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पंच केदार मंदिरो की यात्रा से सम्बंधित जानकारी, मंदिर कब खुलेंगे? यात्रा कैसे करे? आदि

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भारत में ऐसी बहुत सी यात्राएं हैं जो बहुत अधिक पवित्र मानी जाती हैं और जिन्हे करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे ही यात्राओं में से के है पंच केदार मंदिरो की यात्रा जो हर साल 6 महीनो तक की जाती है। पंच केदार मंदिर उत्तराखंड में स्थित है जिनमे से 4 मंदिर (केदारनाथ, मधेश्वरनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ) साल में सिर्फ 6 महीनो के लिए खुलते हैं और एक मंदिर (कल्पेश्वर) पूरे साल खुला रहता है। इन पंच मंदिरो की यात्रा हर साल मई या अप्रैल के महीने से शुरू होती है और साल के लास्ट नवंबर तक चलती है।

इस ब्लॉग में हम पंच केदार मंदिरो की यात्रा से सम्बंधित सभी जानकारियों को आपसे साझा करेंगे। पंच केदार मंदिर कहाँ-कहाँ स्थित हैं? मंदिर कब खुलते हैं? यात्रा करने का सही समय क्या है? मंदिरो तक आप कैसे पहुंच सकते हो? इन सभी बातों को हम अपने इस ब्लॉग के माध्यम से जानेगे। तो आईये जानते हैं पंच केदार मंदिरो की यात्रा से सम्बंधित सभी जानकारियों को…

शार्ट जानकारी

जगहपंच केदार मंदिर (केदारनाथ, मधेश्वरनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वरनाथ)
पताउत्तराखंड, भारत
प्रसिद्धमहाभारत काल और भगवान शिव से सम्बंधित होने के कारण
निकटम रेलवे स्टेशनऋषिकेश रेलवे स्टेशन
निकटम एयरपोर्टजॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून

पंच केदार मंदिर कहाँ पर स्थित हैं?

पंच केदार मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित हैं। पांच केदार में भगवान शिव के पांच मंदिर आते हैं, जिन्हे महाभारत काल का बताया जाता है और इन मंदिरो को बनाने का श्रेय पांडवो को दिया जाता है।

पंच केदार में सर्वप्रथम मंदिर केदारनाथ आता है, जो उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में मंदाकनी नदी के किनारे पर स्थित है। दूसरे नंबर पर मध्यमहेश्वर मंदिर आता है, जो उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय क्षेत्र के मनसूना गांव में स्थित है। तीसरे नंबर पर तुंगनाथ मंदिर आता है, जो रुद्रप्रयाग जिले के चोपता में तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है। चौथे नंबर पर रुद्रनाथ मंदिर आता है, जो उत्तराखंड के चमोली जिले में आता है, मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 किलोमीटर का ट्रेक करना होता है। पांचवा और आखरी केदार मंदिर कल्पेश्वर मंदिर है जो चमोली जिले की उर्गम घाटी में स्थित है।

पंच केदार मंदिर की कथा

पंच केदार मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है और महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है की द्वापर युग में हुए महाभारत युद्ध के बाद ही पंच केदार मंदिरो की स्थापना हुयी। इन मंदिरो को बनाने का श्रेय महाभारत युद्ध के मुख्य पात्र पांडवो को दिया जाता है और बाद में इन मंदिरो के पुनर्निर्माण का श्रेय आदि शंकराचार्य को दिया जाता है।

पंच केदार मंदिरो की स्थापना को लेकर बहुत ही सुन्दर कहानी बताई जाती है, जो महाभारत काल से ही जुड़ी हुयी है। ऐसा कहा जाता है की महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद पांडवो को अपने भाई, गुरुजनो, और ब्राह्मण हत्या का पाप लग गया था। जिससे वे मुक्त होना चाहते थे और उन्हें उनके इन पापो से मुक्ति सिर्फ भगवान शिव ही दे सकते थे। जिससे वे सभी भगवान शिव से मिलने और अपने पापो से मुक्त होने के लिए काशी के लिए निकल पड़ते हैं लेकिन भगवान शिव पांडवो द्वारा किये गए अपने प्रिये जनो की हत्या से नाराज़ थे और पांडवो से मिलना नहीं चाहते थे।

भगवान शिव को जब पता चलता है की पांडव उनसे मिलने काशी आ रहे हैं तो वो देव भूमि उत्तराखंड में कही छिप जाते हैं। पांडवो को जब काशी में भगवान शिव के दर्शन नहीं होते हैं तब वे भगवान शिव को खोजते-खोजते उत्तराखंड जा पहुंचते हैं। जब भगवान शिव को पता चलता है की पांडव उन्हें खोजते हुए इसी जगह आ रहे हैं तो वे वहां से अंतर्ध्यान हो जाते हैं। जिस जगह से भगवान शिव अंतर्ध्यान हुए थे उस जगह को आज गुप्तकाशी के नाम से जाना जाता है।

भगवान शिव अंतर्ध्यान होकर केदारनाथ में कुछ बैलो के झुण्ड में मिल जाते हैं। जब पांडव भगवान शिव को खोजते हुए उस जगह पहुँचते हैं तो वो बैलो के झुण्ड को देखकर समझ जाते हैं की हो न हो भगवान शिव इन्ही बैलो में से एक हैं। पांडवो में से भीम अपने रूप को बड़ा करके अपने पैरो को दो पहाड़ो पर रख देता है और अपने बाकि भाइयो से उन बैलो को अपने पैरो के बीच से निकालने के लिए कहता है। सभी पांडव उन बैलो को एक-एक करके भीम के पैरो के बीच से निकालने लगते हैं लेकिन एक बैल पैरो के बीच से निकलने से मना कर देता है और कुछ उग्र व्यवहार करने लगता है।

पांडव समझ जाते हैं की ये भगवान शिव हैं और भीम उस बैल की पूँछ को पकड़कर खींचने लगता है लेकिन बैल धरती में समा जाता है। पांडवो की इस दृणसंकल्प शक्ति और भक्ति को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं और पांडवो को पंच केदार रूप में दर्शन देते हैं। जिसमे बैल की पीठ केदारनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, भुजाये तुंगनाथ में, नाभि मध्यमहेश्वर में और कल्प (जटा/बाल) कल्पेश्वर में प्रकट हुयी। पांडवो ने इन सभी जगह मंदिरो का निर्माण किया और अपने पापो से मुक्ति पायी और इसी प्रकार इन सभी मंदिरो की स्थापना हुयी।

पंच केदार यात्रा का महत्व

इस यात्रा का बहुत अधिक महत्व है और ऐसा माना जाता है की इस यात्रा को करने से आपको आपके सभी पापो से मुक्ति मिल जाती है। पांडवो को अपने प्रिये जनो की हत्या का पाप लगा था जिससे उन्हें मुक्ति इन पंच केदार मंदिरो में भगवान शिव के दर्शन और भक्ति करने से मिली थी इसलिए ऐसा माना जाता है की इस यात्रा को करने से आपको आपके सभी पापो से मुक्ति मिल जाती है और आपको मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी कारण ही पंच केदार यात्रा का इतना अधिक महत्व है।

पंच केदार यात्रा कितने दिनों की होती है?

आज के आधुनिक समय में यह यात्रा पहले के मुक़ाबले काफी आसान हो गयी है। पहले ये यात्रा कई महीनो की हुआ करती थी जिसमे लोग पैदल ही इस यात्रा को पूरा किया करते थे, लेकिन अब सड़क निर्माण और वाहनों के द्वारा आप इस यात्रा को पूरा करने में लगभग 10 से 15 दिन लगते हैं। इन दिनों में आप इस यात्रा को आराम से पूरा कर लोगे।

पंच केदार मंदिरो का विवरण

अब हम एक-एक करके पांचो मंदिरो के बारे में जानेंगे। मंदिर कहाँ है? मंदिर तक कैसे पंहुचा जा सकता है और इन सभी मंदिरो की यात्रा किस प्रकार की जा सकती है। तो आईये जानते हैं पंच केदार मंदिरो से सम्बंधित सभी जानकारियों को…

केदारनाथ मंदिर

केदारनाथ मंदिर पंच केदार मंदिरो में प्रथम केदार है और सबसे प्रमुख केदार मंदिर है क्यूंकि यह पंच केदार मंदिर के साथ-साथ चार धाम मंदिर के अंतर्गत भी आता है। केदारनाथ मंदिर हिमालय के पहाड़ो के बीच में मन्दाकिनी नदी के पास स्थित है। यह मंदिर 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। केदारनाथ मंदिर में बाबा केदार के दर्शन करने के लिए 18 से 20 किलोमीटर का ट्रेक करना होता है। केदारनाथ का ट्रेक गौरीकुंड से शुरू होता है और श्रद्धालु गौरीकुंड में स्नान करने के बाद और गौरी माता के दर्शन करने के बाद ही इस यात्रा को शुरू करते हैं।

केदारनाथ यात्रा, केदारबाबा के दर्शन और काल भैरव के दर्शन करने के पश्चात ही पूरी मानी जाती है, इसलिए आप भगवान शिव के दर्शन करने के पश्चात भगवान शिव के ही अंश काल भैरव के दर्शन भी जरूर करे। काल भैरव मंदिर केदारनाथ मंदिर से बायीं ओर 1 किलोमीटर के ट्रेक डिस्टेंस पर है।

ट्रेक दूरी18 से 20 किलोमीटर
बेस्ट समयमई से जून और सितम्बर से नवंबर
निकटम रेलवे स्टेशनऋषिकेश रेलवे स्टेशन
निकटम एयरपोर्टजॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून
कैसे पहुंचे?हरिद्वार या ऋषिकेश से सीधे प्राइवेट गाड़ी बुक करके या अपने वहां द्वारा पहुंचना सही रहता है। आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट द्वारा भी जा सकते हैं लेकिन आपको टुकड़ो में जाना होगा।

मध्यमहेश्वर मंदिर

मध्यमहेश्वर मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के मनसूना गांव में स्थित है। यह पंच केदार मंदिरो में दूसरे नंबर का केदार मंदिर है, जो समुद्र तल से 3497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 21 किलोमीटर का ट्रेक करना होता है जो कुछ गांव और जंगलो से होकर जाता है। मध्यमहेश्वर मंदिर तक ट्रेक जितना कठिन है उतना ही सुन्दर भी है। ट्रेक के दौरान आपको सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों के साथ हिमालयी बर्फ के पहाड़ देखने को मिलेंगे।

मध्यमहेश्वर मंदिर के कपाट 19 मई को पूरे विधि विधान से खोल दिए जाएंगे और उसके बाद से श्रद्धालु मध्यमहेश्वर मंदिर में दर्शन कर सकते हैं। द्वितीय केदार मध्यमहेश्वर की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय कपाट खुलने से लेकर जून के लास्ट तक और फिर मानसून के बाद से कपाट के बंद तक का होता है। मानसून का समय थोड़ा खतरों से भरा हो सकता है लेकिन यात्रा करने के लिए ये भी काफी अच्छा समय है। तो आप अपने हिसाब से कभी भी इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आ सकते हैं।

ट्रेक दूरी20 से 21 किलोमीटर
बेस्ट समयमई से जून और अक्टूबर से नवंबर
निकटम रेलवे स्टेशनऋषिकेश रेलवे स्टेशन
निकटम एयरपोर्टजॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून
कैसे पहुंचे?मध्यमहेश्वर मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको रासी गांव पहुंचना होगा जो इस मंदिर के ट्रेक का बेस गांव/बेस कैंप है। रासी गांव से मंदिर तक का लगभग 20 किलोमीटर का ट्रेक शुरू होता है। रासी गांव आप उखीमठ से प्राइवेट गाड़ी द्वारा पहुंच सकते हैं।

तुंगनाथ मंदिर

तुंगनाथ मंदिर जो पंच केदार मंदिर में तीसरे नंबर का केदार मंदिर है। यह विश्व का सबसे ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव का मंदिर है जो समुद्र तल से 13000 फिट की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान शिव की भुजाओ के दर्शन किये जाते हैं। मंदिर के कपाट हर साल अप्रैल या मई के महीने में खोले जाते हैं। इस साल 10 मई को केदारनाथ मंदिर के साथ तुंगनाथ मंदिर के कपाट भी खोल दिए गए हैं।

कहने के लिए तो तुंगनाथ मंदिर विश्व का सबसे ऊंचाई पर स्थित मंदिर है लेकिन इस मंदिर तक का ट्रेक काफी आसान है और इसे आप बिना घोड़ो खच्चरों या पालकी के पूरा कर सकते हो। तुंगनाथ मंदिर का ट्रेक चोपता से शुरू होता है और यह ट्रेक लगभग 3 से 4 किलोमीटर लम्बा होता है। कल्पेश्वर मंदिर के बाद तुंगनाथ मंदिर ही पंच केदार में एक ऐसा मंदिर है जहाँ तक पहुंचना बाकि मंदिरो की तुलना में आसान है।

ट्रेक दूरी3 से 4 किलोमीटर
बेस्ट समयमई से जुलाई के द्वितीय वीक तक
निकटम रेलवे स्टेशनऋषिकेश रेलवे स्टेशन
निकटम एयरपोर्टजॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून
कैसे पहुंचे?तुंगनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले चोपता पहुंचना होगा जहाँ से मंदिर के लिए 3 से 4 किलोमीटर का ट्रेक शुरू होता है। चोपता के लिए आपको प्राइवेट गाड़ी ऋषिकेश या हरिद्वार से मिल जाएँगी।

रुद्रनाथ मंदिर

रुद्रनाथ मंदिर पंच केदार में चतुर्थ केदार मंदिर है। जो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। रुद्रनाथ में भगवान शिव के मुख के दर्शन किये जाते हैं। पंच केदार मंदिरो में रुद्रनाथ मंदिर का ट्रेक सबसे सुन्दर और आकर्षक है। इस ट्रेक को मानसून के समय में करना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन इस समय में यहाँ की खूबसूरती बहुत अधिक बढ़ जाती है। यह मंदिर समुद्र तल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

यह मंदिर एक पहाड़ की गुफा में बना हुआ है और इसके बाहर कुछ खाने-पीने की दुकाने और रहने के लिए कुछ टेंट और कच्चे घर हैं। इस मंदिर के पास में 5 कुंड हैं :- सरस्वती कुंड, नारद कुंड, चंद्र कुंड, तारा कुंड, और सूर्य कुंड। इन सभी का जल बहुत ही पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने साथ अपने घर लेकर जाते हैं।

ट्रेक दूरी18 किलोमीटर
बेस्ट समयमई से जून और अक्टूबर से नवंबर (कपाट खुलने से लेकर किसी भी समय आप जा सकते हैं।)
निकटम रेलवे स्टेशनऋषिकेश रेलवे स्टेशन
निकटम एयरपोर्टजॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून
कैसे पहुंचे?रुद्रनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले गोपेश्वर पहुंचना होगा। गोपेश्वर के सगर गांव से रुद्रनाथ मंदिर का ट्रेक शुरू होता है। गोपेश्वर के लिए आपको बस या प्राइवेट गाड़ी ऋषिकेश और हरिद्वार से मिल जाएँगी।

कल्पेश्वर मंदिर

कल्पेश्वर मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में हेलंग से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कल्पेश्वर मंदिर पंच केदार में इकलौता मंदिर है जहाँ तक पहुंचने के लिए कोई भी ट्रेक नहीं करना होता है। पहले इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 12 किलोमीटर का ट्रेक करना होता था लेकिन अब मंदिर तक सड़क निर्माण कर दिया गया है जिससे गाड़ी मंदिर के पास तक जाती हैं। कल्पेश्वर, पंच केदार में पांचवा केदार मंदिर है और यही एक ऐसा केदार मंदिर है जो साल भर खुला रहता है और इसके कपाट कभी बंद नहीं किये जाते हैं।

कल्पेश्वर में भगवान शिव के कल्प (जटा/बाल) के दर्शन किये जाते हैं। कल्पेश्वर मंदिर तक पहुंचने के लिए एक गुफा से होकर जाना होता है। कल्पेश्वर मंदिर का पूरा नाम अनादिनाथ कल्पेश्वर मंदिर है। मंदिर के पास में ही एक कुंड स्थित है जिसे कलेवरकुंड के नाम से जाना जाता है। इस कुंड का जल बहुत ही पवित्र माना जाता है और श्रद्धालु इस जल को ग्रहण करते हैं और अपने साथ लेकर जाते हैं।

ट्रेक दूरी500 मीटर
बेस्ट समयमई से जून और अक्टूबर से दिसंबर तक
निकटम रेलवे स्टेशनऋषिकेश रेलवे स्टेशन
निकटम एयरपोर्टजॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून
कैसे पहुंचे?कल्पेश्वर मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको उर्गम गांव पहुंचना होगा। उर्गम गांव से मंदिर की दूरी मात्र 5 किलोमीटर रह जाती है। ऋषिकेश और हरिद्वार से उर्गम गांव के लिए प्राइवेट गाड़ी और बस मिल जाएँगी जिनकी सहायता से आप मंदिर तक पहुंच सकते हो।

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