भारत में बहुत से माता के मंदिर है, जिनकी पूजा अलग अलग रूप में की जाती है। जब यहाँ नवदुर्गो के दिन आते हैं तो माता के मंदिरो की रौनक और आस्था दोनों बहुत ही बढ़ जाती है। इस ब्लॉग में हम एक ऐसे ही मंदिर के बारे में जानेगे, जिसमे स्थापित माता के बारे में कहा जाता है की वो चार धाम की रक्षक हैं। यहाँ माता की प्रतिमा का दिन में रूप बदलने से और भी इस मंदिर के प्रति लोगो की आस्था बढ़ जाती है। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड में स्थित “माँ धारी देवी मंदिर” की।
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की इस मंदिर में देवी माँ काली की पूजा की जाती है। माँ धारी देवी को उत्तराखंड के चार धाम के रक्षक के रूप में माना जाता है। इसमें स्थापित माता की पूर्ति के बारे में कहा जाता है की ये दिन में तीन बार अपने रूप को बदलती हैं जो की सुबह में एक बच्ची का, दोपहर में एक नवयुवा लड़की और शाम में एक बूढ़ी महिला के रूप में दिखाई पड़ती हैं। तो आईये जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी सभी जानकारियों को
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माँ धारी देवी मंदिर कहाँ और कौन से जिले में है?
धारी देवी मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले में अलकनंदा नदी के तट पर श्रीनगर और बद्रीनाथ राजमार्ग के किनारे कल्यासौर में स्थित है। जहाँ तक पहुंचने के लिए आपको मुख्य रोड से थोड़ा पैदल चलकर सीढ़ियों द्वारा मंदिर तक पहुंचना होता है। यह मंदिर श्रीनगर से 15 किलोमीटर की दूरी पर है और रुद्रप्रयाग से 20 किलोमीटर की दूरी पर, जिसे आप यहाँ की प्राइवेट गाड़ी द्वारा कम्पलीट कर सकते हैं।
माँ धारी देवी क्यों प्रसिद्ध हैं?
माँ धारी देवी पूरे उत्तराखंड में बहुत ही प्रसिद्ध हैं, क्यूंकि यहाँ के लोगो का मानना है की ये पूरे उत्तराखंड की रक्षक हैं और मुख्यता उत्तराखंड के चार धामों की रक्षा करती हैं इसलिए माँ धारी देवी के प्रति लोगो की इतनी आस्था है। इसका एक कारण और भी है की यहाँ के लोगो का कहना है की इस मंदिर में स्थापित माँ काली की प्रतिमा दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है, सुबह में एक छोटी बच्ची, दोपहर में एक नवयुवा लड़की और शाम में के बूढ़ी महिला के रूप में दिखाई देती हैं।
क्या हुआ था माँ धारी देवी को उनके मूल स्थान से हटाने का परिणाम?
सन 2013 में अलकनंदा नदी पर बनने वाले हाइड्रो इलेक्ट्रिक डाम की वजह से माँ धारी देवी को उनके मूल स्थान से हटाकर कुछ मीटर की ऊंचाई पर रख दिया गया था। कहते हैं जिस वजह से कुछ घंटो के पश्चात ही पूरे उत्तराखंड में प्रलय आयी थी। खासतौर पर केदारनाथ और उससे जुड़े हुए आस पास के सभी गांव शहर तहस नहस हो गए थे।
यहाँ के लोगो का मानना है और कहा जाता है की 16 जून 2013 को शाम को माँ धारी देवी को उनके मूल स्थान से हटाया गया था और उसके कुछ घंटो के बाद ही केदारनाथ में प्रलय की शुरुआत हुयी थी और देखते देखते ही इसने पूरे उत्तराखंड में तबाही मचा दी थी।
मंदिर के चारो ओर का दर्शय
माँ धारी देवी का मंदिर जो अलकनंदा नदी के बीच में बना हुआ है। मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको नदी के किनारे से मंदिर तक बनी रेलिंग से होकर जाना होता है। रेलिंग लगभग 200 से 300 मीटर लम्बी है, जिसको पार करके आप मंदिर तक पहुंचेंगे और माँ धारी देवी के दर्शन कर सकते हैं। धारी देवी को 2013 के बाद अब 9 साल बाद जनवरी 2023 में पुनः उनके मूल स्थान पर स्थापित कर दिया गया है।
मंदिर से चारो ओर देखने पर सुन्दर पहाड़ और अलकनंदा नदी की सुंदरता दिखाई देती है। मंदिर नदी के बीच में बने होने के कारण और भी अच्छा दिखता है। मंदिर नदी के लगभग बीच में ही बना हुआ है, जिस कारण यह मुख्य सड़क से ही दिखाई दे जाता है। मुख्य सड़क से आपको नीचे मंदिर तक जाने के लिए लगभग 1 से 2 किलोमीटर नीचे पैदल उतरना होता है। इस रास्ते में आपको बहुत सी छोटी और बड़ी दुकाने और कुछ प्रसाद की दुकाने देखने को मिल जाएँगी। नीचे उतरने की बाद आपको मंदिर तक बने पुल से होकर मंदिर तक जाना होता है।
क्या हैं माँ धारी देवी की कहानी?
माँ धारी देवी और इस मंदिर से जुड़ी हुई एक पौराणिक कहानी है। कहते हैं कि एक बार एक भीषण बाढ़ आयी जिसमे मंदिर पूरी तरह नष्ट हो गया और माता की मूर्ति भी पानी में बह गयी। माता की मूर्ति पानी में बहती हुयी एक चट्टान से धारो गांव में आकर रुक गयी। इस मूर्ति से कुछ आवाज़े निकलना प्रारंभ हुयी।
जब यहाँ के गांव वालो को इस बात का पता लगा तो सभी गांव वाले उस जगह पहुंचे जहाँ माता की मूर्ति रुकी हुयी थी। उस मूर्ति से आवाज़ निकली और इसी जगह एक मंदिर के बनाने के निर्देश दिए। गांव वालो ने उस जगह पर मंदिर का निर्माण कराया और माता की मूर्ति की मंदिर में स्थापना की। मंदिर में रहने वाले पुजारियों का कहना है की यहाँ माता की प्रतिमा द्वापर युग से स्थापित है।
माँ धारी देवी मंदिर में माता काली के मुख और ऊपर के हिस्से के दर्शन किये जाते हैं और माता के निचले हिस्से के दर्शन गुप्तकाशी के कालीमठ मंदिर में किये जाते हैं। कालीमठ मंदिर और माता काली से जुड़ी हुयी भी एक कहानी है। कहते हैं की एक बार एक राक्षस जिसका नाम रक्तबीज था उसने सभी देवतागण को हराकर स्वर्ण पर कब्ज़ा कर लिया था। जब कोई भी देवता उस पर बार करता तो उसका रक्त जमीन पर गिरता तो उससे और राक्षसों का जन्म होता जिस कारण देवता भी उसे हारने में असमर्थ हो गए।
सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचते है, देवताओ की हालत और उनकी बातें सुन कर माता पार्वती बहुत ही क्रोधित हो जाती हैं और उनसे माता काली का जन्म होता है जिनके मुख आग के समान और जीभ बहुत ही लम्बी और लाल खून के समान होती है। माता काली रक्तबीज का वध करती हैं लेकिन उनका क्रोध शांत नहीं होता है जिससे देवतागण भी भयभीत होने लगते हैं तभी भगवान शिव उनके पैरो के नीचे लेट जातें जब माता को इसका एहसास होता है तब उनकी जीभ बाहर निकल आती है और उनका गुस्सा शांत होता है और वो धरती में समा जाती हैं।
माँ धारी देवी मंदिर आने पर कहाँ रुके?
जब आप यहाँ मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं और आप यहाँ एक रात या कुछ रातें रुकना चाहते हैं तो आपको यहाँ पर बहुत ही अच्छे होटल्स मिल जायेंगे। आपको रुकने के लिए श्री नगर में अच्छे होटल्स और लॉज़ मिल जायेंगे। अगर अपने मंदिर में दर्शन कर लिए और आप इससे आगे की कुछ और जगहों को एक्स्प्लोर करना चाहते हैं तो आप रुद्रप्रयाग में भी रुक सकते हैं। यहाँ रुकना भी एक अच्छा फैसला हो सकता है। यहाँ से आगे की जगह को आप अगले दिन एक्स्प्लोर कर सकते हैं।
माँ धारी देवी के मंदिर तक कैसे पहुंचे?
अगर आप उत्तराखंड के किसी ट्रिप पर हैं तो आप इस मंदिर में दर्शन के लिए जा सकते हैं। ये मंदिर दिल्ली से 381 किलोमीटर की दूरी पर है जहाँ तक पहुंचने में आपको बस द्वारा 8 से 9 घंटे लगते हैं। ये मंदिर श्रीनगर से 15 किलोमीटर और रुद्रप्रयाग से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तो आईये जानते हैं की आप किस किस साधन द्वारा इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
बस द्वारा माँ धारी देवी मंदिर तक कैसे पहुंचे?
यदि आप बस द्वारा इस मंदिर तक पहुंचना चाहते हैं तो अगर आप उत्तराखंड से ही हैं तब तो आप प्राइवेट गाड़ी और उत्तराखंड की सरकारी बसों के द्वारा यहाँ तक पहुंच सकते हैं। यदि आप उत्तराखंड के अलावा कहीं बाहर से हैं तो सबसे अच्छा है की आप पहले दिल्ली पहुंचे। यहाँ से आपको बहुत आसानी से बस मिल जाएँगी। दिल्ली ISBT से आपको सरकारी बस मिल जाएँगी जो की देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार तक आपको पंहुचा देंगी।
अगर आप बस द्वारा हरिद्वार पहुंचते हैं तो यहाँ कुछ निश्चित समय पर सरकारी बसे मिलती है जिनके जरिये से आप यहाँ तक पहुंच सकते हैं। हरिद्वार से माँ धारी देवी तक की दूरी 145 किलोमीटर की है। जिसको पूरा करने में आपको लगभग 5 घंटे लगते हैं। अगर आप बस द्वारा ऋषिकेश या देहरादून आते हैं तब भी आपको यहाँ से प्राइवेट और सरकारी गाड़ी मिल जाएँगी। ऋषिकेश से माँ धारी देवी तक की दूरी 120 किलोमीटर की है और देहरादून से यहाँ तक की दूरी 156 किलोमीटर की है। जिसे आप औसतन 4 से 6 घंटो में कम्पलीट कर लेंगे।
ट्रेन द्वारा माँ धारी देवी मंदिर तक कैसे पहुंचे?
अगर आप इस खूबसूरत से मंदिर तक ट्रेन द्वारा पहुंचना चाहते हैं तो माँ धारी देवी मंदिर के सबसे निकट रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन और देहरादून रेलवे स्टेशन है। जो देश के कई बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली से देहरादून और ऋषिकेश दोनों के लिए ट्रेन आपको आराम से मिल जाएँगी। ऋषिकेश और देहरादून से मंदिर तक की बाकि की दूरी को आपको बस या प्राइवेट गाड़ी द्वारा ही तय करना होगा।
अगर आप ट्रेन से आते हैं तो ये मेरे हिसाब से सबसे अच्छा तरीका है। आप दिल्ली से ऋषिकेश या देहरादून के लिए रात की ट्रेन से चले और सोते हुए इस जर्नी को कम्पलीट करे और फिर सुबह में प्राइवेट गाड़ी या सरकारी बस द्वारा पहाड़ो की इस जर्नी को एन्जॉय करे।
फ्लाइट द्वारा माँ धारी देवी मंदिर तक कैसे पहुंचे?
यदि आप इस जर्नी को फ्लाइट द्वारा करना चाहते हैं तो माँ धारी देवी मंदिर के सबसे निकट एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है। जो की देहरादून में है। एयरपोर्ट से आप टैक्सी या टैम्पो द्वारा देहरादून बस स्टैंड पहुंचे जहाँ से आप बाकि की दूरी को बस या टैक्सी द्वारा कम्पलीट करे। ऊपर जैसा की मैंने पहले बताया है उन्ही तरीको द्वारा आप यहाँ माँ धारी देवी मंदिर तक पहुंचे।
माँ धारी देवी मंदिर आने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?
यहाँ माँ धारी देवी के दर्शन करने के लिए आप पूरे वर्ष में कभी भी आ सकते हैं। माँ धारी देवी का मंदिर वर्ष भर खुला रहता है। यहाँ सबसे ज्यादा लोग नवदुर्गो में आना पसंद करते हैं। ये मंदिर माँ के शक्ति पीठ की तरह होने के कारण नवदुर्गो में इस मंदिर की भवभ्यता और भी बड़ जाती है और यहाँ आने वाले श्रद्धलुओ की संख्या भी बढ़ जाती है।
अगर एक ऐसे समय की बात करे की जब लोगो कुछ ज्यादा ही पसंद करते हैं यहाँ आना तो वो है मार्च के बाद का समय। यहाँ लोग मार्च के समय में काफी आते हैं क्यूंकि इस समय में उत्तराखंड के चार धाम के कपाट खुल जाते हैं तब लोग इस मंदिर में दर्शन के बाद आगे की यात्रा को प्रारम्भ करते हैं। हमे मानसून के समय में यहाँ आने से थोड़ा बचना चाहिए, क्यूंकि इस समय में अधिक बारिश के कारण यहाँ के रास्ते ब्लॉक हो जाते हैं और बहुत सी प्रॉब्लम का सामना करना पड़ता।
मंदिर के आस पास की जगह?
आप मंदिर में दर्शन के पश्चात यहाँ के पास कुछ और मंदिर और कुछ अच्छी जगह घूम सकते हैं। तो आइये जानते हैं ऐसे ही कुछ जगहों के बारे में
कोटेश्वर महादेव मंदिर
मंदिर में दर्शन करने के बाद आप माँ धारी देवी मंदिर से लगभग 48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चोपता रोड के पास श्री कोटेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन करने के लिए जा सकते हैं। कोटेश्वर महादेव मंदिर जो की एक तरह की प्राकृतिक गुफा है। इन गुफाओ के बारे में कहा जाता है की भगवान शिव जब केदारनाथ की ओर जा रहे थे तब भगवान शिव ने इन्ही गुफाओ में ध्यान किया था। ये मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे पर है, जिसकी वजह से मानसून आने के समय में इस मंदिर को बंद कर दिया जाता है क्यूंकि इन गुफाओ में माँ अलकनंदा का जल भर जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर
यहाँ से आप काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के लिए जा सकते हैं, जिसकी माँ धारी देवी मंदिर से दूरी लगभग 60 किलोमीटर की है। यहाँ तक पहुंचने में आपको लगभग 2 से 3 घंटे लगेंगे। काशी विश्वनाथ मंदिर वही मंदिर है जहाँ भगवान शिव ने माता पार्वती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था और बाद में उनका विवाह त्रियुगीनारायण मंदिर में हुआ था। काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी जानकारी को पढ़े हमारे पिछले ब्लॉग में।
त्रियुगीनारायण मंदिर
अगर आप केदारनाथ जा रहें हैं तो इस मंदिर में दर्शन करने के पश्चात आप गुप्तकाशी की ओर जायेंगे। गुप्तकाशी में आप त्रियुगीनारायण मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। अगर आप केदारनाथ न भी जा रहे हैं तब भी आप यहाँ दर्शन के लिए आ सकते हैं। त्रियुगीनारायण मंदिर माँ धारी देवी मंदिर से लगभग 95 किलोमीटर पर है। जिसे आप कार द्वारा 4 घंटे में कम्पलीट कर लेंगे। काशी विश्वनाथ मंदिर से इस मंदिर तक की दूरी 37 किलोमीटर की है जिसे आप 1 से 1.5 घंटे में आराम से कर लेंगे।
त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में कहा जाता है की इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में पूरी जानकारी हमने अपने पिछले ब्लॉग में दी है। अगर आपने उसे नहीं पढ़ा है तो एक बार उसे भी जरूर पढ़े।
कुछ ध्यान रखने योग्य बातें
- आप जब भी इस मंदिर या यहाँ के किसी भी मंदिर में दर्शन करने के लिए आ रहे है तो आप देहरादून या ऋषिकेश में सुबह में ही बस स्टैंड पहुंच जाए क्यूंकि यहाँ पर आपको सुबह में ही बस मिलती हैं।
- अगर आप खासतौर पर इसी मंदिर में जाने का प्लान कर रहें हैं तो आप नवदुर्गो में ही यहाँ आने का प्लान करे।
- अगर आपके पास अपना पर्सनल वाहन है तो आप उससे आये क्यूंकि उससे यहाँ आने पर आप अच्छी तरह से इस जगह को एक्स्प्लोर कर सकते हैं।
- अगर आपको पहाड़ो पर गाड़ी चलने का अनुभव हो तभी यहाँ पर अपने पर्सनल वाहन से आये।
- जब भी आप किसी भी पहाड़ो की ट्रिप पर या कही भी घूमने जा रहें हैं तो अपने साथ कुछ नियमित दवाई और अपने आप को पूरे ट्रिप के दौरान हाइड्रेट रखे।