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वाराणसी भगवान शिव की नगरी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी, क्या है बनारस की मान्यता? कहां रुके? कैसे पहुंचे? आदि (Complete information about Varanasi, The City of Lord Shiva, What is the belief of Banaras? Where to Stay? How to Reach? Etc.)

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आज जब भी मैं भगवान शिव का नाम लेता हूँ तो मुझे हमेशा वाराणसी की याद आती है। जिसे कई और नामो से भी जाना जाता है जैसे, काशी, बनारस, भगवान शिव की नगरी आदि। काशी इस शहर का सबसे पुराना नाम है, जिसे आज ज्यादातर लोग “वाराणसी” के नाम से जानते हैं। काशी का अस्तित्व सबसे पुराना माना जाता है। जिस प्रकार काशी का अर्थ है – “रोशन करना”, उसी प्रकार यहाँ का वातावरण भी आनंदमय और पूरा शहर रोशनी से सराबोर होता है।

यह शहर धार्मिक दृष्टि से एक आस्था का केंद्र है। इस शहर के प्रति जितनी आस्था हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगो में है उतनी ही आस्था बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगो में भी है क्यूंकि यही वह शहर है जहाँ महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करने के बाद प्रथम प्रवचन दिया था। आज हम इस ब्लॉग में काशी से सम्बंधित ही सभी जानकारियों को जानेगे।

यह शहर कहाँ है? क्यों प्रसिद्ध है ये शहर? क्यों कहा जाता है वाराणसी को मोक्ष धाम? यहाँ के घाट कैसे हैं? क्या है घाटों की कहानी? आदि और भी बहुत सी जानकारी को हम इस ब्लॉग में जानेगे। आप किस तरह से यहाँ पहुंच सकते हैं और कहाँ-कहाँ घूम सकते हैं, इन सभी बातों को हम विस्तार पूर्वक जानेगे।हमारा इस ब्लॉग के माध्यम से यही उद्देश्य है आप अगर वाराणसी जाने का कोई प्लान बनाते हैं तो उस प्लान में ब्लॉग में दी गयी जानकारी द्वारा आपकी सहायता करना। तो आईये जानते हैं इस शहर के बारे में

वाराणसी शहर कहाँ है?

काशी जिसे वाराणसी भी कहते हैं। यह भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा के किनारे बसा हुआ अति प्राचीन शहर है। काशी के बारे में कहा जाता है की इस शहर को खुद भगवान शिव ने 5000 वर्ष पूर्व बसाया था और ये भगवान शिव के त्रिशूल से टिका हुआ है। काशी में ही भगवान शिव का काशी विश्वनाथ मंदिर भी है। भारत में काशी विश्वाननाथ नाम से तीन मंदिर हैं। पहला मंदिर काशी में दूसरा गुप्तकाशी में और तीसरा है उत्तकाशी में।

वाराणसी का कुछ विवरण

काशी शहर जिसके कण कण में भगवान शिव बसते हैं, जो “काल भैरव” के रूप में इस शहर की रक्षा भी करते हैं। यहाँ के सांसद देश के प्रधानमंत्री “श्री नरेंद्र मोदी जी है। बनारस में कुल 84 घाट हैं जिनमे हर किसी की एक अपनी अलग कहानी है जिनसे इन सभी घाटों के नाम जुड़े हुए हैं। यहाँ के मंदिर अपनी एक अलग कहानी कहते हैं “श्री काशीविश्वनाथ मंदिर” जिसने कितने ही वातावरणों को बदलते देखा। मणिकर्णिका घाट जिसने कितनी पीढ़ियों को अपने वंश सहित इन पंच तत्वों में विलीन होते देखा। बहुत सी इंट्रेस्टिंग कहानिया है इस शहर की जिनके बारे में हम जानेंगे।

वाराणसी का इतिहास

वाराणसी जाने से पहले आपको यहाँ के इतिहास के बारे में भी जानना जरुरी है क्यूंकि यह शहर ही एक ऐतहासिक है। यहाँ जितने भी टूरिस्ट प्लेस हैं उनका एक बहुत ही प्रसिद्ध इतिहास रहा है। तो अब हम थोड़ा वाराणसी के इतिहास के बारे में जानते हैं :-

काशी का इतिहास बहुत पुराना है कहा जाता है कि ये शहर हड़प्पा, सिंधु घाटी सभ्यता से भी पुराना है। कुछ पौराणिक कथाओ के अनुसार और यहाँ के लोगो का कहना है की काशी को स्वयं भगवान शिव ने लगभग 5000 वर्ष पूर्व बसाया था। वाराणसी का उल्लेख स्कन्द पुराण,रामायण, महाभारत, और हिन्दू धर्म का प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद में भी मिलता है। वाराणसी का महत्व इसलिए भी बहुत रहा हैं क्यूंकि यहाँ वक़्त वक़्त पर बहुत से महान साधु संत और कवि आते रहें हैं और बहुत से महात्माओ का यह महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।

यही वो शहर है जहाँ भगवान गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन दिया था, जिस स्थान पर भगवान गौतम बुद्ध ने प्रवचन दिया था उस स्थान को “सारनाथ” के नाम से जाना जाता है। इसी शहर में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की थी। वाराणसी भारत की ऐसी सांस्कृतिक धरोहर हैं जिसकी सुंदरता का वर्णन शब्दों में कर पाना मुश्किल है।

धर्मशाला और होटल्स

आप वाराणसी में होटल्स, धर्मशालाए और डॉरमिटरी रूम्स को ऑनलाइन बुक कर सकते हैं लेकिन मेरा यह मानना है की आप वाराणसी में पहुंच कर एक अच्छे वातावरण को देखकर और अपने मन मुताविक घाटों के पास रूम को देखकर बुक करे। आप हमेशा घाटो के पास अंदर गलियों में अपना रूम ले जिससे आपको कम रुपये में एक अच्छा रूम मिल जायेगा।

अगर आप बस या ट्रेन से आते हैं तो उनसे बाहर आने पर आपको टैम्पो मिल जायेंगे अगर आप उनसे बात करेंगे वो भी आपको होटल्स दिखा देंगे। वाराणसी में आपको एक अच्छी और कम रुपये मे धर्मशाला भी मिल जाएगी जो की मेरे हिसाब से रुकने के लिए बेस्ट ऑप्शन हैं।

वाराणसी का खाना?

यहाँ आपको हर एक मौसम में खाने का अलग का जायका मिल जायेगा। वाराणसी में आपको हर तरह का खाना मिल जायेगा। यहाँ आपको सुबह में इडली, पूड़ी छोले अत्यधिक मिलते हैं। गर्मियों में लस्सी काफी फेमस है तो यहाँ का पान भी बहुत ज्यादा फेमस है। यहाँ आपको हर तरह के खाने के होटल्स मिल जायेंगे। बाकि आप यहाँ जिस भी तरह का खाना चाहते हैं वह सब आपको मिल जाएगा।

वाराणसी कैसे पहुंचे?

वाराणसी एक ऐसा शहर है जहाँ आप हर किसी साधन द्वारा पहुंच सकते हैं। वाराणसी में आप फ्लाइट द्वारा, ट्रैन द्वारा और बस द्वारा आराम से पहुंच सकते हैं। वाराणसी एक ऐसा शहर है जो की यातायात द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। तो आईये जानते है आप कैसे वाराणसी तक पहुंच सकते हैं।

फ्लाइट द्वारा वाराणसी कैसे पहुंचे?

यदि आप वाराणसी फ्लाइट द्वारा जाना चाहते हैं तो काशी विश्वनाथ मंदिर और घाटों से सबसे नजदीक एयरपोर्ट लाल बहादुर शास्त्री इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। जो देश के सभी बड़े एयरपोर्ट से जुड़ा हुआ है। दिल्ली से वाराणसी की दूरी फ्लाइट द्वारा 676 किलोमीटर है।

ट्रेन द्वारा वाराणसी कैसे पहुंचे?

यदि आप वाराणसी ट्रेन द्वारा जाना चाहते है तो मंदिर और घाटों के सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन वाराणसी सिटी स्टेशन है। यहाँ वाराणसी बनारस नाम से स्टेशन हैं जो की थोड़ा उलझ सकते हैं। यहाँ के लिए ट्रेन आपको दिल्ली लखनऊ प्रयागराज और भी बहुत से बड़े शहरों से मिल जाएँगी।

बस द्वारा वाराणसी कैसे पहुंचे?

यदि आप वाराणसी के पास के ही किसी शहर से आते हैं तो तब तो आप इस सफर को बस द्वारा करे। यदि आप दिल्ली या वाराणसी से काफी दूरी पर रह रहे हैं तो आप इस सफर को ट्रेन द्वारा ही तय करे जो की सबसे अच्छा तरीका होता है। वाराणसी के लिए बसे आपको प्रयागराज, लखनऊ और भी शहरों से मिल जाएँगी।

आप वाराणसी पहुंच कर कहाँ कहाँ घूम सकते हैं?

आप वाराणसी में कहाँ-कहाँ जा सकते हैं और घूम सकते हैं। इन सभी जगहों के बारे में हम विस्तार पूर्वक जानेगे।

वाराणसी के घाट

वाराणसी के घाट विश्व प्रसिद्ध घाट हैं। वाराणसी में घाटों की संख्या 84 है। यहाँ घाटों की सुंदरता बहुत ही अलग होती है, यहाँ घाटों पर सुबह के समय एक तरफ सूर्य की किरणे जो माँ गंगा पर रौशनी बिखेरती हैं तो ऐसा लगता है की गंगा का पवित्र जल सुनेहरा हो गया हो, तो दूसरी तरफ हवाएं गंगा के जल को कुछ छोटी छोटी लहरों में तोड़ देती है जो मन को मोह लेती हैं। वही धुपबत्ती से फैली हुई सुगंध तो एक तरफ मंत्रो का उच्चारण कानो में पड़ता है जो एक अलग एहसास दिलाता है।

शाम के समय घाटों पर होती हुई आरती आप को इतना मनमोहक बना लेती जिसका अनुभव आपने नहीं किया होगा। जहाँ शंखो की ध्वनि, मंत्रो का उच्चारण घंटी की आवाज़ आपको अपने में विलीन कर लेती है। यहाँ के हर घाट की अपनी एक अलग सुंदरता है, तो अपनी एक अलग अद्धभुत कहानी भी है। हर कहानी तुम्हारे ज़िन्दगी के हर एक सवाल का जबाव देने की कोशिश करती है, बस आपको उस कहानी को समझना होता है।

यहाँ के कुछ घाट अपनी धार्मिक और कहानियो के लिए प्रसिद्ध हैं तो कुछ अपने इतिहास के लिए। यहाँ हर एक घाट की चाहे वो दशाश्वमेध घाट हो, अस्सी घाट हो, तुलसी घाट, हनुमान घाट, हरिश्चंद्र घाट या हो मणिकर्णिका घाट आदि सभी की अपनी एक अलग कहानी हैं, जिनमे हम कुछ घाटों के बारे में बात करेंगे –

दशाश्वमेध घाट

इस घाट का धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों ओर से अत्यधिक महत्व हैं। कहते हैं कि काशीखंड के अनुसार ब्रह्मा जी ने काशी आकर इस घाट पर दस अश्वमेध यज्ञ किये थे। शिवरहस्य के अनुसार पहले यहाँ रूद्रसरोवर था ,जो गंगा जी के आगमन के बाद गंगा जी में विलीन हो गया। इस घाट पर तीर्थयात्री को स्नान करना बहुत ही अच्छा माना जाता है। बनारस के घाटों में यह घाट सभी घाटों में सबसे महत्वपूर्ण घाट है। 1929 में इस घाट के पास रानी पुटिया के मंदिर के नीचे खुदाई में यज्ञ कुंड भी मिले थे।

अस्सी घाट

पौराणिक मान्यता है की माता दुर्गा ने दो राक्षस शुम्भ और निशुम्भ का वध करके इसी तट पर विश्राम किया था और यही अपनी असि (तलवार) छोड़ दी थी जिसके गिरने से असि नदी उत्पन्न हुई। असि नदी और गंगा जी का संगम विशेष रूप से बहुत पवित्र माना जाता हैं। इसी कारण इसे अस्सी घाट कहा जाता है। गंगा जी के आगमन के बाद अस्सी नदी का अस्तित्व गंगा जी में विलीन हो गया।

तुलसी घाट

श्री गोस्वामी तुलसीदस जी ने इसी घाट पर श्री रामचरितमानस की रचना की थी और इसी घाट पर अपने शरीर को त्यागा था, इसी कारण इस घाट का नाम तुलसी घाट पड़ा।

हरिश्चंद्र घाट

ये नाम राजा हरिश्चंद्र जी के नाम पर पड़ा। राजा हरिश्चंद्र जिन्हे परम त्यागी कहा जाता है। जिन्होंने अपना सारा धन, राज्य, वैभव एक ब्राह्मण को दान कर दिया और ब्राह्मण को दक्षिणा देने के लिए खुद को डोम राजा (शवों की क्रिया करने वाला) को बेचकर उस ब्राह्मण को दक्षिणा दी। इसी घाट पर राजा हरिश्चंद्र शवों की अंतिम प्रक्रिया का कार्य करते थे। इसी वजह से इस घाट का नाम हरिश्चंद्र घाट पड़ा।

मणिकर्णिका घाट

मणिकर्णिका घाट, जिसे मोक्ष घाट या मोक्ष का दरवाजा भी कहा जाता है। इस घाट पर शवों की अंतिम क्रिया का कार्य किया जाता है, और इस घाट पर कभी भी आग बुझती नहीं है हमेशा एक न एक दाह संस्कार होता रहता है। इस घाट पर आपको एक ऐसा अनुभव होगा जो की शब्दों से बयां नहीं किया जा सकता है।

इस घाट से जुडी हुई एक पौराणिक कहानी है। कहा जाता है की एक बार माता पार्वती के कुण्डल इसी जगह गिर जाते हैं और भगवान शिव उन्हें ढूंढने के लिए सात ब्राह्मण जो डोम जाति के होते हैं उन्हें भेजते हैं। ब्रह्मणो के वापस आने पर जब भगवान शिव उन ब्राह्मणो से कुण्डलों के बारे में पूछते हैं तो ब्राह्मण मना कर देते हैं की उन्हें कुण्डल नहीं मिले, परन्तु भगवान शिव जान जाते हैं की इन्हे कुण्डल मिल गए हैं और ये झूठ बोल रहे है।

इस बात से भगवान शिव बहुत क्रोधित हो जाते हैं और उन सातो ब्राह्मणो को श्राप देते हैं की तुम और तुम्हारी आने वाली पीढ़ियां शवों की अंतिम क्रिया का कार्य करोगे, तब से लेकर अब तक कहा जाता है की शव पर पहली पांच लकड़ी डोम का राजा ही रखता है।

ऐसी ही न जाने कितनी कहानिया हैं इन घाटों की जिन्हे अनुभव करने के लिए आपको खुद यहाँ आना होगा। यहाँ हर घाट पर आपको संस्कृति के दर्शन होंगे और एक अलग तरह की ऊर्जा महसूस होगी। ना जाने कितने वर्षों से काशी ने वो सब देखा जिसके बारे में हम सोच भी नहीं सकते हैं।

घाट पर शाम की आरती

आप जब शाम की गंगा जी की आरती में शामिल हों तो आप घाट पर आरती से कुछ टाइम पहले पहुंच जाये और वहां नाव को बुक कर ले उसका किराया वैसे तो आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप उनके साथ कितनी बार्गेनिंग कर सकते हैं। वैसे प्रति व्यक्ति नाव का किराया 100-200 रुपये होता है।

वाराणसी आरती

आरती से पहले मंत्रो की ध्वनि की आवाज़ तो दीपको से जगमगाते हुऐ घाट आपको अपनी ओर आकर्षित करते हैं। आप जब नाव बुक करे तो उससे आरती के बाद गंगा जी के उस पार जहाँ टेंट हाउस है वहां की भी बात कर ले और वहां भी घूम कर आये और वहां की सुंदरता भी देखें।

काशी विश्वनाथ मंदिर

काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक मंदिर है। यह मंदिर कई हज़ारो सालो से गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने और पवित्र गंगा जल में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर के दर्शन के लिए आदि शंकराचार्य , संत एकनाथ, गोस्वामी तुलसीदास आदि महा पुरुषो का आगमन हुआ है। गोस्वामी तुलसीदास ने बनारस के इन्ही घाटों पर श्री रामचरितमानस की रचना की थी।

इस मंदिर को बहुत बार मुस्लिम शासको द्वारा तोड़ दिया गया, परन्तु हर बार एक नयी सुबह के साथ ये मंदिर बन कर फिर खड़ा हुआ। काशी विश्वनाथ मंदिर की खूबसूरती कॉरिडोर बनने से और भी बढ़ गयी है। कॉरिडोर में जहाँ एक ओर भारत माता की प्रतिमा है तो एक ओर आहिल्याबाई होल्कर जी की प्रतिमा है। आहिल्याबाई होल्कर जी ने इस मंदिर को 1780 में पुनर्निर्माण कराया था और बाद में महाराज रणजीत सिंह ने 1000 किलोग्राम शुद्ध सोने द्वारा मंदिर बनवाया था।

काल भैरव मंदिर (काशी के क्षेत्रपाल)

बनारस भगवान शिव की नगरी है इसलिए भगवान् शिव ने अपने ही अंश भगवान “काल भैरव” को यहाँ का क्षेत्रपाल नियुक्त किया है। इन्हे काशी के लोगो को दंड देने का अधिकार है। यहाँ काल भैरव को प्रसाद के रूप में मदिरा चढ़ाई जाती है। कहते हैं कि माता सती के पिंड की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने काल भैरव को वाराणसी का कोतवाल नियुक्त किया। मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि माता सती के शरीर का एक हिस्सा बनारस में पिंड रूप में गिर गया था, जो माता सती के 51 शक्ति पीठो में से एक है। जिस जगह पर शरीर का हिस्सा गिरा वह स्थान विशालाक्षी मंदिर के नाम से जाना जाता हैं।

सारनाथ

सारनाथ जो कि बोद्धो के लिए सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र है, क्यूंकि यही स्थान है जहाँ गौतम बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति के बाद प्रथम प्रवचन दिया था। सारनाथ मुख्य बनारस से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है, तो आप जब भी वाराणसी आये तो इस जगह जरूर जाये। यहाँ आप हिरन पार्क में बौद्ध स्तूपों, संग्रहालयों, प्राचीन मंदिरो को देख सकते हैं।

यहाँ आप चौखंडी स्तूप, अशोक स्तंभ, थाई मंदिर, तिब्बती मंदिर, और पुरातत्व संग्राहलयों को देख सकते हैं। जहाँ पुरातत्व संग्रहालय का टिकट 5 रुपये है और चौखंडी स्तूप का टिकट 20 रुपये का है। कहते हैं चौखंडी स्तूप में गौतम बुद्ध के दाँत को पैक कर दवाया गया है।

दुर्गा मंदिर

लाल पत्थरो से बना ये मंदिर बनारस कैंट एरिया से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का उल्लेख काशीखंड में भी मिलता है। इस मंदिर के अंदर भैरोनाथ, माता लक्ष्मी, सरस्वती जी ओर काली माँ का मंदिर भी बना हुआ है। इस मंदिर में हवन कुंड बने हुए हैं जहां प्रतिदिन हवन होता है तथा इस मंदिर में मुंडन भी होते हैं।

संकट मोचन मंदिर

संकट मोचन मंदिर, दुर्गा मंदिर से लगभग 750 मीटर की दूरी पर है। आप दुर्गा मंदिर से संकट मोचन मंदिर तक की दूरी को पैदल चल कर ही पूरा करे जिससे आप उन गलियों के वातावरण का एहसास कर सकते हैं। इस मंदिर में शुद्ध घी के बेसन के लड्डू चढ़ाये जाते हैं। मंदिर के चारो ओर हरियाली है जो मंदिर को और सुन्दर बना देती है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले मोबाइल बाहर लॉकर में रखवा लिए जाते हैं, क्यूंकि वहां फोटो खींचना बिलकुल मना है।

मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति को इस प्रकार स्थापित किया गया है कि हनुमान जी सामने ही बने श्री राम जी के मंदिर में राम जी की ओर देख रहे ठीक उसी प्रकार श्री राम हनुमान जी की ओर देख रहे हैं। वहां के लोकल लोगो का कहना है इस मंदिर को तुलसीदास ने बनवाया था। वही मंदिर के प्रागण में बने कुए को तुलसीदास जी के समय का ही बताया जाता है।

बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी

बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी “BHU ” की सन 1916 को महामना मदन मोहन मालवीय जी ने स्थापना की थी। इस विश्वविद्यालय के दो परिसर हैं। मुख्य परिसर (1300 एकड़ ) वाराणसी में स्थित है, जिसकी भूमि काशी नरेश ने दान में दी थी। मुख्य परिसर में 6 संस्थान, 14 संकाय,140 विभाग हैं। विश्वविद्यालय का दूसरा परिसर मिर्ज़ापुर जनपद में बरकछा नामक जगह (2700 एकड़ ) पर स्थित है।

75 छात्रावासो के साथ यह एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है। जिसमे 30,000 से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं, जिनमे लगभग 34 देशों से आये छात्र शामिल हैं। मुख्य परिसर में भगवान विश्वनाथ का विशाल मंदिर भी बना हुआ है।

मैंने इस ब्लॉग में वाराणसी में घूमने की कुछ ही जगहों के बारे में बताया है। ऐसी न जाने कितने खूबसूरत मंदिर काशी में बने हुए हैं और बहुत ही सुन्दर जगह हैं जहाँ आप घूम सकते हैं।

कुछ महत्वपूर्ण बाते

  • आप वाराणसी आये तो लगभग 3- 4 दिन का प्लान बनाये जिससे आप बनारस को अच्छी तरह एक्स्प्लोर कर सकते हैं।
  • यहाँ आप होटल्स ऑनलाइन न बुक करके ऑफलाइन यहाँ पहुंच कर करे।
  • अगर आप ट्रेन द्वारा आये हैं और उसी से वापस जाने वाले हैं तो आप स्टेशन का ख़ास ख्याल रखे बरना स्टेशन के नामो की वजह से कुछ उलझन हो सकती है।
  • आप रात में कुछ समय मणिकर्णिका घाट पर जरूर बिताये। जो आपकी ज़िन्दगी के असल सच यानी मौत से रूबरू कराती है।

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8 thoughts on “वाराणसी भगवान शिव की नगरी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी, क्या है बनारस की मान्यता? कहां रुके? कैसे पहुंचे? आदि (Complete information about Varanasi, The City of Lord Shiva, What is the belief of Banaras? Where to Stay? How to Reach? Etc.)”

  1. This story was very useful for me regarding the knowledge about Bnaras and its famous
    temples 🙏.
    Through this story I got a lot of information about Bnaras. 🌸🙂

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