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केदारनाथ: अगर आप छुट्टियों में कही दर्शन करने कि सोच रहे हैं और वो समय अप्रैल से नवंबर का है, तो मेरा विचार है आपको पंचकेदार, 12 ज्योतिर्लिंगों और चार धाम में से एक, केदारनाथ जाना चाहिए। जो कि हिमालय की गोद में केदार नामक चोटी पर स्थित है। केदारनाथ की कुछ रोचक कहानिया हैं, जिन्हे हम आगे पढ़ेंगे और केदारनाथ मंदिर का इतना महत्व क्यों है? और हमे वहां क्यों जाना चाहिए। केदारनाथ यात्रा से सम्बंधित सभी जानकारी, वहां का वैदर ,खाना, रुकना, रूट, आदि सभी जानकारियों को विस्तार से जानेंगे और हम अपने अनुभव को साझा करेंगे। कैसे मैं और मेरे बड़े भाई घर पर बिना बताये केदारनाथ पहुंचे वो भी बाइक से। हम और कहाँ कहाँ गए? और कैसे पूरी कि हमने अपनी यात्रा और भी बहुत कुछ जो हमने इस यात्रा में किया। मुझे आशा है की आपको इस ब्लॉग को पढ़ कर मज़ा भी आएगा और आपको मैं इस ब्लॉग के माध्यम से केदारनाथ की पूरी जानकारी देने की कोशिश भी करूँगा। तो आईये शुरू करते है अपना सफर
हमारे सफर की शुरुआत वहां से होती है, जब हमारे पड़ोस के भैया केदारनाथ होकर आये होते हैं, और वो मेरे बड़े भैया को केदारनाथ के बारे में बताते हैं उसके बाद ही हमारा प्लान बनता है। पहले दो तीन दिन हमारा प्लान कैंसल हो जाता है और मुझे लगता अब हमे केदारनाथ नहीं जाने को मिलेगा, लेकिन सुबह में मेरे कोचिंग से लौटने के बाद मुझे पता लगता है की हम कही घूमने जा रहे हैं, जो मुझे मेरे भाई बताते हैं। घर पर भैया सब को बताते हैं की हम दोनों लोग नानक मात्ते तक जा रहे हैं, और मुझे भी यही लगता है कि हम लोग वही जा रहे हैं पर मेरे भाई के दिमाग में कुछ और ही चल रहा होता है।
केदारनाथ मंदिर कहाँ स्थित है ?
केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है। केदारनाथ को स्वर्ग भी कहा जाता है, क्यूंकि यह मंदिर हिमालय की गोद में और 22000 फिट उंच्ची केदारनाथ पहाड़ी दूसरी तरफ 21600 फिट उंच्ची कराचकुण्ड और तीसरी तरफ 22700 फिट ऊंच्चा भरतकुंड पहाड़ो से घिरा हुआ है। जिसकी सुंदरता एक स्वर्ग की तरह सुशोभित है।

हम घर पर सबसे विदा लेते हैं और चल देते हैं अपनी मंज़िल की ओर, जो की मेरे भाई बताते हैं की हम नैनीताल जा रहे हैं और फिर कहते हैं की वहां से केदारनाथ की रास्ता है, और हम दोनों लोग बाइक से सफर का मज़ा लेते हुए आगे बढ़ते हैं अपनी मंज़िल की ओर, जो की रूकती है हल्द्वानी पहुंच कर, जहाँ हम खाना खाते हैं और खाना खाके वहां लोगो से पूछते हैं कि नैनीताल से कहाँ से केदारनाथ की रास्ता गयी है, लेकिन हमे वहां एक सरप्राइज मिलता है कि वहां से तो कोई रास्ता है ही नहीं, हमे सबसे पहले हरिद्वार जाना होगा फिर क्या हमारी गाड़ी मुड़ती है हरिद्वार की ओर।
केदारनाथ मंदिर का रूट और रूट में पड़ने वाले मंदिर और जगह जहाँ आप जा सकते हैं !
केदारनाथ जाने के लिए अगर आप उत्तराखंड के अलावा किसी और राज्य से आते हैं, तो आपको सर्वप्रथम हरिद्वार आना होगा, या आप सीधे ऋषिकेश भी जा सकते हैं। यहाँ से भी आपको सोनप्रयाग तक के लिए बस या प्राइवेट गाड़ी मिल जाएँगी। हरिद्वार से आपको सीधे सोनप्रयाग के लिए बस भी मिल जाएँगी। बसों के जाने का टाइम निश्चित है, तो आप पहले ही ऑनलाइन बसों को चेक कर सकते हैं।

हरिद्वार
हमे हरिद्वार पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी तो हम दोनों लोगो ने तय किया की हम लोग आज रात यही रुकेंगे। हरिद्वार में हमने एक रूम लिया जो की घाट से और रोडवेज से काफी दुरी पर और अंदर गलियों में था, जो की हमे काफी कम रुपये में मिल गया। आप जब भी हरिद्वार में रूम ले तो ध्यान रखे की घाटों से कुछ दुरी पर और अंदर गलियों में ले इससे आपको कम रुपये में अच्छा रूम मिल जायेगा।

आप जब भी केदारनाथ जाये तो एक रात हरिद्वार में जरूर रुके वहां की रौनक देखे वहां के घाट जो बहुत सुन्दर हैं वो देखे। घाट पर स्नान करने के बाद माँ चंडी के दर्शन करे और फिर अपनी आगे की यात्रा को शुरू करे।
ऋषिकेश
हम लोग सुबह जल्दी उठे घाट पर स्नान किया और चल दिए अपनी मंज़िल की ओर जो थी केदारनाथ की। हमने हरिद्वार से यात्रा शुरू की और ऋषिकेश पहुंचे, ऋषिकेश जहाँ आप त्रिवेणी घाट, राम झूला, लक्ष्मण झूला और वहां के सुन्दर मंदिरो में घूम सकते हैं। ऋषिकेश से होते हुए आप पीपलकोटी में पहाड़ो की सुंदरता को देख सकते हैं कि किस प्रकार प्रकृति ने अपने सारे रंग बिखेर दिये हैं।

देवप्रयाग
पीपलकोटी से होते हुए हम पहुंचे देवप्रयाग। देवप्रयाग जो की अपनी एक अलग कहानी कहता है। देवप्रयाग की सुंदरता जो की एक संगम के द्वारा झलकती है और अपने एक अनोखे और प्यारी सी पौराणिक कहानियों की वजह से चर्चा में है। जो की बहुत ही इंट्रेस्टिंग और बहुत ही धार्मिक है जिसकी बात हम अपने आगे आने वाले ब्लॉग में करेंगे।

देवप्रयाग में आप “श्री रघुनाथ मंदिर” में दर्शन कर सकते हैं। यहाँ आप दो नदियों का संगम जिनमे गंगोत्री से आने वाली भागीरथी नदी एवं बद्रीनाथ धाम से आने वाली अलकनंदा नदी को देख सकते हैं, यहाँ से आगे ये संगम गंगा नदी के नाम से जाना जाता है। देवप्रयाग उत्तराखंड के पंचप्रयाग में से एक माना जाता है। देवप्रयाग के बारे में कहा जाता है की जब भगीरथ ने अपने ही वंश के सगर पुत्रो के उद्धार हेतु जब गंगा जी को पृथ्वी पर उतरने के लिए राजी कर लिया तो उनके साथ 33 करोड़ देवी-देवता भी गंगा जी के साथ उतरे, तब उन्होंने देवप्रयाग को ही अपना आवास बनाया, जो गंगा जी की भूमि है। अगर आप खगोलशास्त्र में रूचि रखते हैं, तो आप यहाँ बनी नकषत्र वेधशाला में जा सकते हैं। जो दो बड़ी दूरबीनो (टेलिस्कोप) द्वारा सुशोभित है।
देवप्रयाग में हम दोनों लोगो ने वहां की सुंदरता को अपने अपने मोबाइल में कैद किया और आगे बढ़ चले अपनी नयी मंज़िल की ओर जो की देवप्रयाग से लगभग 36 किलोमीटर दूर थी, जो थी श्रीनगर।
श्रीनगर
यह अलकनंदा नदी के किनारे बसा बहुत ही सुन्दर शहर है। श्री नगर से आगे कुछ दुरी पर है,- “धारादेवी मंदिर ।
धारादेवी मंदिर:- धरादेवी को उत्तराखंड की संरक्षक देवी कहा जाता है, और चार धाम के संरक्षक के रूप में पूजा जाता है। अलकनंदा नदी पर बनने वाले हाइड्रो इलेक्ट्रिक डाम की वजह से 16 जून 2013 धारादेवी को उनके मूल स्थान से हटाकर 611 मीटर उंच्चे स्थान पर रख दिया और इसी घटना के कुछ ही देर बाद केदारनाथ में बाढ़ आ गयी। यहाँ के लोकल लोगो का कहना है कि इसी घटना की वजह से केदारनाथ में प्रलय आयी। धारादेवी की बात करे तो उनका upper half श्रीनगर में और lower half गुप्ताकाशी के कालीमठ मंदिर में है।
श्री नगर में वहां की सुंदरता को देखते हुए हम चल रहे थे, अपनी मंज़िल की ओर। जहाँ पहाड़ो के पतले रास्ते और हलकी ठंडी चलती हुई हवा, जिसको चीरते हुए हम बस अपनी मंज़िल की ओर ही देख रहे थे। हम दोनों लोगो ने धारादेवी मंदिर से आगे पहुंचकर एक टिपिकल पहाड़ी ढाबा पर खाना खाया और उन वादियों को देखते हुए जहाँ छोटे छोटे वाटरफॉल्स जो पहाड़ो की सुंदरता को और बड़ा रहे थे, उन्हें देखते हुए श्रीनगर से आगे बढ़ते हुए हम चल दिए रुद्रप्रयाग की ओर।
रुद्रप्रयाग
रुद्रप्रयाग भी पंचप्रयाग में से एक है। यहाँ अलकनन्दा नदी और मंदाकनी नदी का संगम होता हैं, जो एक दूसरे से ऐसे मिलती है मानो दो बहने आपस में मिल रही हो। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ की दुरी लगभग 86 किलोमीटर की है। कहा जाता है कि भगवान शिव के नाम पर रुद्रप्रयाग का नाम रखा गया हैं। यहाँ आप शिव और जगदम्बा मंदिर में दर्शन कर सकते हैं, और यहाँ श्री कोटेश्वर मंदिर को भी देख सकते हैं, जो कि अलकनंदा नदी के तट पर स्थित हैं।
रुद्रप्रयाग से जुड़ी कुछ पौराणिक कहानियां:-
इस जगह का नाम शिव के नाम पर पड़ा हैं, जिसकी एक रोचक पौराणिक कहानी है। ऐसा माना जाता है कि श्री ब्रह्मा के पुत्र नारद मुनि ने यहाँ भगवान शिव की उपासना की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नारद मुनि जी को रौद्र रूप में दर्शन दिए, कहते हैं इसी वजह से इस जगह का नाम रुद्रप्रयाग पड़ गया।
श्री कोटेश्वर मंदिर, जो कि अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि जब पांडवो से रूष्ट होकर भगवान शिव केदारनाथ जा रहे थे, तब इस गुफा में शिव जी ने ध्यान किया था।
रुद्रप्रयाग में इन जगह को देखते हुए हम जा रहे थे अपनी मंज़िल कि ओर। जैसे जैसे हमारी मंज़िल पास आ रही थी मुझे और उत्साहित कर रही थी। रुद्रप्रयाग से कुछ किलोमीटर के बाद हमने रुकने का तय किया क्यूंकि बहुत रात हो चुकी थी। हम मेन रुद्रप्रयाग में नहीं रुके क्यूंकि वहां रूम का किराया बहुत ज्यादा था जो कि सही नहीं था। मेरी आपको यही राये होगी कि अगर आप रुद्रप्रयाग में स्टे करते हैं तो मेन रुद्रप्रयाग से कुछ पहले या उसके बाद रूम ले, जो आपके लिए सही होगा। हम लोग बाइक से सफर में काफी थक चुके थे तो हम दोनों लोगो ने खाना खाया और सो गए।
सुबह हम लोग जल्दी उठे और नास्ता किया और चल दिए अपने सफर पर। हमारा नास्ता हमारे सफर का वो सबसे अच्छा नास्ता था, क्यूंकि वो पहाड़ी चाय उसके साथ आलू के पराठो के साथ चलती हुई ठंडी हवा और ढाबे के सामने बहुत ही सुन्दर झरना, एक ऐसा सुन्दर और मन को मोह लेना वाला दृश्य था जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। उस सुन्दर से दृश्य को देख और नास्ता को करने के बाद हम चल पड़े गुप्तकाशी की ओर।
गुप्तकाशी
गुप्तकाशी जिसका सीधा सम्बन्ध भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। जो कि एक पौराणिक कहानी से जुड़ी हुई है। यहाँ अलकनन्दा और मन्दाकिनी नदी का संगम होता है। यहाँ दो मंदिर बहुत प्रसिद्ध हैं, जिनमे से एक हैं “काशी विश्वनाथ मंदिर”, और दूसरा हैं, “अर्धनारीश्वर मंदिर”। जिनका इतिहास भी महाभारत के काल से जुड़ा हुआ है। जिनके बारे में हम अपने आगे आने वाले ब्लॉग में विस्तार से बात करेंगे। काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रागण में एक मणिकर्णिका कुंड है, जिसमे स्नान करना बहुत ही अच्छा माना जाता है। जिसमे एक ओर से गंगा जी और दूसरी ओर यमुना जी का जल गिरता है। जोकि बहुत ही पवित्र माना जाता है।
हम हल्के हल्के अपनी मंज़िल कि ओर बढ़ रहे थे। हम गुप्तकाशी में कुछ नास्ता करने के लिए रुके तो वहां एक अंकल द्वारा हमे इन दोनों मंदिरो के बारे में पता चला जो थे, काशी विश्वनाथ और अर्धनारीश्वर। अंकल ने हमे बताया कि इस जगह का नाम गुप्तकाशी कैसे पढ़ा और इन दोनों मंदिरो के बारे में जो बहुत ही इंट्रेस्टिंग था। अंकल द्वार बताई गयी हमे बातो ने हमे इन मंदिर में दर्शन करने के लिए और उत्साहित कर दिया। फिर क्या था हम दोनों लोग नास्ता करने के बाद चल दिए इन मंदिरो कि ओर जो कि बहुत ही सुन्दर थे जैसे किसी कारीगर ने उसके पास जितने भी रंग हो उनको बहुत ही अच्छे तरह सुशोभित कर दिया हो। जो कि बर्फीली पहाड़ियों, हरियाली, सांस्कृतिक विरासत और चौखम्बा पहाड़ियों से घिरा हुआ था। इन मंदिरो में दर्शन के पश्चात् हम लोग निकल गए सोनप्रयाग कि ओर।
सोनप्रयाग
सोनप्रयाग का सम्बन्ध भी शिव से ही है। यहाँ मन्दाकिनी और वासुकी नदी का संगम होता है, जो कि ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र जल के स्पर्श मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं। सोनप्रयाग ही वह पड़ाव है, जहाँ तक आप अपनी पर्सनल गाड़ी ले जा सकते हैं। यहाँ से आपको प्राइवेट गाड़ियों द्वारा गौरी कुंड तक ले जाया जाता है। सोनप्रयाग से लगभग 13 किलोमीटर दुरी पर है, त्रियुगी नारायण मंदिर, जहाँ कहते हैं की इसी मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती जी का विवाह हुआ था।
हम लोग शाम तक सोनप्रयाग तक पहुंच गए। हमने अपनी गाडी को स्टैंड पर खड़ी करने के बाद हम वहां की लोकल गाडी से निकल गए गौरी कुंड के लिए।
आप चाहे तो सोनप्रयाग में एक रात रुक सकते हैं और सुबह में गौरी कुंड के लिए निकल सकते हैं। सोनप्रयाग में आपको सही रूम मिल जायेंगे पर मंदिर से कुछ दूर और थोड़ा बाहर की ओर रूम ले इससे आपको कम रुपये में एक अच्छा रूम मिल जायेगा। आपको रूम गौरी कुंड में भी मिल जायेंगे और यहाँ टेंट सुविधा भी हैं।
गौरीकुंड
हम लोग करीब शाम 6 बजे के बाद गौरी कुंड पहुंच गए और वहां हमे पता लगा की रात के समय में केदारनाथ के लिए पैदल मार्ग की रास्ता बंद कर देते हैं। हम गौरी कुंड पहुंच पुरे गौरी कुंड घूमे जहाँ हमने गौरी कुंड देखा जो की माता पार्वती को समर्पित गौरी मंदिर के लिए जाना जाता है। गौरी कुंड से भी जुड़ी कुछ पौराणिक कहानिया हैं, जिनकी बात हम अपने आगे आने वाले ब्लॉग में करेंगे।

पैदल यात्रा स्वर्ग धाम (केदारनाथ मंदिर) तक :-
हम दोनों लोगो ने सुबह गौरी कुंड में स्नान किया और जय भोले बोल कर उस 20 से 22 किलोमीटर की यात्रा को शुरू किया। जो की बहुत ही सुन्दर थी। गौरीकुंड से केदारनाथ की पैदल मार्ग में शुरुआती गेट से लगभग आधा किलोमीटर की दुरी पर आपको घोड़ो खच्चरों और पालकी के लिए बुकिंग कार्यालय हैं। जहाँ से आप इन्हे बुक कर सकते हैं। एक किलोमीटर की दुरी के बाद हॉर्स पॉइंट हैं, जहाँ से आप इन खच्चरों और घोड़ो पर चढ़ सकते हैं।
हम लोग ट्रैकिंग करते हुए पहुंचे अपने पहले पड़ाव पर जो था भीमबली। यहाँ से मार्ग दो भागो में विभाजित हो जाता है, जो की एक ट्रैकर्स के लिए और दूसरा घोड़ो और खच्चरों के लिए जो की आगे रामबाड़ा में जाके अंततः एक हो जाते हैं।
रामबाड़ा:- जो की केदारनाथ की सबसे बड़ी बस्ती थी। जो 2013 में आयी बाढ़ ने इसे पूरी तरह मिटा दिया। केदारनाथ का पुराना मार्ग मन्दाकिनी नदी के बायीं ओर से था लेकिन इस त्राशदी के बाद अब ये दाहिनी ओर से बनाया गया है।
इसके बाद हम लोग ट्रैकिंग करते हुए लिंचोली पहुंचे जहाँ हमने नास्ता किया और उन खूबसूरत पहाड़ो की ट्रैकिंग करते हुए आगे बड़े, कुछ घंटो की ट्रैकिंग के बाद हम लोग पहुंच गए केदारनाथ बेस कैंप। जहाँ एक GMBN गेस्ट हाउस कॉटेज है, जहाँ आप रुक सकते हैं। केदारनाथ मंदिर यहाँ से लगभग 500 मीटर की दुरी पर है। हम दोनों लोग करीब 12 बजे के करीब केदारनाथ मंदिर तक पहुंच गए, जहाँ मंदिर में दर्शन के लिए काफी लम्बी लाइन थी, हम दोनों लोग लाइन में लग गए और हमने बाबा केदार के दर्शन किये, जो की बहुत ही मनोरम थे।
मंदिर के अंदर का व्यू :-
मंदिर में प्रवेश करते ही पांचो पांडवो की मूर्ति तथा द्रोपदी जी की मूर्ति है। मुख्य हॉल के अंदर एक शंकाकार आकर का पत्थर है, जिसे उस बैल का कूबड़ माना जाता हैं जो भगवान शिव ने रूप धारण किया था। मुख्य हॉल के अंदर भगवान शिव के अलावा और कुछ अन्य देवी देवताओ की मुर्तिया भी हैं।
मंदिर के बाहर का दृश्य:-
हम लोग पुरे मंदिर में घूमे और चारो ओर का व्यू देखा जो की बहुत ही अच्छा था।मंदिर के बाहर, मंदिर की ओर मुख किये हुए नंदी बैल की एक मूर्ति है। मंदिर के ठीक पीछे एक विशाल चट्टान है, जिसे श्री दिव्य भीम शिला के नाम से जाना जाता है। इसी शिला ने 2013 के बाढ़ के पानी से मंदिर की रक्षा की थी।हम लोग पुरे मंदिर में घूमे और चारो ओर का व्यू देखा जो की बहुत ही अच्छा था। चारो ओर हिमालय के पहाड़ जो पुरे तरह से बर्फ से ढके हुए थे। हम लोगो ने वहां के दृश्य को अपने मोबाइल में कैद किया और वापस रुख किया गौरीकुंड की ओर।
गौरीकुंड की ओर वापसी :-
केदारनाथ धाम से गौरीकुंड की ओर लौटते हुए रास्ते में हम इतना थक गए थे की हमे लग रहा था की हमारे पैरो पर हमारा कब्ज़ा ही नहीं रहा है। हमारे पैर खुद व खुद उन पहाड़ो से नीचे उतर रहे थे। जितना समय हमे केदारनाथ मंदिर तक पहुंचने में लगा उससे कही जल्दी हम नीचे आ गए। हम नीचे आकर गौरी कुंड में एक रूम लिया और बस जाते ही अपने बिस्तर पर सो गए। हम सुबह उठते ही निकल गए अपनी नयी मज़िल की ओर जो थी, बद्रीनाथ जिसकी बात हम नेक्स्ट ब्लॉग में करेंगे।
केदारनाथ रास्ता
आप केदारनाथ अगर अपनी गाड़ी से जाते हैं तो आप निम्न रास्ते को फॉलो कर सकते हैं:-
हरिद्वार – ऋषिकेश – पीपलकोटी – देवप्रयाग – श्रीनगर – रुद्रप्रयाग – अगस्तमुनि – गुप्तकाशी – फाटा – सोनप्रयाग – गौरीकुंड।
अगर आप अपनी गाड़ी से नहीं आते तो आप हरिद्वार से प्राइवेट गाड़ी को बुक कर सकते है। जो की वहां से चार धाम के लिए भी गाड़ी रेंट पर मिलती हैं। आप बसों के द्वारा भी सोनप्रयाग तक पहुंच सकते हैं, जो की हरिद्वार और ऋषिकेश से चलती हैं। आप इन बसों के समय के बारे में जानकारी पहले ही लेले।
केदारनाथ में रहने की व्यवस्था
आप केदारनाथ पहुंचते वक़्त लेट हो जाते हैं, तो सोनप्रयाग में रुकना बेस्ट ऑप्शन होगा। जहाँ आपको कॉटेज होटल और छोटी छोटी धर्मशाला भी मिल जाएँगी। गौरीकुंड में भी रुकना आपके लिए ठीक रहेगा जहाँ आपको हॉल की सुविधा और होटल भी मिल जायेंगे। केदारनाथ के पैदल मार्ग में भी ऊपर जाकर आपको टेंट हाउस मिल जायेगे, जहाँ आप ठहर सकते हैं।
केदारनाथ में भोजन
यहाँ आपको गौरीकुंड से लेकर ऊपर तक जगह जगह होटल और छोटी छोटी दुकाने मिल जाएँगी। आपको यहाँ पर सबसे ज्यादा मैग्गी मिलेगी जो की खाने में काफी स्वादिस्ट होती हैं। वैसे आपको यहाँ हर जगह पराठे मिल जायेंगे पर बेस कैंप के पास पराठे काफी ज्यादा अच्छे मिलते हैं। यहाँ आपको फल की छोटी-छोटी दुकाने भी मिल जाएँगी।
केदारनाथ का वैदर?
केदारनाथ का वैदर कभी भी चेंज हो जाता है। यहाँ एक पल में तेज़ धुप तो दूसरे पल में बारिश होने लगती है। यहाँ के मौसम का अंदाजा लगा पाना बहुत ही कठिन है। यहाँ के वैदर के अनुसार आपके यहाँ आने का सबसे अच्छा टाइम मई से जून और अक्टूबर से नवंबर के बीच का है। जुलाई से सितम्बर के बीच में मानसून आने की वजह से यहाँ यात्रा करने से बचना चाहिए।
हेलीकाप्टर से केदारनाथ की यात्रा
आप हेलीकाप्टर द्वारा भी केदारनाथ मंदिर तक पहुंच सकते हैं। केदारनाथ के लिए मुख्यता हेलीकाप्टर फाटा से मिलते हैं। जिसका किराया एक राउंड ट्रिप का लगभग 5000 – 7000 तक है। अगर आप उसी दिन वापसी करते हैं तो आपको दर्शन करने के लिए दो घंटो का समय दिया जाता है। आपको प्रति व्यक्ति 2 किलो सामान ले जाने की अनुमति होती है। मौसम के ख़राब होने पर यहाँ कभी भी हेलीकाप्टर सेवा रोक दी जाती है।
केदारनाथ में इंटरनेट सुविधा
आपको केदारनाथ में जगह जगह फ्री वाईफाई मिल जाएगा, लेकिन इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। आपको गौरीकुंड तक ठीक तरह से मोबाइल सुविधा मिल जाएगी लेकिन जैसे जैसे आप ऊपर चढ़ते जाते हैं, वहां इंटरनेट सुविधा मिलना मुश्किल है। यहाँ आपको एयरटेल और जिओ के सिग्नल मिल जायेंगे परन्तु बाकि के मिलना थोड़ा मुश्किल हैं।
केदारनाथ के आस पास की जगह
भैरोनाथ मंदिर :- केदारनाथ मंदिर में दर्शन के बाद आपको भैरोनाथ मंदिर जाना चाहिए। भैरोनाथ मंदिर केदारनाथ मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर पर हैं। भैरोनाथ मंदिर में दर्शन के बाद ही इस यात्रा को पूरा माना जाता है।
आदि शंकराचार्य :- आप मंदिर के पास में पीछे की ओर बनी आदि शंकराचार्य की मूर्ति को देख सकते हैं। माना जाता है की जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने ही इस मंदिर का जीणोद्धार कराया था।
वासुकी ताल :- यह ट्रकर्स के लिए बहुत ही अच्छी जगह है, जहाँ पर आप गाइड द्वारा ही जा सकते हैं। इसका रास्ता काफी कठिन है। यहाँ से हिमालय की पर्वत श्रंखला बहुत ही सुन्दर और दिलचस्प लगती है।
ध्यान रखने योग्य बातें
- केदारनाथ आप जब भी जाये तो मई से जून और अक्टूबर से नवंबर के बीच में जाना चाहिए। जुलाई से सितम्बर के बीच में यहाँ न जाये, क्यूंकि ये समय मानसून का होता है।
- केदारनाथ जाते वक़्त आप अपना रैनकोट जरूर साथ रखे वहां मौसम कभी भी बिगड़ जाता है।
- आप पैदल मार्ग में कम से कम सामान लेकर चले।
- वहां के शॉर्टकट लेने से बचे, वो थोड़ा मुश्किल और खतरनाक हो सकते हैं।
Nice knowledge
❤️
❤️ Provided good knowledge about Kedarnath 🙂
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