पृथ्वी पर जब जब धर्म की हानि होती है और पाप, पुण्य से ज्यादा बढ़ जाता है तब तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में धरती पर अवतार लेते हैं। हमारे पौराणिक ग्रंथो में लिखा हुआ की जब भी भगवान विष्णु धरती पर अवतार लेते हैं तब तब भगवान विष्णु के पराम् सेवक शेषनाग भी धरती पर भगवान विष्णु के साथ अवतार लेते हैं। ऐसे ही जब भगवान विष्णु ने द्वापर युग में श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिए तब शेषनाग ने भी श्री कृष्ण के बड़े भाई के रूप में धरती पर अवतार लिया, जिन्हे हम बलराम जी के नाम से जानते हैं। श्री कृष्ण उन्हें दाऊ कहके बुलाते थे।
इस ब्लॉग में उत्तराखंड में स्थित एकमात्र बलराम जी के मंदिर के बारे में जानेगे। जिसे “भद्राज मंदिर” के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर उत्तराखंड की एक पहाड़ी पर हरे भरे जंगलो और निरंतर बहती हुयी नदियों के बीच एक आध्यात्मिक और पूर्ण शांति का केंद्र है। हलचल भरे पर्यटकों केन्द्रो से दूर यह मंदिर उन यात्रियों के लिए बहुत ख़ास है जो शांति और स्वच्छ वातावरण को महसूस और उसे खुल कर जीना चाहते हैं। तो आईये जानते हैं भद्रज मंदिर के बारे में इससे सम्बंधित सभी जानकारियों को ….
विषय सूची
भद्राज मंदिर कहां है? (Where is Bhadraj Temple?)
यह मंदिर भारत के देवभूमि कहे जाने वाले राज्य उत्तराखंड में है। उत्तराखंड में पहाड़ो के रानी कहे जाने वाले शहर मसूरी से 15 किलोमीटर की दूरी पर दुधली भद्राज पहाड़ी पर भद्राज मंदिर 7500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर देहरादून से 44 किलोमीटर, हरिद्वार से 98 किलोमीटर और ऋषिकेश से 84 किलोमीटर दूर उत्तराखंड के सुन्दर पहाड़ी पर हरे भरे जंगलो के बीच में स्थित है।
कुछ बेसिक जानकारी (Some Basic Information)
जगह (Location) | भद्राज मंदिर (Bhadraj Mandir) |
पता (Address) | मसूरी से 15 किलोमीटर दूर, दुधली भद्राज पहाड़ी पर (On Dudhali Bhadraj Hill, 15 Km away from Mussoorie) |
निकट रेलवे स्टेशन (Nearest Railway Station) | देहरादून रेलवे स्टेशन (Dehradun Railway Station) |
निकट एयरपोर्ट (Nearest Airport) | जॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून (Jolly Grant Airport Dehradun) |
बेस्ट टाइम (Best TIme) | अगस्त से मई (August to May) |
ट्रेक बेस कैंप (Trek Base Camp) | माटोगी गांव (Matogi Village) |
ट्रेक डिस्टेंस (Trek Distance) | 5 से 6 किलोमीटर (5 to 6 Kilometer) |
भद्राज मंदिर का इतिहास (History of The Bhadraj Temple?)
इस मंदिर का इतिहास बहुत ही पुराना और प्राचीन है। मंदिर के बारे में बताया जाता है की इसे द्वापर युग में बनवाया गया था, लेकिन मंदिर के निर्माण की सही जानकारी किसी को भी नहीं पता है। मंदिर के बारे में कुछ कहानी और किवदंतियां बताई जाती हैं, जो द्वापर युग में हुए महाभारत युद्ध की हैं। तो आईये जानते हैं मंदिर से सम्बंधित इतिहास के बारे में….
मंदिर से जुड़ी हुयी जो प्रमुख कहानी बताई जाती है वो यह है की महाभारत युद्ध के बाद भगवान बलराम ध्यान करने के लिए एक साधु का वेश धारण करके यहाँ से निकल रहे थे। तब इस जगह गायों और जानवरो में भयंकर बीमारी फैली हुयी थी। जब गांव वालो ने साधु वेश में बलराम जी को देखा तब उनसे जानवरों की बीमारी के उपाए के बारे में पूछा और उनसे गांव में रुकने के लिए निवेदन किया। बलराम जी ने जानवरो में फैली हुयी बीमारी का इलाज किया और कुछ समय इसी गांव में व्यतीत किया।
बलराम जी के जाने पर गांव वालो ने उनसे कुछ दिन और रुकने के लिए कहा। जिससे बलराम जी ने कहा की मैं यहाँ सदैव भद्राज रूप में विराजमान रहूँगा। यह मंदिर दुधली पहाड़ी पर स्थित है। इस पहाड़ी के आसपास के गांव वाले दूध का कुछ हिस्सा सदैव मंदिर में चढ़ाते हैं और यहाँ जानवरो को बेचा नहीं जाता है।
इस मंदिर से सम्बंधित जो दूसरी कहानी है उसके बारे में कहा जाता है की एक बार दुधली पहाड़ी पर एक राक्षस रहता था। राक्षस यहाँ रहने वालो लोगो को बहुत नुकसान पहुँचता और उनके गायो और मवेशियों को खा जाता था। सभी गांव वाले मिलकर भगवान बलराम के पास पहुंचते हैं और उनसे उनकी रक्षा करने की विनती करते हैं। बलराम जी ने पहाड़ी पर राक्षस के साथ युद्ध किया और अंत में उसका वध किया। बलराम जी कुछ समय तक गांव वालो के साथ रहे और जानवरो को चराया करते थे। गांव वालो ने पहाड़ी पर भगवान बलराम का मंदिर बनवाया और उनकी पूजा करना शुरू कर दिया।
मंदिर की मूर्ति खंडित क्यों है? (Why is The Temple Statue Broken?)
मंदिर के बारे में एक बात और बताई जाती है की जब भारत में अंग्रेज़ो का शासन काल था तब यहाँ एक अंग्रेजी अफसर आयाऔर लोगो से गाय का दूध मांगता है। गांव वालो की आस्था थी की सबसे पहले दूध को मंदिर में चढ़ाया जाता है उसके बाद ही किसी और को दूध दिया जाता है, जिस कारण से गांव वाले अफसर को दूध देने से मना कर देते हैं और अफसर गुस्से में आकर मूर्ति को तोड़ देता है।
अफसर के ऐसा करने के कुछ दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो जाती और उसके बच्चो की भी किसी न किसी तरह से मृत्यु हो जाती है। उसके बाद अफसर की बीवी मंदिर में क्षमा याचना मांगती है। मंदिर में इस घटना के साक्ष्य आप आज भी देख सकते हैं जिसमे मूर्ति के दोनों हाथ टूटे हुए हैं।
भद्राज मंदिर क्यों प्रसिद्ध? (Why is Bhadraj Temple Famous?)
भद्राज मंदिर भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का उत्तराखंड में स्थित एकलौता मंदिर है। इस मंदिर से जुड़ी हुयी पौराणिक कहानी और यहाँ अगस्त में 15 से 17 के बीच में लगने वाले मेले की वजह से यह मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है।
मसूरी आने वाले उन यात्रियों के लिए यह मंदिर बहुत आकर्षण का केंद्र है जो प्रकृति को महसूस और शांति की खोज में आते हैं। यह मंदिर कुछ इसलिए भी प्रसिद्ध है क्यूंकि आप इस मंदिर तक अपने वाहन द्वारा और ट्रेक करके दोनों तरीको से आराम से पहुंच सकते हैं।
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भद्राज मंदिर का प्रसाद (Bhadraj Temple Prasad)
जैसा की कहानी में बताया जाता है की भगवान भद्राज ने यहाँ जानवरो में फैली बीमारी को ठीक किया था इसलिए मंदिर में शुद्ध घी से बनी मिठाई ही प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है। मंदिर में आप दूध, घी,और मक्खन आदि चीजे प्रसाद के रूप में चढ़ा सकते हैं। आपको मंदिर के आस पास ही कुछ प्रसाद की दुकाने मिल जाएँगी जहाँ से आप प्रसाद ले सकते हैं। जब अगस्त में यहाँ मेला लगता है तब यहाँ की रौनक बहुत अधिक बढ़ जाती है।
मंदिर की जानकारी (Information About Temple)
यह मंदिर दुधली भद्राज पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। जिसमे आप साँवले रंग की बालभद्र जी की मूर्ति को देख सकते हैं। मंदिर सफ़ेद मार्बल द्वारा दुबारा बनाया गया है। मंदिर के बाहर की ओर और मंदिर से नीचे की तरफ काफी खुला हुआ भाग है, जो कैंपिंग करने के लिए एक आदर्श स्थान है।
आप जब भी यहाँ आये तो एक रात कैंपिंग जरूर करे, तब आपको प्रकृति के अद्धभुत नज़ारे देखने को मिलेंगे। मंदिर के इस पहाड़ी से शाम में होता हुआ सूर्योस्त और सुबह में होता हुआ सूर्योदय देखना का एक अलग सा अनुभव होता है। तो आप यहाँ सुबह में होते हुए सूर्योदय को देखना बिलकुल भी मिस न करे।
यह मंदिर भगवान बलराम को समर्पित है और इसके बारे में कहा जाता है की अगर कोई व्यक्ति बद्रीनाथ धाम जाना चाहता और नहीं जा पता है तो वो यहाँ दर्शन कर सकता है। इस मंदिर को बद्रीनाथ धाम मंदिर का ही एक हिस्सा माना जाता है और जो पुण्य बद्रीनाथ धाम में दर्शन करने के बाद मिलते हैं वैसे ही भद्राज मंदिर में दर्शन करने के बाद मिलते हैं। तो यदि आप बद्रीनाथ धाम जाने में असमर्थ हैं तो आप भद्राज मंदिर भी जा सकते हैं।
भद्राज मंदिर में कहाँ रुके? (Where to stay in Bhadraj Temple?)
आप जब भद्राज मंदिर आये तो यदि आप यहाँ एक रात रुकना चाहते हैं तो मंदिर के पास में रुकने के लिए कोई भी लॉज़ या रूम नहीं है। आप मंदिर के पास में सिर्फ कैंपिंग ही कर सकते हैं और कैंपिंग का सारा सामान आपको खुद लेकर आना होगा। आप यदि दुधली गाँव वाले रोड से आ रहे हैं तो आप या तो दुधली गांव में रुक सकते हैं या फिर आप इसी रास्ते में पड़ने वाली जगहों पर बने कैंप साइट में रुक सकते हैं। वो कैंपिंग का सभी सामान किराये पर देते हैं और यहाँ आपको खाने के व्यवस्था भी मिल जाएगी।
यदि आप ट्रेक करके आ रहे हैं तो या तो शाम होने से पहले मंदिर से देहरादून के लिए रवाना हो जाये या फिर आप माटोगी गांव में रुक जाये। माटोगी गांव में रुकने के लिए आपको रूम मिल जायेंगे तो आप यहाँ रुक सकते हैं।
भद्राज मंदिर आने का बेस्ट टाइम (Best time to visit in Bhadraj Temple)
आप भद्राज मंदिर साल भर में कभी भी आ सकते हैं। आप जब भी मसूरी आने का प्लान करे तो तब आप कुछ शांति का अनुभव और प्रकृति को पास से महसूस करने के लिए भद्राज मंदिर आ सकते हैं। इस मंदिर में आने का जो सबसे अच्छा समय है वो अगस्त के समय में 15 से 17 तारीख के बीच है। इन दिनों में यहाँ पर मेले का आयोजन किया जाता है और लोग दूर दूर से इस मेले में शामिल होने के लिए आते हैं। गर्मियों के समय में यहाँ आना भी काफी अच्छा रहता है क्यूंकि हरे भरे बुग्याल के बीच में कैंपिंग करना भी बहुत अच्छा रहता है।
भद्राज मंदिर कैसे पहुंचे? (How to Reach Bhadraj Temple?)
उत्तराखंड में स्थित मसूरी पर्यटन के लिए बहुत अधिक प्रसिद्ध है, जिसमे यहाँ की बहुत सी ऐसी जगह हैं जिसके बारे में लोग अच्छे से जानते हैं। जिस कारण से यहाँ पर बहुत भीड़ और शोर शराबा रहता है लेकिन मसूरी में अभी भी बहुत सी जगहें हैं जिनके बारे में लोग बहुत कम जानते हैं जिसमे से एक भद्राज मंदिर है। आप इस मंदिर तक कैसे पहुंच सकते हैं और यहाँ तक पहुंचने के क्या क्या साधन हैं अब हम उसके बारे में जानेगे। तो आईये जानते हैं यहाँ तक पहुंचने के साधनो के बारे में….
हवाईमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे? (How to Reach by Air?)
यदि आप यहाँ तक फ्लाइट द्वारा आना चाहते हैं तो मैं आपको बता दूं की यहाँ तक आप सीधे फ्लाइट द्वारा नहीं पहुंच सकते हैं क्यूंकि मसूरी में कोई भी एयरपोर्ट नहीं है। भद्राज मंदिर के सबसे निकट एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है। यह एयरपोर्ट देश के सभी बड़े एयरपोर्ट से जुड़ा हुआ है। देहरादून से भद्राज मंदिर तक की दूरी 44 किलोमीटर है। जिसे आप देहरादून से प्राइवेट टैक्सी को बुक करके आराम से पूरा कर सकते हैं।
रेलमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे? (How to Reach by Rail?)
यदि आप रेलमार्ग द्वारा यहाँ आने चाहते हैं तब भी आप सीधे मंदिर तक ट्रेन द्वारा नहीं पहुंच सकते हैं क्यूंकि यहाँ कोई भी रेलवे स्टेशन नहीं है। मसूरी के सबसे निकट रेलवे स्टेशन देहरादून रेलवे स्टेशन है। देहरादून के लिए ट्रेन आपको देश के बाकि बड़े रेलवे स्टेशनो से मिल जाएँगी। देहरादून से आप प्राइवेट टैक्सी या बस द्वारा मसूरी आ सकते हैं और मसूरी से प्राइवेट गाड़ी द्वारा दुधली गांव तक पहुंच सकते हैं और वहां से सीधे भद्राज मंदिर तक आप आसानी से पहुंचे सकते हैं।
सड़कमार्ग द्वारा कैसे पहुंचे? (How to Reach by Road?)
आप जब भी उत्तराखंड में घूमने का प्लान बनाये तो हमेशा ही सड़कमार्ग द्वारा ही जाए। इससे आप उस जगह को सही से देख पाएंगे और महसूस कर पाएंगे। भद्राज मंदिर देहरादून से 44 किलोमीटर और मसूरी से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको मुसरी में हाथी पाव वाले रास्ते से होकर जाना होता है। इस रोड से आप दुधली गांव तक पहुंच सकते हैं। यदि आपको ट्रेकिंग करना पसंद है तो आप दुधली गांव से ट्रेक करते हुए भद्राज मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
ट्रेक द्वारा कैसे पहुंचे? (How to Reach by Trek?)
इस मंदिर की सबसे अच्छी बात यही यह है की आप मंदिर तक गाड़ी और ट्रेक दोनों तरीको से पहुंच सकते हैं। यदि आप मंदिर तक ट्रेक करना चाहते हैं तो आपको देहरादून से माटोगी गांव जाने वाले रास्ते से होकर जाना होगा। माटोगी गांव से भद्राज मंदिर के लिए ट्रेक शुरू होता है। माटोगी गांव में एक जल कुंड है जिसके बारे में कहा जाता है की इस कुंड में स्नान करने के बाद ही भद्राज मंदिर में दर्शन करने के लिए जाया जाता है।
माटोगी गांव से भद्राज मंदिर तक की दूरी लगभग 5 से 6 किलोमीटर है जो खूबसूरत से जंगल से होकर जाता है। मंदिर का रास्ता देवदार और ओक के पेड़ो से घिरा हुआ है। ट्रेकिंग वाला रास्ता जितना खूबसूरत है उतना ही खतरनाक भी हो सकते है क्यूंकि यह रास्ता सुनसान है और जंगल से होकर जाता है। आप यहाँ ट्रेकिंग हमेशा ग्रुप के साथ में ही करे। यदि आप अकेले ही इस मंदिर तक आ रहे हैं तो आप मुसरी से हाथी पाओं वाले रास्ते से ही आये क्यूंकि वह रास्ता सही है और इस रास्ते में आपको लोग भी मिलते रहेंगे।