो आप इस मंदिर तक ट्रेक करके पहुंच सकते हैं और यदि आप पहाड़ो पर चलने में असमर्थ हैं तो आप कद्दूखाल से रोपवे के सहारे मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

सुरकंडा देवी मंदिर का इतिहास

सुरकंडा देवी मंदिर का इतिहास बहुत सदियों पुराना है। ऐसा कहाँ जाता है की इस मंदिर का निर्माण 8वीं सदी में राजा सुचत सिंह ने कराया और बाद में कत्यूरी राजाओ ने इस मंदिर का जीणोद्धार कराया। कुछ साल पहले तक इस मंदिर तक सिर्फ ट्रेक करके ही जाया जाता था जो की कद्दूखाल से शुरू होता था।

सुरकंडा देवी मंदिर का सामने का मुख्या गेट और प्रागण में ढोल बजाते हुए श्रद्धालु

इस ट्रेक की लम्बाई 3 किलोमीटर है और इसे पूरा करने में आपको कम से कम 3 से 4 घंटे लगेंगे। अब कद्दूखाल से मंदिर तक उत्तराखंड सरकार द्वारा एक रोपवे का निर्माण कराया गया है। जिससे आप 10 मिनट में मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।

सुरकंडा देवी मंदिर की कहानी

इस मंदिर को माता के शक्ति पीठो में गिना जाता है, जिस कारण मंदिर के सम्बन्ध में माता सती से जुड़ी हुयी एक पौराणिक कहानी बताई जाती है। कहते हैं माता सती राजा दक्ष की पुत्री थी और उन्होंने अपने पति के रूप में भगवान शिव को चुना, लेकिन राजा दक्ष माता सती के इस चुनाव से न खुश थे। माता सती का भगवान शिव से विवाह हो जाने के उपरांत राजा दक्ष एक यज्ञ का आयोजन कराते हैं और उसमे सिर्फ भगवान शिव को छोड़कर सभी देवताओ और ऋषि मुनियो को आमंत्रित करते हैं।

जब यह बात माता सती को पता चलती है तो उन्हें बहुत दुःख होता है जिससे वे अपने पिता से उन्हें आमंत्रित न करने की वजह पूछती हैं। राजा दक्ष जो भगवान शिव को न पसंद करते थे और वे क्रोध में आकर भगवान शिव को बुरा भला कहते हैं और उनका अपमान करते हैं।

भगवान शिव का अपमान होते देख माता सती क्रोध और पीड़ा में आकर यज्ञ कुंड में कूद जाती हैं और अपने प्राण त्याग देती हैं। जब इस बात का पता भगवान शिव को चलता है तो वे क्रोध में आकर माता सती के शव को गोद में उठाकर तांडव करने लगते हैं। भगवान शिव के इस तांडव से पृथ्वी डोलने लगती है और सभी देवता और मनुष्य डरने लगते हैं।

जब भगवान विष्णु शिव के इस क्रोध को देखते हैं तो वे अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शव को कई भागो में विभाजित कर देते हैं। माता सती के शव और उनके आभूषण जिन-जिन जगहों पर गिरे वहां-वहां माता के शक्ति पीठ का निर्माण हुआ। माता सती का सिर टिहरी गढ़वाल के सुरकुट पर्वत पर गिरा जिससे यहाँ पर सुरकंडा देवी शक्ति पीठ का निर्माण हुआ। पहले इसे सिरकंडा के नाम से जाना जाता था लेकिन वक़्त के साथ इस जगह का नाम बदल कर अब इसे सुरकंडा माता मंदिर (Surkanda Devi Mandir) के नाम से जाना जाता है। तो कुछ इस प्रकार इस मंदिर की कहानी बताई जाती है।

सुरकंडा देवी मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?

यह मंदिर जितना पुराना है उससे कहीं अधिक इस मंदिर के प्रति लोगो की आस्था है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की यहाँ माता के दर्शन करने से श्रद्धालुओ के सात जन्मो के पाप धूल जाते हैं। सुरकंडा देवी मंदिर इसलिए बहुत प्रसिद्ध है क्यूंकि यही एक ऐसा स्थान है जहाँ से आप चार धाम की पहाड़ो की पीक को देख सकते हैं। सुरकंडा देवी मंदिर के बारे में बताया जाता है की यहाँ पर सच्चे मन से आप जो कुछ भी मांगते हैं वह सभी आपको मिलता है। इस बात के पीछे एक कहानी बताई जाती है जो भगवान इंद्रा से जुड़ी हुयी है।

मंदिर का बैक साइड और पत्थर द्वारा बना हुआ प्रागण

कहते हैं की एक बार भगवान इंद्रा अपना राज पाठ खो बैठे थे। तब उन्होंने इसी मंदिर में आकर माता की स्तुति और आराधना की थी। माता के आशीर्वाद से भगवान इंद्रा को अपना सिंहांसन दुबार मिल जाता है। तभी से कहते हैं की इस मंदिर में जो कोई भी सच्चे मन से माता की आराधना करता है उसकी इच्छा जरूर पूरी होती है।

सुरकंडा देवी मंदिर की टाइमिंग

आप साल में कभी भी इस मंदिर में आ सकते हैं। इस मंदिर में माता काली के दर्शन किये जाते हैं और आप मंदिर में सुबह 7 से 12:00 बजे तक उसके बाद आधे घंटे के लिए कपाट बंद कर दिए जाते हैं और बाद में आप 12:30 से 8 बजे तक माता के दर्शन कर सकते हैं। यदि आप ठंडो के समय इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आ रहें हैं तब मंदिर में माता के दर्शन करने का समय में थोड़ा बदलाव कर दिया जाता है। ठंडो में 8 बजे से 12:00 बजे तक और फिर 12:30 बजे से 7 बजे तक आप मंदिर में दर्शन कर सकते हैं।

सुरकंडा देवी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय

आप सुरकंडा देवी मंदिर में दर्शन करने के लिए साल में कभी भी आ सकते हैं। मंदिर में माता के दर्शन करने का जो सबसे अच्छा समय बताया जाता है वो गंगा दशहरा और नवरात्रों का है। कहते हैं इन दिनों में माता से जो कुछ भी माँगा जाता है माता उसे जरूर पूरा करती हैं। तो यदि आप गंगा दशहरा या नवरात्रो के समय में देहरादून या धनौल्टी आये हुए हैं तो सुरकंडा देवी मंदिर में माता के दर्शन करने के लिए जरूर जाए।

मंदिर तक रोपवे का किराया

यदि आप मंदिर तक 3 किलोमीटर की चढ़ाई करने में असमर्थ हैं तो आप कद्दूखाल से मंदिर तक रोपवे का सहारा ले सकते हैं। रोपवे का निर्माण अभी हाल के ही समय में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा करवाया गया था। कद्दूखाल से मंदिर तक रोपवे का किराया 210 रुपये है GST के साथ और आपको 4 साल से अधिक उम्र के बच्चे का टिकट लेना होगा। यह किराया रोपवे का दोनों तरफ का होता है, तो आप मंदिर तक पहुंचने के लिए रोपवे का सहारा ले सकते हैं।

कद्दूखाल से सुरकंडा देवी मंदिर तक रोप वे और रोपवे का प्रयोग करते हुए श्रद्धालु

सुरकंडा देवी मंदिर में मिलने वाला अनोखा प्रसाद

आपने अधिकतर माता या किसी भी मंदिर से मिलने वाले प्रसाद में लड्डू, मक्खन, दूध से बना प्रसाद या कहीं कहीं पर मदिरा के बारे में सुना होगा, लेकिन इस मंदिर में प्रसाद के तौर पर श्रद्धालुओं को रौंसली की पत्तियां दी जाती हैं। मंदिर में मिलने वाले इस प्रसाद के बारे में लोगो का मानना है की इन पत्तियों को जिस भी जगह रखा जाता है वहां सुख-समृद्धि का वास होता है। इस पेड़ को लोग बहुत अधिक पूजनीय मानते हैं और इस पेड़ का प्रयोग किसी भी और तरह से नहीं किया जाता है।

सुरकंडा देवी मंदिर की चढ़ाई कितनी है?

सुरकंडा देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको आज से कुछ साल पहले ट्रेक करना होता था, लेकिन अब रोपवे द्वारा आप आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। मंदिर उत्तराखंड में लगभग 2756 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको लगभग 3 किलोमीटर की चढ़ाई करनी होती है। मंदिर के लिए चढ़ाई कद्दूखाल से शुरू होती है और मंदिर पर जाकर खत्म होती है।

मंदिर का ट्रेक थोड़ा कठिन है क्यूंकि आपको यहाँ पर सीढ़ियों द्वारा एक दम से खड़ी चढ़ाई का सामना करना होता है। जो इस ट्रेक को मुश्किल बनाती है। यह ट्रेक जंगल से होकर जाता है तो ट्रेक करते वक़्त आपको मुश्किल हो सकती है लेकिन ट्रेक को करने में मज़ा भी बहुत आता है। तो यदि आप इस मंदिर में पहली बार आ रहें हैं तो आप ट्रेक करके ही जाए, लेकिन आपको साँस लेने में या ऊंचाई पर चढ़ने में दिक्कत है तो आप मंदिर तक रोपवे के सहारे ही जाए।

सुरकंडा देवी मंदिर कैसे पहुंचे?

यह मंदिर उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है। यहाँ तक पहुंचने का जो सबसे अच्छा साधन है वह सड़कमार्ग द्वारा है। आप अपने शहर से सुरकंडा के बेस कैंप कद्दूखाल तक सड़कमार्ग द्वारा पहुंच सकते हैं। यदि आप रेलमार्ग या हवाईमार्ग द्वारा यहाँ आना चाहते है तो आप इनके सहारे सिर्फ आधी दूरी ही तय कर सकते हैं और बाकि की आधी दूरी आपको सड़कमार्ग द्वारा पूरी करनी होगी। तो आईये जानते हैं की आप कैसे इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं….

सड़कमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?

मंदिर तक पहुंचने का सबसे अच्छा साधन सड़कमार्ग द्वारा है। आप अपने किसी भी साधन द्वारा सबसे पहले देहरादून या धनौल्टी पहुंचे। आप देहरादून तक फ्लाइट, रेल और बस तीनो साधनो द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं। देहरादून से सुबह में धनौल्टी के लिए एक डायरेक्ट बस है जो सुबह 6 बजे चलती है उसके बाद आपको देहरादून से कोई भी डायरेक्ट सरकारी बस नहीं मिलेगी। यदि आपकी बस छूट जाती है तो आप प्राइवेट टैक्सी या कैब के सहारे मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

रेलमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?

यदि आप रेलमार्ग द्वारा यहाँ तक पहुंचना चाहते हैं तो कद्दूखाल में तो कोई भी रेलवे स्टेशन नहीं है। मंदिर के सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन देहरादून रेलवे स्टेशन है। देहरादून से कद्दूखाल तक की दूरी 63 किलोमीटर है जिसे आप प्राइवेट गाड़ी, शेयरिंग कैब या डायरेक्ट सरकारी बस द्वारा आसानी से पूरा कर सकते हैं।

हवाईमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे?

यदि आप हवाई मार्ग द्वारा यहाँ तक पहुंचना चाहते हैं तो कद्दूखाल में कोई एयरपोर्ट भी नहीं है। सुरकंडा देवी मंदिर के सबसे नजदीक एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो देहरादून में स्थित है। देहरादून से बाकि मंदिर तक की दूरी को आप आसानी से सड़कमार्ग द्वारा पूरा कर सकते हैं।


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