वाराणसी के बारे में पूरी जानकारी एक सच्ची वाराणसी यात्रा के साथ

वाराणसी: आज के समय में हर किसी को घूमने का शौक होता है। हम लोग बहुत सी यात्रा भी करते हैं पर उनमे से कुछ यात्राएं ऐसी होती हैं। जो हमे हमेशा याद रहती हैं। ऐसी ही एक यात्रा मैंने अपने दोस्तों के साथ कि जो मुझे हमेशा याद रहेगी। वो मेरे जीवन की पहली यात्रा थी, जो मैंने अपने दोस्तों के साथ की थी। जितनी अद्धभुत, अकल्पनीय, सस्पेंस और थ्रिलर से भरी हमारी यात्रा थी। उससे कही ज्यादा वो शहर अद्धभुत और अकल्पनीय था, जहाँ हम जाने वाले थे।

कैसे उस शहर जाने से पहले हमारे एक फ्रेंड के साथ फ्रॉड हुआ? कैसे हमारी ट्रेन कैंसल हुई? किस प्रकार हम सब बनारस पहुंचे? वहां के घाटों की सच्चाई? वो रात का समय जब हमारे साथ वहां के एक घाट पर एक घटना हुई? और भी वहां की कुछ यादों को आपके साथ साझा करूँगा। आपको वहां क्यों जाना चाहिए इस बारे में भी बात करेंगे। आप वहां कहाँ – कहाँ घूम सकते हैं? वहां रुकने की व्यवस्था कैसी है। वहां के भोजन के बारे में। इन सभी बातों को हम इस ब्लॉग के माध्यम से जानेंगे। आपके उस शहर जाने से पहले आपके जितने भी सवाल हैं। मेरी इस ब्लॉग के माध्यम से लगभग उन सभी सवालों के उत्तर देने की कोशिश होगी।

वाराणसी के कुछ तथ्य

अपनी यात्रा को शुरू करने से पहले मैं उस शहर के बारे में थोड़ी जानकारी देना चाहूंगा। जो मैंने भी यात्रा से पहले ही पड़ी थी। हम जिस शहर जाने वाले थे वो शहर था “काशी” जिसे बनारस और वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है। जैसा की काशी का अर्थ है- “रोशन करना”। उसी प्रकार वहां का वातावरण भी एक तरह से आनंदमय और पूरा शहर रौशनी से सराबोर होता है। बनारस शहर के कण कण में भगवान् शिव बसते हैं जो “काल भैरव” के रूप में इस शहर की रक्षा करते हैं। यहाँ के सांसद देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी हैं।

जब मैं इस शहर के बारे में पढ़ रहा था तो मैंने कुछ ऐसी चीजों के बारे में पढ़ा जो मेरी सोच से बिलकुल परे थी। बनारस में कुल 84 घाट हैं। जिनमे हर किसी घाट की एक अपनी अलग कहानी है जिनसे इन सभी घाटों के नाम जुड़े हुए हैं। यहाँ के मंदिर अपनी एक अलग कहानी कहते है। “श्री काशीविश्वनाथ मंदिर” जिसने कितने ही यहाँ के वातावरण को बदलते देखा। मणिकर्णिका घाट जिसने कितनी पीढ़ियों को अपने वंश सहित इन पांच तत्वों में विलीन होते देखा। बहुत सी इंट्रेस्टिंग कहानियां हैं, इस शहर की जिनके बारे में हम जानेंगे।

हमारा सफर

मैं और मेरे दो दोस्त जिन्होंने SSC की कोचिंग ज्वाइन की थी उसी समय हमारे कुछ और भी फ्रेंड्स बन गए। उस कोचिंग के एक टीचर जो हमसे कुछ साल ही बड़े थे। उन्होंने हमे इस जगह और वहां की ट्रिप के बारे में बताया। इस जगह के बारे में सुन कर, मैं तो हमेशा की तरह बहुत उत्साहित हो गया। मुझे घूमने का बहुत शौक है। नयी नयी जगह जाना और वहां के लोगो को जानना और वहां के वातावरण को महसूस करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। तो हम सब दोस्त वहां जाने के लिए तैयार हो गए। जिनमे से कोचिंग के मेरे 4 दोस्त और हमारे दो सर और उनके दो दोस्त, टोटल हम सब 9 लोग थे।

अब बारी थी ट्रेन के टिकट की। उस समय हमे टिकट मिली नहीं तो हमने एक महीने के बाद की टिकट बुक कर दी। जैसे जैसे डेट पास आती जा रही थी, हमारी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। हमारी ट्रेन के लगभग 5 – 6 दिन पहले हमारे साथ एक बहुत बड़ी घटना घटित हुई।

दोस्त के साथ फ्रॉड

जब हम सभी फ्रेंड्स बनारस और उसकी गलियों में खोये हुए उनकी बातें कर रहे थे कि तभी हमारे एक फ्रेंड के साथ बहुत बड़ी घटना हुई जिसमे मेरे दोस्त के ऑनलाइन लगभग 63000 Rs /- का फ्रॉड हुआ। ये घटना कुछ इस प्रकार घटी की हम सब लोग अचंभित हो गए और किसी को कुछ समझ ही नहीं आया की ये हुआ क्या।

दरअसल हुआ कुछ यूँ की जब हम लोग SSC की कोचिंग कर रहे थे तो उसे लैपटॉप की जरूरत थी। उसने ऑनलाइन सेकंड हैंड एक लैपटॉप बुक कर दिया। उसने गलती से उस इंसान को पैसे पहले ट्रांसफर कर दिए और वो इंसान जिसका वो लैपटॉप था। वो फ्रॉड निकला और न तो उसने लैपटॉप डिलीवर किया और न ही पैसे वापस किये। इस वजह से उसका बनारस जाना कैंसल हो गया। हम सब भी बहुत दुखी थे क्यूंकि वो अमाउंट कुछ ज्यादा था। वैसे भी हम सब मिडिल क्लास फैमिली से बिलोंग करते है। तो हमारे लिए वो अमाउंट वैसे भी बहुत ज्यादा थी।

ट्रेन का कैंसल होना

हम सब जैसे तैसे इस घटना से बहार आये ही थे। हमारे सर के मोबाइल पर मैसेज ने एक और बड़ी समस्या खड़ी कर दी। हमे पता लगा की जिस ट्रेन से हम सब बनारस जाने वाले थे, वो कैंसल हो चुकी थी। एक के बाद एक समस्या हमारे सामने आती जा रही थी। ये समस्या तो सबसे बड़ी थी अब हम सब बनारस जाये तो कैसे जाये। इस बात को सुनने के बाद हमे लगा हमारा ये प्लान कैंसल हो गया। कहाँ हम सब बनारस के घाटों वहां के खाने के बारे में सोच सोच कर खुश हो रहे थे। वही एक के बाद एक समस्याओ ने पूरा खेल ही बदल दिया।

हम सभी दोस्त अपने सर से कुछ भी करके वहां जाने का प्लान बनाने को बोल रहे थे। अब हम सभी किसी भी हाल में सिर्फ बनारस जाना चाहते थे।। हमारे मन में सिर्फ बनारस और सिर्फ बनारस ही चल रहा था। सर ने हमसे शाम तक रुकने के लिए बोला और वो स्टेशन पर हमारी टिकट की जानकारी लेने के लिए गए। हम सभी प्रार्थना कर रहे थे की किसी भी तरह हमे टिकट मिल जाये और फिर शिव शंभू ने हमारी बात सुनी और हमे टिकट मिल गए। हम सभी टिकट मिलने के बाद बस उस टाइम का इंतज़ार करने लगे। जल्द ही वो वक़्त भी आ गया, जब हम सब तैयार थे, अपनी जर्नी के लिए।

एक यादगार ट्रेन का सफर

हमारी ट्रेन का टाइम शाम 6:00 बजे का था। हम सभी लोगो ने तय किया की हम सब स्टेशन पर मिलेंगे। मैं और मेरे दो दोस्त एक साथ स्टेशन पर पहुंचे तो मेरा एक और फ्रेंड भी वही मिल गया। हम चारो लोग अपने सर का और ट्रेन का इंतज़ार करने लगे। हमारी ट्रेन हमारे सामने थी और हमारे सर का कुछ भी अता पता नहीं था। हमे लगा की शायद हमारी ट्रेन छूट जायगी पर ट्रेन के चलने से 2 मिनट पहले हमे सर दिखे और हम सभी लोग जल्दी से अपने डिब्बे में जाके बैठ गए।

वो ट्रेन का सफर मेरी ज़िन्दगी का एक ऐसा सफर था जिसमे मैंने बहुत कुछ सीखा था। उस ट्रैन में हम सब ने गाने सुनते गाते हुए काशी तक का सफर तय किया। जहाँ कुछ टाइम बाद हम दोस्त अपनी शीट पर आकर गाने सुनने लगे। वही हमारे सर अपने दोस्तों के साथ UNO खेलने लगे। जैसा की मैंने पहले बताया की हमारी और हमारे सर की उम्र में ज्यादा अंतर नहीं है। तो हम सब एक दूसरे से घुले मिले हुए थे और एक दूसरे से मजाक कर रहे थे। उस ट्रेन के सफर में हमे एक फौजी अंकल भी मिले। जिन्होंने कुछ फौज के किस्से सुनाये और हसते हसाते हुए वो ट्रेन का सफर कब खत्म हो गया। हम अपनी मंज़िल तक पहुंच चुके थे हमे पता ही नहीं लगा।

बनारस का वो अद्धभुत सा अहसास

जैसे ही हम स्टेशन पर पहुंचे हमने वहां के वातावरण का एक अलग ही अनुभव किया जो की एक बिलकुल ही अलग और एक नया एहसास था। हम सब स्टेशन से बाहर आये और दो टैम्पो बुक किये और अपने होटल की तलाश में निकल पड़े और हमारे टैम्पो वाले भैया ने हमे कुछ होटल दिखाए जिनमें से हमने एक होटल के दो रूम बुक कर लिए और हमारे होटल से लगभग पांच मिनट की दुरी पर बनारस के विश्व प्रसिद्ध घाट थे।

मेरा मानना है की जब भी आप बनारस आये तो आप ट्रेन से सफर करे इससे एक तो आपको पैसे कम खर्च करने पड़ेंगे और ट्रेन के सफर की बात ही कुछ और होती है।

धर्मशाला और होटल्स :- आप जब भी बनारस आये तो होटल्स ऑनलाइन बुक न करे मेरा मानना है की आप वहां पहुंच कर ही होटल्स बुक करे जिससे आप एक अच्छे वातावरण को देखकर और अपने मन मुताविक घाटों के पास होटल्स देख सकते हो। आप हमेशा घाटों के पास अंदर गलियों में अपना रूम ले जिससे आपको कम रुपये में एक अच्छा रूम मिल जायेगा। अगर आप बस या ट्रेन से आते हैं तो उनसे बाहर आने पर आपको टैम्पो मिल जायेंगे अगर आप उनसे बात करेंगे वो भी आपको होटल्स दिखा देंगे। बनारस में आपको एक अच्छी और कम रुपये मे धर्मशाला भी मिल जाएगी जो की मेरे हिसाब से बेस्ट ऑप्शन है।

बनारस का इतिहास

इस सफर से पहले मैंने थोड़ा ही बनारस का इतिहास पढ़ा था और कुछ यहाँ पहुंच कर जाना, तो चलो बनारस के इतिहास के बारे में कुछ जानते हैं –

काशी का इतिहास बहुत पुराना है, कहा जाता है कि ये हड़प्पा, सिंधु घाटी सभ्यता से भी पुराना है। काशी की मान्यता है कि इस शहर को स्वयं भगवान शिव ने लगभग 5000 वर्ष पूर्व बसाया था और यह शहर शिव जी के त्रिशूल से टिका हुआ है। काशी का उल्लेख स्कंदपुराण, रामायण; और महाभारत सहित ऋग्वेद में भी मिलता है। यही वो शहर है जहाँ भगवान् गौतम बुध ने अपना प्रथम प्रवचन दिया था, जिस स्थान पर भगवान गौतम बुद्ध ने प्रवचन दिया था उस स्थान को “सारनाथ” के नाम से जाना जाता है। इसी शहर में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की थी। काशी भारत की ऐसी सांस्कृतिक धरोहर है जिसकी सुंदरता का वर्णन शब्दों में करना मुश्किल है। इनमे से कुछ जानकारी मैंने यहाँ आने से पहले पड़ी तो कुछ यहाँ आने के बाद देखी। तो अपनी यात्रा को आगे बढ़ाते हैं-

होटल पहुंचने के बाद मैंने और मेरे एक दोस्त ने अपना सारा सामान रखने के बाद हम दोनों लोग घाटों की और पहुंच गए जहाँ हमने वो देखा जो मुझे हमेशा याद रहेगा।

बनारस के घाट

हम सभी लोग सुबह के टाइम लगभग 6:00 बजे अपने होटल पहुंच गए। जब मैं घाट पर पंहुचा तो वहां की सुंदरता मानो प्रकृति ने जितने भी उसके पास रंग हैं, उन सभी को बिखेर दिया है। जहाँ एक तरफ सूर्य की किरणों ने गंगा पर रौशनी बिखेर दी थी ऐसा लग रहा था की गंगा का पवित्र जल सुनेहरा हो गया हो, तो दूसरी तरफ हवाओ ने गंगा के जल को कुछ छोटी छोटी लहरों में तोड़ दिया हो जो मन को मोह ले। वही धुपबत्ती से फैली हुई सुगंध तो एक तरफ मंत्रो का उच्चारण कानो में पढ़ रहा तो ऐसा लग रहा था मानो हम किसी और ही दुनिया में आ गए हैं।

शाम के समय घाटों पर होती हुई आरती आप को इतना मनमोहक बना है लेती जिसका अनुभव आपने नहीं किया होगा। जहाँ शंखो की ध्वनि, मंत्रो का उच्चारण घंटी की आवाज़ आपको अपने में विलीन कर लेती है। यहाँ के हर घाट की अपनी एक अलग सुंदरता है, तो अपनी एक अलग अद्धभुत कहानी है। हर कहानी तुम्हारे ज़िन्दगी के एक एक सवाल का जबाव देने की कोशिश करती है, बस आपको उस कहानी को समझना होगा। वैसे मुझे पता था की यहाँ के घाटों की संख्या 84 है पर मैंने घाटों के बारे में वहां पहुंच कर जाना। यहाँ के कुछ घाट अपनी धार्मिक कहानियो के लिए प्रसिद्ध हैं तो कुछ अपने इतिहास के लिए। जिनमे से कुछ घाटों के बारे में मैंने यहाँ पहुंच कर जाना।

दशाश्वमेध घाट

इस घाट का धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों ओर से अत्यधिक महत्व है। कहते हैं कि काशीखंड के अनुसार ब्रह्मा जी ने काशी आकर इस घाट पर दस अश्वमेध यज्ञ किये थे। शिवरहस्य के अनुसार पहले यहाँ रूद्रसरोवर था, जो गंगा जी के आगमन के बाद गंगा जी में विलीन हो गया। इस घाट पर तीर्थयात्री को स्नान करना बहुत ही अच्छा माना जाता है। बनारस के घाटों में यह घाट सभी घाटों में सबसे महत्वपूर्ण घाट है। 1929 में इस घाट के पास रानी पुटिया के मंदिर के नीचे खुदाई में यज्ञ कुंड मिले थे।

अस्सी घाट

पौराणिक मान्यता है की माता दुर्गा ने दो राक्षस शुम्भ और निशुम्भ का वध करके इसी तट पर विश्राम किया था और यही अपनी असि (तलवार) छोड़ दी थी जिसके गिरने से असि नदी उत्पन्न हुई। असि नदी और गंगा जी का संगम विशेष रूप से बहुत पवित्र माना जाता है। इसी कारण इसे अस्सी घाट कहा जाता है।

तुलसी घाट

श्री गोस्वामी तुलसीदस जी ने इसी घाट पर श्री रामचरितमानस की रचना की थी और इसी घाट पर अपने शरीर को त्यागा था, इसी कारण इस घाट का नाम तुलसी घाट पड़ा।

हरिश्चंद्र घाट

ये नाम राजा हरिश्चंद्र जी के नाम पर पड़ा। राजा हरिश्चंद्र जिन्हे परम त्यागी कहा जाता है। जिन्होंने अपना सारा धन, राज्य, वैभव एक ब्राह्मण को दान कर दिया और ब्राह्मण को दक्षिणा देने के लिए खुद को डोम राजा (शवों की क्रिया करने वाला) को बेचकर उस ब्राह्मण को दक्षिणा दी। इसी घाट पर राजा हरिश्चंद्र शवों की अंतिम प्रक्रिया का कार्य करते थे। इसी वजह से इस घाट का नाम हरिश्चंद्र घाट पड़ा।

मणिकर्णिका घाट

जिसे मोक्ष घाट या मोक्ष का दरवाजा भी कहा जाता है। इस घाट पर शवों की अंतिम क्रिया का कार्य किया जाता है, और इस घाट पर कभी भी आग बुझती नहीं है हमेशा एक न एक दाह संस्कार होता रहता है, इस घाट पर आपको एक ऐसा अनुभव होगा जो की शब्दों से बयां नहीं किया जा सकता है।

मणिकर्णिका घाट से जुडी पौराणिक कहानी

इस घाट से जुडी हुई एक रोचक कहानी है। कहा जाता है की एक बार माता पार्वती के कुण्डल इसी जगह गिर जाते हैं और भगवान शिव उन्हें ढूंढने के लिए सात ब्राह्मण जो डोम जाति के होते हैं उन्हें भेजते हैं। ब्रह्मणो के वापस आने पर जब भगवान शिव उन ब्राह्मणो से कुण्डलों के बारे में पूछते हैं तो ब्राह्मण मना कर देते हैं की उन्हें कुण्डल नहीं मिले, परन्तु भगवान शिव जान जाते हैं की इन्हे कुण्डल मिल गए हैं और ये झूठ बोल रहे हैं। इस बात से भगवान शिव बहुत क्रोधित हो जाते हैं और उन सातो ब्राह्मणो को श्राप दे देते हैं की तुम और तुम्हारी आने वाली पीढ़ियां शवों की अंतिम क्रिया का कार्य करोगे, तब से लेकर अब तक कहा जाता है की शव पर पहली पांच लकड़ी डोम का राजा ही रखता है।

ऐसी ही न जाने कितनी कहानिया हैं इन घाटों की जिन्हे अनुभव करने के लिए आपको खुद यहाँ आना होगा। यहाँ हर घाट पर आपको संस्कृति के दर्शन होंगे और एक अलग तरह की ऊर्जा महसूस होगी। ना जाने कितने वर्षों से काशी ने वो सब देखा जिसके बारे में हम सोच भी नहीं सकते हैं।

हमारा सफर

घाटों पर घूमने और उनकी सुंदरता को अपने मोबाइल में कैद करने के बाद हम दोनों लोग अपने होटल वापस आ गए और फिर हम सभी लोग मिलकर घाटों पर गए और वहां स्नान किया। घाटों से होते हुए हम पहुंचे “बाबा काशीविश्वनाथ मंदिर” की ओर –

काशी विश्वनाथ मंदिर

काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान् शिव को समर्पित एक प्राचीन और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर कई हज़ारो सालो से गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने और पवित्र गंगा जल में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर के दर्शन के लिए आदि शंकराचार्य, संत एकनाथ, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ है। गोस्वामी तुलसीदास ने बनारस के इन्ही घाटों पर श्री रामचरितमानस की रचना की थी।

इस मंदिर को बहुत बार मुस्लिम शासको द्वारा तोड़ दिया गया, परन्तु हर बार एक नयी सुबह के साथ ये मंदिर बन कर फिर खड़ा हुआ। काशी विश्वनाथ मंदिर की खूबसूरती कॉरिडोर बनने से और भी बढ़ गयी है। कॉरिडोर में जहाँ एक ओर भारत माता की प्रतिमा है तो एक ओर आहिल्याबाई होल्कर जी की प्रतिमा है। जिन्होंने इस मंदिर को 1780 में पुनर्निर्माण कराया था और बाद में महाराज रणजीत सिंह ने 1000 किलोग्राम शुद्ध सोने द्वारा मंदिर बनवाया था।

हमारा सफर

काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने के बाद हम लोग पूरा मंदिर घूमे और वहां के वातावरण को महसूस किया जो की शिवमय था जहाँ कुछ लोग अपनी पूजा करा रहे थे तो कुछ लोग बस भगवान शिव के भजनो में लीन थे। जो की हमे भी एक आनंद की अनुभूति से सराबोर कर रहे थे। वहां पूरा मंदिर घूमने के पश्चात हम सभी अपने रूम पर वापस आ गए और कुछ समय आराम किया।

हम सभी शाम के समय दुबारा गंगा के घाटों पर गए और वहां नाव से घाटों की सुंदरता देखी और गंगा आरती में शामिल हुये। शाम में गंगा के घाटों की बात कुछ और ही है, एक तरफ चाँद की चांदनी तो दूसरी तरफ घाटों पर लगी लाइट इस तरह अपने में तुम्हे समा लेती है जैसे एक माँ अपने बच्चों को अपने अँचल में समेट लेती है।

नाव का सफर और शाम कि आरती

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आप जब भी शाम की गंगा जी की आरती में शामिल हो तो आप घाट पर आरती से कुछ टाइम पहले पहुंच जाये और वहां नाव को बुक कर ले उसका किराया वैसे तो आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप उनके साथ कितनी बार्गेनिंग कर सकते हैं। हम लोगो ने पर पर्सन 100₹ /- दिये थे।

आरती से पहले कि घाटों कि सुंदरता को देखे कि किस प्रकार चाँद कि चांदनी ने गंगा कि लहेरो से टकराकर उनमे कितने ही रंग बिखेर दिये हैं। जहाँ कुछ और नाव कि लइटो ने गंगा जी को प्रकाशमान कर दिया है तो वहीं आरती से पहले मंत्रो की ध्वनि की आवाज़ तो दीपको से जगमगाते हुऐ घाट आपको अपनी ओर आकर्षित करते हैं। आप जब नाव बुक करे तो उससे आरती के बाद गंगा जी के उस पार जहाँ टेंट हाउस है वहां की भी बात कर ले और वहां भी घूम कर आये और वहां की भी सुंदरता देखें।

बनारस कि गलियाँ

आरती और घाटों पर घूमने के बाद हम सभी लोग बनारस कि गलियों में वहां के खाने का जायका लेने के लिए निकल पड़े। बनारस की वो संकरी गली जहाँ खाने कि दुकानों के साथ साथ वहां हैंड मेड साड़िया, पर्स, श्वाल तो कुछ हस्त शिल्प कला द्वारा निर्मित बर्तन जो हम सभी को आकर्षित कर रहे थे, तो हम सब ने सबसे पहले खाना खाने का प्लान किया और हम सब एक रेस्टोरेंट गये जहाँ हमने खाना खाया जो कि बहुत स्वादिस्ट था।

खाना खाने के बाद हम फिर से निकल पड़े इन प्यारी सी गलियों में जहाँ जाम लगने पर लोग लड़ाई नहीं उसका भी आनंद उठा रहे थे। जहाँ हर गली में हर तरफ शिव नाम कि गूंज थी तो दूसरी तरफ खाने की खुशबु से महकती हुई गलियाँ। इन गलियों में चलते हुए एक अलग एहसास था। वहां काफी समय तक घूमने के पश्चात् हम सभी एक शॉप पर गए जो कि साड़ियों के लिए प्रसिद्ध थी जहाँ मैंने अपनी मम्मी जी के लिए साडी खरीदी तो बाकि दोस्तों ने भी अपने अपने घर के लिए कुछ न कुछ खरीदा।

आधी रात का घाटों पर सफर

हम इन गलियों से होते हुऐ दुबारा घाट पर गए अब हम जिस घाट पर जा रहे थे वो ही हमारी ट्रिप का सबसे खास हिस्सा था क्यूंकि इसी घाट के बारे में पढ़ने के बाद हमे इसी घाट ने सबसे ज्याद आकर्षित किया था। जिस घाट पर हम सब जा रहे थे वो घाट था “मणिकर्णिका घाट”

जैसा की मैं इस घाट के बारे में ऊपर बता चूका हूँ, हम सब उसी चीज को अनुभव करने जा रहे थे। जब हम घाटों से होते हुए मणिकर्णिका घाट जा रहे थे तो हम लोगो को एक अलग ही शांति का अनुभव हो रहा था जो कि कुछ इस प्रकार था कि सभी ओर शांति वो नाव का शोर मंत्रो का उच्चारण वो भजनो कि ध्वनि सब बंद हो चुकी थी। वहां सिर्फ हमारे कदमो कि आवाज़ तो कुछ गंगा जी के लहरो कि आवाज़ थी जो हमे एक अलग एहसास दिला रही थी।

मणिकर्णिका घाट का रात का नज़ारा

हम सब इन सभी चीजों को देखते हुऐ अपने मंजिल के लिए बढ़ रहे थे जब हम सभी अपने मंजिल पर पहुंचे तो जो वहां का नजारा था वो हमारे सोच और अब तक अपनी जिन्दगी में जितना कुछ भी देखा था उन सब से अलग था। मैं बिलकुल ही शुन्य हो चूका था। जो मैंने उस घाट पर द्रश्य देखा वो अकल्पनीय था।

उस घाट का नज़ारा कुछ इस तरह था कि पुरे घाट पर सब ओर लाशें जल रही थी, वो शवों कि चिता से जलती हुई अग्नि और उनसे उठती हुई लपटे और धुआँ जो हमसे कहे रही थी कि “जीवन का असल सच यही है”। जहाँ मैं इस दृश्य को देखकर शुन्य हो चूका था वही एक ओर मैंने देखा उन्ही शवों के पास बैठकर कर लोग ध्यान कर रहे थे। मैं अचंभित था कि क्या कोई ऐसी जगह बैठकर ध्यान भी कर सकता है?

जहाँ मै ये सब चीजों के बारे में सोच ही रहा था कि मेरी नजर उन छोटे बच्चों पर पड़ी जो उन शवों की अंतिम क्रिया का काम करने में मदद कर रहे थे। जो शवों से कपडा हटा रहे थे। मैं बिलकुल ही स्तब्ध (स्थिर) था की ये असल में हो क्या रहा है! क्या सच में उन सभी बच्चो के मन में मौत का भये होगा? जो रोज मौत को इतने पास से देखते हैं उनकी मानसिक स्थिति कैसी होगी? वो असल में मौत के बारे में क्या सोचते होंगे? इन सभी बातों में और वहां के वातावरण में, मैं खो गया।

कुछ देर बाद हम सभी उस घाट से वापस अपने होटल की ओर चल दिये। रास्ते में होटल की तरफ जाते वक्त मेरे दिमाग में बहुत से प्रश्न चल रहे थे और उन प्रश्नो का हम में से किसी के पास कोई जवाब नहीं था, और इन सभी बातों को मन में लिए हम आ पहुंचे अपने रूम पर।

हमारे सफर का दूसरा दिन

हम सभी अगली सुबह उठे और अपने होटल को अलविदा कहा और हम चल दिये अपने नए रूम की तरफ यानी डारमेट्री रूम की ओर, जो की हमारे सर ने ऑनलाइन पहले ही बुक कर रखा था। हम सभी अपने रूम पहुंचे और वहां checkin करने में कुछ समय था तो मैं और मेरे दो दोस्त उस जगह से कुछ दूर घूमने के लिए चल दिये हमारी डोरमेट्री से कुछ दूर पर हम लोग “संत रविदास स्मारक” पहुंचे जहाँ हमलोग कुछ टाइम तक घूमे और वहां इडली खायी और वापस अपने रूम की ओर आ गए। अपने रूम में पहुंचने के बाद हम सभी लोगो ने स्नान किया और फिर निकल पड़े बनारस भ्रमण पर।

हमारा काल भैरव मंदिर का अनुभव

हम लोगो ने दो ऑटो बुक किये और हम सबसे पहले चल दिये काल भैरव मंदिर के लिए। हम सभी ने शिव शंभू का नाम लिया और बनारस कि गलियों से होते हुए हम सभी पहुंचे काल भैरव मंदिर। जहाँ का माहौल कुछ और ही था। काल भैरव मंदिर में लोगो द्वारा तेल और मदिरा चढ़ाया जा रहा था। जब मैंने मंदिर में प्रवेश किया वहां लोगो के द्वारा बोले जाने वाले जयकारे की गूंज मेरे कानो में पड़ रही थी, जो मेरी आत्मा को झकझोर रही थी। जो मेरे द्वारा की गयी सारी गलतियों को मेरे आँखों के सामने ला रही थी, जब तक मैं मंदिर में रहा तब तक बस अपनी गलतियों को अपने सामने आते देख रहा था। बस मैंने इन सभी चीजों के लिए माफी मांगी और वापस से हम सभी मंदिर में प्रसाद और दर्शन करके अपने नयी मंजिल की ओर चल दिये।

“काल भैरव मंदिर” (काशी के क्षेत्रपाल )

बनारस भगवान शिव की नगरी है इसलिए भगवान् शिव ने अपने ही अंश भगवान काल भैरव को यहाँ का क्षेत्रपाल नियुक्त किया है। इन्हे काशी के लोगो को दंड देने का अधिकार है। यहाँ काल भैरव को प्रसाद के रूप में मदिरा चढ़ाई जाती है। कहते हैं कि माता सती के पिंड की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने काल भैरव को बनारस का कोतवाल नियुक्त किया। मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि माता सती के शरीर का एक हिस्सा बनारस में पिंड रूप में गिर गया था, जो माता सती के 51 शक्ति पीठो में से एक है। जिस जगह पर शरीर का हिस्सा गिरा वह स्थान विशालाक्षी मंदिर के नाम से जाना जाता हैं।

काल भैरव मंदिर से निकलने के बाद हम सभी ने बनारस कि फेमस कचौड़ी खायी, जिसका स्वाद मुझे आज भी याद है। कचौड़ी खाने के बाद हम सभी चल दिये “सारनाथ” की ओर, जो कि “गौतम बुद्ध जी के लिए जाना जाता है।

सारनाथ

जो कि बोद्धो के लिए सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र है, क्यूंकि यही स्थान है जहा गौतम बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति के बाद प्रथम प्रवचन दिया था। सारनाथ मुख्य बनारस से लगभग 10 किलोमीटर की दुरी पर है, तो आप जब भी बनारस आये तो इस जगह जरूर जाये। जहा आप हिरन पार्क में बौद्ध स्तूपों, संग्रहालयों, प्राचीन मंदिरो को देख सकते हैं। वहां आप लोग चौखंडी स्तूप, अशोक स्तंभ, थाई मंदिर, तिब्बती मंदिर, और पुरातत्व संग्राहलयों को देख सकते हैं। जहाँ पुरातत्व संग्रहालय का टिकट 5 रुपये है और चौखंडी स्तूप का टिकट 20 रुपये का है। कहते हैं चौखंडी स्तूप में गौतम बुद्ध के दाँत को पैक कर दवाया गया है।

सारनाथ में मंदिर और उनका दिल को मोह लेने वाला नज़ारा

हम सभी सारनाथ में घूमे वहां के मंदिरो की डिज़ाइन देखी जो बहुत ही आकर्षक थी। मंदिर की बनावट थाईलैंड, श्रीलंका, नेपाल के मंदिरो से मैच करती है। वहां हमने हाथ से बनाई जा रही साड़ी, बैग, मुफलर, जो की रेशम द्वारा निर्मित हो रहे थे, उन्हें देखा की वो किस प्रकार बनाये जाते हैं। उनकी कारीगरी इतनी सुन्दर और बारीक थी जो हमे पसंद आ रही थी। मैने वहां से अपने दोस्तों के लिए बैग घर के लिए कुछ सामान खरीदा और वहां की खूबसूरती को आँखों के साथ साथ अपने मोबाइल में कैद किया और चल दिए अपने नयी मंजिल की ओर।

जो थी वहां से लगभग 12 किलोमीटर की दुरी पर हम सभी रास्ते में गाने सुनते हुऐ और हसी मजाक करते हुए आगे बड़ रहे थे। वहां रास्तो में बने मंदिर तो कही पुल पर बानी कलाकृति बहुत मनमोहक लग रही थी। इन सभी चीजों को देखते हुए हम पहुंचे श्री दुर्गा मंदिर –

दुर्गा मंदिर

लाल पत्थरो से बना ये मंदिर बनारस कैंट एरिया से लगभग 5 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। इस मंदिर का उल्लेख काशीखंड में भी मिलता है। इस मंदिर के अंदर भैरोनाथ, माता लक्ष्मी, सरस्वती जी ओर काली माँ का मंदिर भी बना हुआ है। इस मंदिर में हवन कुंड बने हुए हैं जहां प्रतिदिन हवन होता है तथा इस मंदिर में मुंडन भी होते हैं।

दुर्गा माता के मंदिर में दर्शन और वहां का नास्ता

हम सभी दुर्गा मंदिर पहुंचे और हम सभी ने माता रानी के दर्शन किये और वहां के पुरे प्रांगण में घूमे जहाँ दुर्गा माता के अलावा और भी मंदिर थे। वहां सभी मंदिर में दर्शन करने के पश्चात मैंने वहां से एक माता की प्रतिमा ली ओर कुछ कड़े लिए और फिर मैं और मेरे दोस्तों ने कुछ नास्ता किया जो था गोलगप्पे, डोसा, बर्गर, जो की स्वाद में बहुत ही खराब लगे। हमे घूमते घूमते शाम हो चुकी थी तो इसके बाद हमने सिर्फ संकट मोचन मंदिर जाने के लिए प्रस्थान किया। हम सभी मुख्य रोड से जा रहे थे और शाम का समय हो चूका था और फिर उन गलियों का नजारा वाकई बहुत प्यारा लग रहा था। जहाँ दुकानों पर लगी भीड़ लइटो से चमकती हुई सड़के और जगमगाता हुआ बनारस शहर, जो बहुत सुंदर लग रहा था।

संकट मोचन मंदिर

संकट मोचन मंदिर, दुर्गा मंदिर से लगभग 750 मीटर की दूरी पर है। आप जब भी जाये इस रास्ते को पैदल चल कर ही जाये जिससे आप उन गलियों के वातावरण का एहसास कर सके। इस मंदिर में शुद्ध घी के बेसन के लड्डू चढ़ाये जाते हैं। मंदिर के चारो ओर हरियाली है जो मंदिर को और सुन्दर बना देती है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले बाहर मोबाइल लॉकर में रखवा लिए जाते हैं, क्यूंकि वहां फोटो खींचना बिलकुल मना है।

मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति को इस प्रकार स्थापित किया गया है कि हनुमान जी सामने ही बने श्री राम जी के मंदिर में राम जी कि ओर देख रहे ठीक उसी प्रकार श्री राम हनुमान जी की ओर देख रहे हैं। वहां के लोकल लोगो का कहना है इस मंदिर को तुलसीदास ने बनवाया था। वही मंदिर के प्रागण में बने कुए को तुलसीदास जी के समय का ही बताया जाता है।

संकट मोचन मंदिर में अद्धभुत सा अहसास

दुर्गा मंदिर से हम सभी पहुंचे हनुमान मंदिर जो बहुत सुन्दर था। हनुमान मंदिर पहुंचते ही हमे याद आया कि आज मंगलवार है जो कि उस मंदिर का नजारा देख कर समझ आया। जहाँ मंदिर में भक्तों कि इतनी भीड़ थी कि पैर रखने का ठीक प्रकार से स्थान तक नहीं था। हम सभी ने मंदिर में दर्शन किये और वहां हो रहे कीर्तन में बैठ गए जहाँ एक ओर लोग हनुमान चालीसा पढ़ रहे थे, तो मैं भी बैठ गया हनुमान चालीसा पढ़ने, हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद हम सभी चल दिए अपने रूम कि ओर। रास्ते में हम सभी ने बनारस कि लस्सी पी तो मैंने वहां का मलईओ पिया जो कि वहां का फेमस था। वहां ये सब खाने के बाद हम सभी पहुंचे अपने रूम जहां जाते ही मैंने तो अपना बिस्तर पकड़ लिया क्यूंकि मैं तो बहुत थक गया था।

डारमेट्री की तरफ से एक सरप्राइज

अपने रूम पर पहुंच कर हमे एक सरप्राइज मिला कि आज हम सभी को रात का डिनर फ्री था। हम सभी फ्रेश हुए और चल दिए अपना भोजन करने के लिए। भोजन करने के बाद मैं और मेरे दोस्त रूम में आ गए जहाँ हमने आज के पुरे दिन को याद किया और एक दूसरे के द्वारा खींची गयी फोटो को अपने अपने मोबाइल में लिया और एक गहरी नींद में सो गए।

हमारे सफर का लास्ट दिन

सुबह मेरी आँख 4 बजे खुली और मैं अपने एक दोस्त और सर के साथ निकल गया अस्सी घाट पर स्नान करने। अस्सी घाट का द्रश्य कुछ ऐसा था कि हलकी हलकी हवा चेहरे को छू रही थी, वहां हो रही आरती कि ध्वनि हमे एक आनंद का एहसास दे रही थी। अस्सी घाट पर जहाँ एक ओर हलकी हवा वही उगते हुऐ सूर्य कि किरणे, गंगा की लहरे जो मनो एक दूसरे के साथ खेल रही हो। अस्सी घाट पर स्नान करने के बाद हम गलियों कि सुबह को देखते हुऐ पहुंचे बाबा विश्वनाथ के द्वार पर। बाहर से मिल रहे दूध के प्रसाद को लिया और हम बड़ चले मंदिर कि ओर। मंदिर में सुबह सुबह भक्तो कि ज्यादा भीड़ न होने के कारण हमने दो बार बाबा विश्वनाथ के दर्शन किये और हम चल दिए काशीनाथ कॉरिडोर देखने के लिए।

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का दृश्य

हम मंदिर से निकल कर मणिकर्णिका घाट को जाने वाली गली से होते हुऐ मणिकर्णिका घाट पर पहुंचकर कॉरिडोर पहुंचे। जहाँ कॉरिडोर में एक तरफ भारत माता कि प्रतिमा है तो दूसरी ओर श्री अहिल्ल्याबाई होल्कर जी कि प्रतिमा है। कॉरिडोर घूमने के पश्चात हम घाटों से होते हुऐ अपने रूम कि तरफ बड़ चले लेकिन घाटों कि सुंदरता और गंगा जी के जल को देख कर हम तीनो लोगो के मन में दुबारा से स्नान करने की इच्छा हुई, फिर क्या था हम तीनो ने दुबारा से स्नान करने के लिए गंगा जी में छलांग लगा दी कुछ देर स्नान करने के बाद हम तीनो अपने रूम आ गए जहाँ मेरे बाकि दोस्त उठ चुके थे।

आज शाम की ट्रेन से हम सभी अपने घर जाने वाले थे तो हमने तय किया की आज हम लोग बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी को देखने जायेंगे, लेकिन हमारे सर को कुछ और काम था तो हमने तय किया की हम चारो दोस्त ही यूनिवर्सिटी को देखने जायेंगे।

बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी

बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी “BHU ” की सन 1916 को महामना मदन मोहन मालवीय जी ने स्थापना की थी। इस विश्वविद्यालय के दो परिसर हैं। मुख्य परिसर (1300 एकड़ ) वाराणसी में स्थित हैं, जिसकी भूमि काशी नरेश ने दान में दी थी। मुख्य परिसर में 6 संस्थान, 14 संकाय,140 विभाग हैं। विश्वविद्यालय का दूसरा परिसर मिर्ज़ापुर जनपद में बरकछा नामक जगह (2700 एकड़ ) पर स्थित हैं। 75 छात्रावासो के साथ यह एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है। जिसमे 30,000 से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं, जिनमे लगभग 34 देशों से आये छात्र शामिल हैं। मुख्य परिसर में भगवान विश्वनाथ का विशाल मंदिर भी बना हुआ है।

यूनिवर्सिटी का सफर

हम चारो दोस्त रेडी थे, BHU जाने के लिए तो हम चारो चल दिए जो की हमारे डोरमेट्री से लगभग 3 – 4 किलोमीटर दूर था। हम चारो हसी मजाक करते हुऐ अपनी मंजिल की ओर गलियों से होते हुऐ जा रहे थे और उन गलियों में बने छोटे और सुन्दर मंदिर जहाँ कलाकारों ने अपनी कलाकृति से अपने रंग बिखेर दिए थे। वही पास में रोड पर लगे एक दूकान पर हम लोगो ने इडली खायी जो बहुत टेस्टी थी।

गलियों से गुजरते हुऐ हम पहुंच गए बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, जो बहुत बड़ी थी हम उस के अंदर काफी टाइम तक घूमे हमने वहां की सुंदरता को अपने मोबाइल में कैद किया और वहां की बिल्डिंग को देखते हुऐ हम सभी वहां के कैंपस को देख रहे थे जो बहुत सुन्दर थी। वहां काफी टाइम रुकने के बाद हम लोगो ने वापस रुख किया अपने रूम की ओर। जहाँ हमारे सर हमारा इंतज़ार कर रहे थे। रूम पर पहुंच कर हमने अपना सामान लिया और हम चल दिए अपनी स्टेशन की ओर जहाँ हमारी ट्रेन हमारा इंतजार कर रही थी, लेकिन जब तक ट्रिप में कुछ खतरनाक टुईस्ट न हो तो वो ट्रिप ही किस बात की और कुछ ऐसा ही होने वाला था हमारे साथ।

ट्रेन का छूटना

बनारस में काफी स्टेशन हैं जो कभी कभी लोगो को धोखा दे देते हैं उनके मिलते झूलते नाम की वजह से। जब हम लोग अपने डोरमेट्री से स्टेशन की ओर निकले और ट्रेन के टाइम से लगभग 20 मिनट पहले पहुंच गए। हम अपने स्टेशन पर अपनी ट्रेन के बारे मे पता करने लगे पर वहां हमे अपनी ट्रेन के बारे में कुछ पता नहीं लग रहा था। हम स्टेशन पर इधर उधर अपनी ट्रेन नंबर को देख रहे थे पर वो दिख नहीं रहा था, और कुछ ही टाइम में हम समझ चुके थे की हम एक गलत स्टेशन पर आ गए हैं।

हमारी ट्रेन को स्टेशन से छूटने में सिर्फ 10 मिनट बचे थे, हम लोग जल्दी से स्टेशन से बाहर आये वहां से ऑटो बुक किया और जल्दी से जल्दी बस हम अपने स्टेशन पहुंचना चाहते थे कि किसी तरह हम जल्दी से अपने स्टेशन पर पहुंच जाये हम सब बस यही प्रार्थना कर रहे थे। हम लोग स्टेशन पर पहुंचे जहाँ हम भाग रहे थे और अपने आँखों के सामने अपनी ट्रेन को जाते हुऐ देख रहे थे। हमने अपना पूरा एफर्ट लगाया पर हम अपनी ट्रेन को पकड़ नहीं सके।

जहाँ मेरे दोस्त ट्रेन छूटने पर सर पर और उनके फ्रेंड पर गुस्सा थे, वही मेरे लिए बनारस में कुछ और टाइम था जो मैं बिता सकता था। जहाँ मेरा एक दोस्त कुछ अलग बादलो की तरह बरस रहा था तो एक अपने आँखों से, वही मैं था जो अपने बैग में रखे नास्ते को निकाल कर खा रहा था। मुझे इस बात से ज्यादा फर्क नहीं था और न ही कुछ इतना बुरा लग रहा था की हमारी ट्रेन छूट गयी है।

बस से प्रयागराज तक और घर तक का सफर

हम सभी स्टेशन से बाहर निकले और मेरे तीनो दोस्त जहाँ दो को मैं समझा रहा था, वही एक हमारे सर को समझा रहा था कि सारी चीजे आपको हैंडल करनी चाहिए थी न की आपके दोस्तों को, जो ठीक भी था। स्टेशन के बाहर आकर हमने दुबारा दो ऑटो बुक किये और निकल पड़े बस स्टैंड की ओर, बस स्टैंड जाते वक़्त जिस ऑटो में हम थे उस ऑटो में गाने बज रहे थे और हम चारो उन गानो की धुन में भूल गए की हमारे साथ कुछ हुआ भी था और हमारी कोई ट्रैन छूटी भी थी।

बस स्टैंड पर पहुंचकर हम सभी प्रयागराज के लिए बस से निकल पड़े। जहाँ बस का सफर भी हमारे लिए खास था क्यूंकि मेरे लिए दोस्तों के साथ बस का सफर भी पहली दफा था। हमे प्रयागराज में स्टेशन पर उतरना था लेकिन हम सभी जा पहुंचे प्रयागराज बस स्टैंड पर, हमे ये समझ ही नहीं आ रहा था की इस सफर में हमारे साथ हो क्या रहा था। हम सभी ने बस स्टैंड से ऑटो किया और चल दिए प्रयागराज स्टेशन की ओर, जहाँ हमारी ट्रेन रात 1 बजे की थी।

हम सभी लोग काफी टाइम तक स्टेशन पर घूमे और फिर वहां से अपनी ट्रेन की ओर चल दिए,ट्रेन पर अपनी शीट पर लेटते ही हम सभी लोग किस वक़्त सो गये पता ही नहीं चला। जहाँ मेरी आंख सुबह लखनऊ स्टेशन पर खुली जो की मेरे एक दोस्त के पिता जी उससे मिलने आये थे, और वहां से हमारा सफर हमारे घर की मंज़िल पर आकर रुका। कुछ ऐसी थी हमारी बनारस की यात्रा।

पुरे सफर का ओवरब्यू

आप एक सफर में क्या चाहते हैं, थोड़ा एडवेंचर थोड़ा सस्पेंस तो थोड़ा थ्रिलर और कुछ ऐसी बातें जिन्हे याद कर हमेशा चहरे पर मुश्कान रहे, बस ऐसी ही कुछ हमारी यात्रा थी। जिसमे शुरू में हमारे दोस्त के साथ फ्रॉड होना, हमारी ट्रेन का कैंसल होना, तो बनारस में वो मणिकर्णिका घाट की वो रात जहाँ कुछ ऐसा एहसास होना जो हमने पहले कभी किया ही नहीं था। तो सफर के लास्ट में ट्रेन छूटना और फिर बस से सफर करना। हमारी इस यात्रा में वो सब कुछ था जो हमारे लिए बहुत कुछ सीखा रहा था, और मैंने इस सफर से बहुत कुछ सीखा जो मुझे हमेशा याद रहेगा। अपनी ऐसी ही एक और यात्रा की स्टोरी के साथ मिलेंगे नेक्स्ट ब्लॉग में।

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अंत तक हमारे साथ जुड़े रहने के लिए आपका धन्यवाद्! मुझे आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आपको थोड़ा बहुत सिखने और कुछ जानकारी मिली होगी। मेरी आपसे गुज़ारिश हैं कि आप अपना फीडबैक कमेंट के माध्यम से जरूर साझा करें।

17 thoughts on “वाराणसी के बारे में पूरी जानकारी एक सच्ची वाराणसी यात्रा के साथ”

  1. This story was very useful for me regarding the knowledge about Bnaras and its famous
    temples 🙏.
    Through this story I got a lot of information about Bnaras. 🌸🙂

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