आज जब भी हम किसी शिव मंदिर की बात करते हैं तो उन मंदिरो से जुड़ी हुयी पौराणिक कहानी हमारे मन में चलने लगती हैं। भगवान शिव के कुछ ऐसे मंदिर बने हुए हैं जो की पहाड़ो के बीच में हैं और कुछ पहाड़ो की चोटियों पर भी जहाँ तक पहुंचने के लिए भक्तो को पहाड़ो पर पैदल यात्रा करनी होती है, तब कही जाकर भगवान शिव के दर्शन होते हैं। अगर मुख्य रूप से देखा जाए तो भगवान शिव के सबसे ज्यादा पौराणिक मंदिर उत्तराखंड में स्थित हैं।
आज हम एक ऐसे ही मंदिर के बारे में जानेगे, जहाँ तक पहुंचना काफी आसान है। जी हां हम बात करने जा रहें हैं, गुप्तकाशी के “काशी विश्वनाथ मंदिर” की। इस मंदिर से सम्बंधित एक बहुत ही सुन्दर कहानी बताई जाती है जिसके बारे में हम जानेगे। यह मंदिर उत्तराखंड के गुप्तकाशी शहर में स्थित है। यदि गुप्तकाशी की बात की जाये तो ये शहर भी बहुत ही रोचक है, क्यूंकि इस शहर के नाम के पड़ने की भी एक कहानी है। जिसे हम अपने इस ब्लॉग में जानेगे। यहाँ तक आप कैसे पहुंच सकते हैं? कहाँ रुके? इन सभी जानकारियों को मैं इस ब्लॉग के माध्यम से आपको देने की कोशिश करूँगा।
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ये कौन सा काशी विश्वनाथ मंदिर है?
जब भी काशी विश्वनाथ मंदिर की बात आती है तब हमारे मन में सीधे बनारस के घाट और यहाँ के काशी विश्वनाथ मंदिर की इमेज मन में चलने लगती है, लेकिन बनारस के अलावा भी भारत में दो और काशी विश्वनाथ नाम से मंदिर हैं। पहला उत्तरकाशी का काशी विश्वनाथ मंदिर जिसे “प्रकट काशी” भी कहते हैं और दूसरा है गुप्तकाशी का काशी विश्वनाथ मंदिर जिसके बारे में हम इस ब्लॉग में बात करने जा रहे हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर कहाँ स्थित है?
हम जिस काशी विश्वनाथ मंदिर की बात कर रहे हैं वो गुप्तकाशी में है। जितना महत्व बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर का है उतना ही इसका भी। ये मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के गुप्तकाशी शहर में है, जो गुप्तकाशी के मुख्य सड़क से लगभग 1 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। जिसे आप पैदल ही पूरा कर सकते हैं।
क्या है काशी विश्वनाथ मंदिर की पांडवो से जुड़ी पौराणिक कहानी?
भारत देश में जितने भी प्राचीन मंदिर हैं, उनकी कुछ न कुछ बहुत ही पौराणिक और प्राचीन कहानी है। ऐसे ही इस मंदिर की भी बहुत ही रोचक और प्यारी कहानी है, जिसमे एक कहानी महाभारत काल से तो दूसरी माता पार्वती से जुड़ी हुयी है। इन सभी कहानियो में कितनी सच्चाई है उसके बारे में हर किसी की अपनी एक आस्था है। जो भी हिन्दू धर्म को मानने वाले हैं, उन सब लोगो की इन सभी बातो में बहुत ही गहरी आस्था है।
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की जब पांडवो ने महाभारत के युद्ध में अपने भाइयों, ब्राह्मणो और गुरु जनो का वध कर दिया तो वे सभी ब्राह्मण हत्या और गोत्र हत्या के दोषी बन गए थे। इन सभी दोषो से मुक्त होने के लिए वे सभी नारद मुनि के पास जाते हैं। नारद मुनि उनसे महर्षि व्यास के पास जाने के लिए कहते हैं। सभी पांडव जब व्यास जी के पास पहुंचते हैं तब व्यास जी पांडवो से भगवान शिव की आराधना करने के लिए कहते हैं और भगवान शिव से मिलकर अपने पापो के लिए क्षमा मांगने के लिए कहते हैं।
सभी पांडव भगवान शिव से मिलने के लिए काशी के लिए चल देते हैं, लेकिन भगवान शिव जो पांडवो द्वारा किये इस कार्य से उनसे नाराज़ थे और उनसे मिलना नहीं चाहते थे, इसलिए भगवान शिव काशी से निकलकर इसी जगह छिप जाते हैं। जब भगवान शिव को यह पता लगता है की पांडव उन्हें ढूंढते हुए इसी जगह आ रहे हैं तो वो एक नंदी का रूप धारण करके यहाँ से अंतर्ध्यान हो जाते हैं। इसी वजह से इस जगह का नाम गुप्तकाशी पड़ा।
सभी पांडव भगवान को ढूढ़ते हुए एक ऐसी जगह पहुंचते हैं जहाँ उन्हें बहुत से बैल दिखाई देते हैं और उन्ही बैलो में भगवान शिव बैल का रूप धारण करके छिप जाते हैं। पांडवो में से भीम अपने दोनों पैरो को दो पहाड़ो पर रख कर बाकी भाइयो से इन बैलो को उनके दोनों पैरो के बीच से निकालने के लिए कहता है, बाकि पांडव इन बैलो को भीम के पैरो के बीच से निकालने लगते हैं सभी बैल एक एक करके पैरो के बीच से गुजरने लगते हैं लेकिन एक बैल निकलने से मना कर देता है और कुछ उग्र व्यव्हार करने लगता है।
जब पांडव उस बैल को देखते हैं और उसके तरफ आगे बढ़ने लगते हैं तो बैल देखते ही देखते धरती में समाने लगता है। पांडव समझ जाते हैं की यही भगवान शिव हैं वो बैल की पूंछ को पकड़कर खींचने लगते हैं लेकिन बैल धरती में समा जाता है। भगवान शिव उनकी भक्ति से प्रसन्न हो जाते हैं और पंच केदार के रूप में दर्शन देते हैं। जिसमें बैल की पीठ केदानाथ में, भुजाये तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यश्वेरनाथ में और जटा कल्पेश्वरनाथ में प्रकट हुयी। इन सभी जगहों पर पांडवो ने मंदिरो का निर्माण कराया और भगवान शिव की पूजा की और अपने दोषो से मुक्ति पायी।
क्या है माता पार्वती से जुड़ी इस मंदिर की कहानी?
एक कहानी जो महाभारत काल से जुड़ी हुयी है, वही एक दूसरी कहानी है जो माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह से जुड़ी हुयी है। भगवान के विवाह से सम्बंधित कहानी के बारे में कहा जाता है की यह वही मंदिर है जहाँ पर भगवान शिव ने माता पार्वती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था। इस मंदिर का महत्व इसलिए भी बहुत है क्यूंकि माता पार्वती ने भगवान शिव को वर के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। सभी देवताओ के समझाने पर भगवान शिव ने माता पार्वती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था।
काशी विश्वनाथ मंदिर के ठीक बराबर में ही माता पार्वती के आधे रूप और शिव के आधे रूप को समर्पित अर्धनारेश्वरी मंदिर भी स्थापित है। जहाँ आप भगवान के अर्धनारेश्वर रूप के दर्शन कर सकते हैं। भगवान शिव ने विवाह का प्रस्ताव यहीं रखा था और माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगीनारायण गांव में त्रियुगीनारायण मंदिर में हुआ था। विवाह में भगवान विष्णु ने माता के भाई के रूप में सभी कार्य किये थे और ब्रह्मा जी ने पंडित जी की भूमिका निभाई थी।
मंदिर के चारो ओर का दृश्य
काशी विश्वनाथ मंदिर की संरचना केदारनाथ मंदिर से मिलती झूलती ही है। मंदिर की संरचना और इसकी बनावट अपनी पुरानी और सुन्दर वास्तुकला को प्रदर्शित करती है। इस मंदिर के पास ही अर्धनारेश्वरी मंदिर है। जिसमे भगवान, शिव और शक्ति दोनों रूप में विराजमान हैं और इसी रूप में भगवान की पूजा की जाती है।
मंदिर के बाहर ठीक सामने ही एक मणिकर्णिका कुंड है, जिसमें दो धाराएं गिरती हैं जिनके बारे में कहा जाता है की एक धारा गंगा जी की है और दूसरी धारा यमुना जी की। इस कुंड के बारे में कहा जाता है की ये कुंड न तो कभी भरता है और न ही यह कुंड कभी भी सूखता है।
मंदिर के आसपास होटल्स & धर्मशाला
आपको यहाँ पर रुकने के लिए बहुत ही अच्छी और सस्ती होटल्स या धर्मशाला मिल जाएँगी जोकि आपके बजट में होंगी। जब भी आप यहाँ आये तो इस चीज का ख्याल रखे की हमेशा रूम वहां पर ले जो मार्केट से और मंदिर से थोड़े दुरी पर और कुछ अंदर गलियों में हो इससे आपको कम बजट में एक अच्छी धर्मशाला मिल जाएगी। अगर आप केदारनाथ की ट्रिप पर हैं तब भी इस जगह एक रात जरूर रुके और यहाँ के मंदिर में शाम की आरती का आनंद ले उसके बाद अगले दिन से केदारनाथ की यात्रा को पुनः प्रारम्भ करे।
यहाँ का खाना?
गुप्तकाशी में आपको खाने से सम्बंधित बहुत से होटल्स और ढाबे मिल जायेंगे जिनमे आपको लगभग हर तरह का खाना मिल जायेगा। गुप्तकाशी के मुख्य मार्केट में सबसे ज्यादा आपको खाने के होटल्स मिलेंगे जहाँ आप खाना खा सकते हैं। यहाँ आपको टिपिकल पहाड़ी खाना भी मिल जायेगा जिसका आप आनंद ले सकते हैं। यहाँ ज्यादातर आने वाले लोग पराठे मुख्यता से खाते हैं। यहाँ आपको हर तरह के पराठे की वैराइटी मिल जाएगी।
मंदिर के आसपास की जगह जहाँ आप घूम सकते हैं?
आप काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने के साथ साथ कुछ और भी जगह हैं जहाँ आप घूम सकते हैं जो इस मंदिर के आसपास हैं। तो आइये जानते हैं उन जगहों के बारे में जहाँ आप जा सकते हैं।
संगम
आप मंदिर में दर्शन करने के पश्चात गुप्तकाशी के संगम पर भी घूमने जा सकते हैं। जहाँ अलकनंदा नदी और मंदाकनी नदी का बहुत ही सुन्दर संगम होता है। यहाँ संगम पर रात का नज़ारा देखने लायक होता है। जहाँ हल्की ठंडी चलती हुयी हवा और मंदिर में शाम में होती हुयी आरती और घंटियों की आवाज़ जो दिल को सुकून और शांति को प्रदान करती है।
त्रियुगीनारायण मंदिर
काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने के पश्चात आप मंदिर से 37 किलोमीटर की दुरी पर स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर में भी दर्शन के लिए जा सकते हैं। इसकी भी एक अलग रोचक कहानी है जिसके बारे में हम अपने आगे आने वाले ब्लॉग में बात करेंगे। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की यह वही मंदिर है जहाँ पर माता पार्वती और शिव जी का विवाह सम्पन हुआ था।
इस मंदिर का नाम त्रियुगीनारायण इसलिए पड़ा क्यूंकि इस मंदिर के अंदर जलते हुए हवन कुंड के बारे में कहा जाता है इस कुंड में तीन युगो से अग्नि जल रही है जो आज तक शांत नहीं हुयी है और मंदिर विष्णु भगवान को समर्पित है और उन्हें नारायण नाम से भी पुकारा जाता है। अर्थात त्रियुगी मतलब – तीन युग और नारायण मतलब- भगवान विष्णु, इस तरह से इस मंदिर का नाम त्रियुगीनारायण पड़ा।
तुंगनाथ
यहां से तुंगनाथ के लिए भी रास्ता है तो आप गुप्तकाशी में घूमकर तुंगनाथ में भगवान शिव की भुजाओ के दर्शन कर सकते हैं। तुंगनाथ से सम्बंधित जितनी भी जानकारी है । उसके बारे में हम अपने पिछले ब्लॉग तुंगनाथ में बात कर चुके हैं अगर आपने वो न पढ़ा हो तो एक बार उसे भी जरूर पढ़े।
उखीमठ
उखीमठ का भी बहुत महत्व है क्यूंकि जब सर्दियों में अधिक बर्फवारी होने के कारण केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं तो वहां से भगवान शिव की मूर्ति को उखीमठ के ओम्कारेश्वर मंदिर में स्थापित कर दी जाती है। केदारनाथ के बाद सर्दियों में आने वाले श्रद्धालु इसी जगह भगवान शिव के दर्शन करते हैं। यह गुप्तकाशी से महज 12 किलोमीटर की दुरी पर है। आप गुप्तकाशी से वहां की लोकल गाड़ी द्वारा उखीमठ आसानी से पहुंच सकते हैं।
गौरीकुंड
आप यहाँ से गौरी कुंड भी जा सकते हैं, जो एक तरह से केदारनाथ का बेस कैंप है। गौरीकुंड के भी एक अलग ही मान्यता है जिसके बारे में हम अपने पिछले ब्लॉग केदारनाथ में बात कर चुके हैं। गौरी कुंड से सम्ब्नधित भी एक कहानी है। यह माना जाता है की गौरी कुंड ही वह जगह है जहाँ पर माता पार्वती ने शिव जी को पाने के लिए तपस्या की थी।
गौरी कुंड माता पार्वती को ही समर्पित है और यहां माता को समर्पित एक मंदिर भी है। गौरी कुंड में स्नान करने के बाद और माता गौरी के दर्शन करने के बाद ही केदारनाथ की पैदल यात्रा शुरू की जाती है। केदारनाथ की यह पैदल यात्रा लगभग 21 किलोमीटर की है।
केदारनाथ
गुप्तकाशी से जाने के लिए जो प्रमुख तीर्थस्थल है वो है केदारनाथ। केदारनाथ में भगवान शिव की पंच केदार रूप में पूजा की जाती है। केदारनाथ के बारे में सारी जानकारी हम अपने पिछले ब्लॉग में दे चुके हैं, तो आप उसके बारे में पड़ सकते हैं। केदारनाथ में भगवान शिव के बैल रुपी पीठ के दर्शन किये जाते हैं। केदारनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको 21 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी पड़ती है।
आप काशी विश्वनाथ मंदिर कैसे पहुंच सकते हैं?
आप काशी विश्वनाथ मंदिर जिस भी तरह से आना चाहते हैं वो सभी विकल्प आपके पास मौजूद हैं। देहरादून से काशी विश्वनाथ मंदिर तक की दुरी लगभग 217 किलोमीटर है तथा ऋषिकेश से दुरी 180 किलोमीटर की है। तो आइये जानते हैं की किस तरह से आप यहाँ तक पहुंच सकते हैं।
फ्लाइट द्वारा कैसे पहुंचे?
अगर आप फ्लाइट द्वारा यहाँ तक पहुंचना चाहते हैं तो यहाँ से सबसे निकट एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो देहरादून में स्थित है। यहाँ से आपको गुप्तकाशी के लिए टैक्सी मिल जाएँगी। देहरादून से गुप्तकाशी तक की दुरी को सड़कमार्ग द्वारा ही तय करना होगा। देहरादून के लिए फ्लाइट देश के बाकि बड़े शहरों से आराम से मिल जाएँगी। देहरादून से गुप्तकाशी का जो सफर है वो बहुत ही अच्छा होता है आपको पहाड़ो के रास्तो से सुन्दर वादियां देखने को मिलती हैं।
ट्रेन द्वारा कैसे पहुंचे? (How to Reach by Train?)
अगर आप इस सफर को ट्रेन द्वारा तय करना चाहते हैं तो आप ट्रेन द्वारा भी तय कर सकते हैं। गुप्तकाशी से पास के जो रेलवे स्टेशन हैं। उनमे एक तो ऋषिकेश रेलवे स्टेशन आता है और एक देहरादून रेलवे स्टेशन आता है। आपको दिल्ली से देहरादून और ऋषिकेश के लिए ट्रेने मिल जाएँगी। अगर आप इस सफर को ग्रुप में कर रहे हैं तो दिल्ली से देहरदून तक के सफर को ट्रेन द्वारा करे और फिर बाकि के सफर को बस या टैक्सी द्वारा।
बस द्वारा कैसे पहुंचे?
जब आप कही भी घूमने का प्लान करते हैं तो उसमे हमारी सबसे ज्यादा सहायता बस करती है। मुझे सबसे ज्यादा बस का सफर अच्छा लगता है खासकर तब जब वो सफर कही पहाड़ो पर जाने का हो। आपको दिल्ली से सरकारी और प्राइवेट वॉल्वो बस देहरादून और ऋषिकेश के लिए मिल जाएँगी। दिल्ली से देहरादून की दुरी 249 किलोमीटर की है जिसे आप 5 से 6 घंटे में पूरा कर लेंगे। वही दिल्ली से ऋषिकेश की दुरी 262 किलोमीटर की है जिसे आप आराम से 5 से 6 घंटे में पूरा कर लेंगे।
ध्यान रखने योग्य बातें
- आप अगर सर्दियों में काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के लिए जा रहे हैं तो आप केदारनाथ में दर्शन के लिए नहीं जा सकते हैं लेकिन आप गौरी कुंड तक जा सकते हैं।
- सर्दियों में केदारनाथ के कपाट बंद होने के बाद भगवान शिव की पंच मुखी मूर्ति को उखीमठ के ओम्कारेश्वर मंदिर में स्थापित किया जाता है तो आप काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद उखीमठ में बाबा केदार के दर्शन कर सकते हैं।
- इस सफर में आप अपने साथ गर्म कपड़े, कुछ नियमित दवाई जरूर रखे।
- आप जब भी ऐसे किसी सफर पर जाए तो आप अपनी सोशल मीडिया की दुनिया से दूर रहकर बस इस जगह और यहां के वातावरण को महसूस करे।
Thank you 🙂 for sharing this information 🌸